कैंसर से बचाव में वैक्सीन कितनी कारगर?

दुनिया में 20 फीसदी कैंसर के मरीज भारत में हैं

कैंसर से बचाव में वैक्सीन कितनी कारगर?

पिछले साल भारत में कैंसर मरीजों की संख्या 14,61,427 थी। जिसमें से 2018 से 2022 के दौरान 8,08,558 कैंसर मरीजों की मौत हो गई थी। यह आंकड़ा सरकारी है, मरने वाले इससे दस गुना ज्यादा हो सकते र्हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक मौजूदा दुनिया में 20 फीसदी कैंसर के मरीज भारत में हैं। इस बीमारी से हर साल कम से कम पचहत्तर हजार लोगों की मौत हो जाती है और दुनियाभर में दो करोड़ लोग इससे ग्रसित होते हैं। अमरीकी वैज्ञानिक व डॉक्टर जामे अब्राहम के मुताबिक भारत में तेजी से कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। इसकी वजह वैश्वीकरण, उदारीकरण और बदलती जीवन शैली है। एम्स के शोध कतार्ओं का कहना है कि अगले पांच सालों में कैंसर के मामले 12 फीसदी तक बढ़ जाएंगे। अगले दो सालों में भारत में कैंसर मरीजों की तादाद 15.69 लाख को पार कर जाएगी। पिछले साल भारत में कैंसर मरीजों की संख्या 14,61,427 थी। जिसमें से 2018 से 2022 के दौरान 8,08,558 कैंसर मरीजों की मौत हो गई थी। यह आंकड़ा सरकारी है, मरने वाले इससे दस गुना ज्यादा हो सकते र्हैं। क्योंकि गांवों और कस्बों में कैंसर मरीजों के बारे में जानकारी कम हो पाती है। 

ग्लोबल कैंसर आब्जरवेटरी के मुताबिक 50 साल से उम्र के पहले, ब्रेस्ट कैंसर, मुंह कैंसर, फेफडों और गर्भाशय के कैंसर के मामले देश दुनिया में सबसे ज्यादा आ रहे हैं। परीक्षण बताते हैं कि कैंसर के प्रमुख कारणों में अनियमित दिनचर्या, खाने-पीने वाली वस्तुओं में बहुत ज्यादा कीट नाशकों का इस्तेमाल, मांसाहार, अंडे का बढ़ता सेवन,  गुटखा-तम्बाकू, धूम्रपान और शराब का अधिक सेवन शामिल है। इसके अलावा तनावपूर्ण जिंदगी, गर्भनिरोधक का अधिक इस्तेमाल, महिलाओं द्वारा अपने शिशुओं को स्तनपान न कराने की आदत जैसे तमाम कारण भी कैंसर होने के होते हैं। इंडियन काउंसिल आॅफ रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2025 तक 7.6 लाख पुरुष और 8 लाख से ज्यादा महिलाओं को कैंसर ग्रस्त होने का अंदेशा है। 27 फीसदी मामले तम्बाकू के सेवन से तो गैस्ट्रो इंटेस्टाइनल टैक्ट कैंसर के मामले 19.7 फीसदी के करीब हैं। 
  भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के मुताबिक भारत में अगले सात सालों में फेफडों के कैंसर के मरीजों की तादाद में 7 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हो सकता है। इसका कारण प्रदूषित पर्यावरण और अनुवांशिकी है। लेकिन फेफडों के कैंसर के 40 फीसदी मामले तम्बाकू सेवन से ताल्लुक रखते हैं। इसी तरह 40750 फीसदी मरीज मुंह के कैंसर से पीड़ित होते हैं। इसकी वजह गुटखा और तम्बाकू का अधिक सेवन है। यानी खान-पान सुधार कर मुंह के कैंसर को और तम्बाकू सेवन से परहेज कर फेफड़ों के कैंसर से बचा जा सकता है। योग-ध्यान और व्यायाम को अपना कर शरीर को संतुलित रखकर कैंसर से बचाव हो सकता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक मोटापा भी कैंसर का कारण बन रहा है। 
   हार्वर्ड युनिवर्सिटी के शोध के मुताबिक शरीर में अत्यधिक वसा होने की दशा में कैंसर कोशिकाएं तेजी से बढ़ती हैं। महिलाओं में रजोनिवृति के बाद कई तरह की समस्याएं बढ़ जाती हैं। जिसमें स्तन कैंसर, लीवर, किडनी, इंटेस्टाइन एंडोमेट्रियल केैंसर प्रमुख है। इसके अलावा पराबैगनी विकिरण (अल्ट्रावायलेट रेडिएशन) के सम्पर्क में लगातार रहने की वजह से भी केैंसर का खतरा बढ़ जाता है। कृतिम प्रकाश में लगातार रहने की वजह से भी कैंसर की संभावना हो जाती है। वायु प्रदूषण में रेडान होता हैं। रेडान यूरेनियम से उत्पन्न होने वाली एक रेडियोएक्टिव गैस है, जो धूल के साथ इमारतों, घरों, स्कूलों और कार्य स्थलों में जमा हो सकती है। इसलिए इन जगहों पर मास्क का इस्तेमाल जरूर करें।  कैंसर के मरीजों की तादाद क्षेत्र के हिसाब से है। मसलन दिल्ली में कैंसर के ज्यादा मामले अधिक शराब सेवन, प्रदूषित पर्यावरण, तम्बाकू और बिगड़े खान-पान की गंदी आदत है। उसी तरह उड़ीसा में ड्राई मछली का सेवन और तम्बाकू-शराब की लत की वजह से मुंह के कैंसर वाले मरीजों की संख्या सबसे ज्यादा देखने में आई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक इंसान में 100 से अधिक तरह के कैंसर हो सकते हैं। जिसमें किडनी, फेफड़ा, त्वचा, पेट, थायराइड, मुंह, गले, हड्डी, ब्रेन, स्तन, गर्भाशय, प्रोस्टेट के कैंसर सबसे ज्यादा होते हैं। लेकिन यदि मांसाहार, अंडे, मछली , शराब, धूम्रपान, आरामतलबी को छोड़ दिया जाए तो कैंसर के मामलों में काफी हद तक कमी लाई जा सकती है। विकसित देशों में जहां इसका उपचार उपलब्ध है वहां कैंसर होने पर भी जिंदा रहने की संभावना 80 प्रतिशत आंकी गई, वहीं पर गरीब देशों में यह महज 15 प्रतिशत आंकी गई और मध्य आय वाले देशों में महज 30 प्रतिशत आंकी गई। आरएनए कैंसर वैक्सीन, कैंसर की कोशिकाओं पर मौजूद प्रोटीन की पहचान करती हैं, साथ ही शरीर में स्थित रोग प्रतिरोधी संस्थान को उसका मुकाबला करने के लिए तैयार करती हैं। इसी तरह ह्यूमन मेथोडिस्ट हॉस्पिटल में, कैंसर बायोलॉजिस्ट का एक ग्रूप उन लोगों के लिए कैंसर का सुरक्षात्मक वैक्सीन बना रहा है जिन्हें कैंसर होने का खतरा ज्यादा होता है। मसलन, बीआरसीए-2 म्यूटेशन वाले लोगों को स्तन कैंसर विकसित होने का ज्यादा खतरा होता है। 
-अखिलेश आर्येन्दु
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

Tags: Cancer

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