जहरीले धुएं को फिल्टर करेगी जिग-जैग तकनीक, सरकार ने ईंट-भट्टों में लगाना किया अनिवार्य
राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल कार्रवाई करेगा
प्रदूषण के कारण ब्रेन, किडनी व हृदय को खतरा होने के साथ ही मधुमेह की समस्या भी बढ़ जाती है। धुएं से आंखों को भी नुकसान पहुंचता है।
कोटा । जिलेभर में ईंट-भट्टों से निकलने वाले धुएं से आबोहवा दूषित हो रही है। अब सभी ईंट-भट्टा संचालकों को एनसीआर की तरह जिग-जैग तकनीक अपनानी होगी, जिससे जहरीले धुएं की मात्रा को कम किया जा सके। जिग-जैक तकनीक अपनाने के लिए संचालकों को मार्च माह तक का समय दिया गया है। इसके बाद राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल कार्रवाई करेगा। हालांकि पहले सभी ईंट-भट्टा संचालकों से समझाइश की जाएगी। जिलेभर में स्थित सैकड़ों ईंट-भट्टे नियमों को अनदेखा कर जिग-जैग तकनीक के बगैर चल रहे हैं। इनसे निकलने वाले धुएं से आबोहवा खराब हो रही है। इसका असर शहर सहित आसपास के कस्बों व गांवों पर भी पड़ रहा है।
कोटा जिले में 300 ईंट-भट्टे उगल रहे जहर
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी कर ईंट-भट्टा संचालकों को फरवरी-2024 तक जिग-जैग तकनीक को अपनाने के लिए निर्देश दिए थे। बाद में इसकी मियाद को मार्च 2025 तक बढ़ा दिया है। इस समय प्रदेशभर में 2037 ईंट-भट्टे हैं, जिनमें से मात्र 267 ने ही धुआं बाहर निकालने के लिए जिग-जैग तकनीक को अपना रखा है। वहीं कोटा जिले में करीब 300 से अधिक ईंट भट्टे हैं, लेकिन कोई भी जिग जैग तकनीक से संचालित नहीं हो रहा है। ऐसे में अब मार्च माह में इन सभी ईंट-भट्टा संचालकों को इस प्रणाली को अपनाना होगा। इसके बाद प्रदूषण नियंत्रण मंडल की ओर जांच की जाएगी। जांच में बिना जिग-जैग वाले ईंट-भट्टा के खिलाफ कार्रवाई होगी।
यह होती है जिग-जैग तकनीक : जानकारी के अनुसार जिग-जैग तकनीक में चिमनी के भीतर ईंट को जिग-जैग तरीके से लगाया जाता है। इससे दहन की प्रक्रिया बेहतर होती है। कार्बन मोनो ऑक्साइड कम बनती है। इसमें चिमनी 14 से 27 मीटर ऊंची बनाई जाती है। इससे निकलने वाला धुंआ भी ऊपर चला जाता है। इसके चलते इंसानों सहित पर्यावरण को भी नुकसान कम होता है। वर्तमान में देश में चारों तरफ फैल रहे पर्यावरण प्रदूषण के दुष्प्रभाव इंसानों के शरीर पर नजर आ रहे हैं। प्रदूषण के कारण ब्रेन, किडनी व हृदय को खतरा होने के साथ ही मधुमेह की समस्या भी बढ़ जाती है। धुएं से आंखों को भी नुकसान पहुंचता है। इस कारण केन्द्र सरकार ने ईंट-भट्टों में जिग-जैग तकनीक अपनाने के निर्देश जारी किए हैं।
यहां 100 से अधिक वायु प्रदूषण का लेवल
जानकारी के अनुसार कोटा शहर में वायु प्रदूषण का स्तर अधिकांश समय 100 एक्यूआई से अधिक रहता है। प्रदूषण नियंत्रण मंडल की ओर शहर में इसकी लगातार मॉनिटरिंग की जाती है। यहां पर सबसे ज्यादा प्रदूषण वाहनों के धुएं के कारण होता है। वहीं ईंट-भट्टों के धुएं को भी प्रदूषण फैलाने में जिम्मेदार माना गया है। ऐसे में अब ईंट-भट्टों में जिग-जैग तकनीक अपनाने के निर्देश जारी किए गए हैं। ताकि शहर सहित जिले में वायु प्रदूषण के स्तर में कमी लाई जा सके।
70- फीसदी कम होता है प्रदूषण
90- फीसदी सुधरती है ईंट की क्वालिटी
300- फीसदी कम होता है प्रदूषण
26- टन कोयला की खपत साधारण विधि से
16- टन कोयला की खपत जिग-जैग विधि से
अभी हाल ही हुई बैठक में जिग-जैग तकनीक वाले ईंट-भट्टे के सम्बंध में निर्देशित किया गया है। इसमें चिमनी का इस्तेमाल होता है। जिग-जैक तकनीक से प्रदूषण कम होता है। इसमें कार्बन कण नीचे बैठ जाते हैं और उनके हवा में मिक्स नहीं होने से पर्यावरण प्रदूषण कम होता है। वहीं अब नए लोगों को चिमनी वाले ईंट भट्टों के लिए प्रेरित करेंगे।
-योगिता सिंह, क्षेत्रीय अधिकारी, प्रदूषण नियंत्रण मंडल, कोटा
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