जिंदगी को अपने पन्ने खुद लिखने दो, उलझे रिश्तों का सच ही उसे सुलझा सकता है 

अपने पराए की कशमकश में झूलता गुलमोहर ढूंढ रहा अपनी बुनियाद

जिंदगी को अपने पन्ने खुद लिखने दो, उलझे रिश्तों का सच ही उसे सुलझा सकता है 

गुलमोहर घर है कुसुम का, जहां अपने परिवार को जोड़ वो खुद अलग होने का सवाल छोड़ देती है, जिसका जवाब हर कोई ढूंढ रहा है।

जयपुर। यादें संजोता गुलमोहर रिश्तों का बरगद अब कटने वाला है। अपने पराए की कशमकश में झूलता गुलमोहर अपनी बुनियाद ढूंढ रहा है। गुलमोहर घर है कुसुम का, जहां अपने परिवार को जोड़ वो खुद अलग होने का सवाल छोड़ देती है, जिसका जवाब हर कोई ढूंढ रहा है। गुलमोहर तीन पीढ़ियों की अपनी-अपनी जद्दोजहद की कहानी है, जिसमें दादी कुसुम अपना बंगला गुलमोहर बिल्डर को बेचकर पुदुचेरी अपनी लाइफ  जीने जा रही है, लेकिन सच तो एक वसीयत के नीचे दबा है, जो वो नहीं चाहती की बाहर आए और उसका गोद लिया हुआ बेटा अरुण जो मां का आज्ञाकारी है, लेकिन उसका खुद का बेटा उसे काफी दूर हो गया है। अपना वजूद तलाशने की होड़ में किराए के मकान में रहने की जिद पर अड़ा वो अपनी बीवी दिव्या से इसलिए लड़ता है कि वो कामयाब नहीं है। दादी-पोती अमु की अपनी केमिस्ट्री है। अम्मू लिखती गाती है, लेकिन अपने दिल की बात कह नहीं पाती। तब दादी उसे अपने जिंदगी का सच बताती है कि प्यार किसी से भी हो प्यार है फिर जेंडर पर सवाल क्यों। सच को मान लो तो सब सही हो जाता है। दूसरा परिवार कुसुम के देवर अमोल पालेकर का है, जो सबको कोसकर जिंदा है। मजहब, स्टे्टस अपने-पराए बस शिकायतें उसकी कुड़कुड़ खत्म नहीं होती। और है मुस्लिम नौकरानी रेशमा की उलझी प्रेम कहानी। एक और है चौकीदार अनपढ़ जीतू। वहीं दूसरी तरफ  बचपन का दोस्त पढ़ा लिखा इरफान। रेशमा किसे पसंद करती है और प्यार किस से ये भी गुलमोहर है । साथ ही दिल्ली के बदलते स्वरूप में खोता गुलमोहर का वजूद उन रिश्तों का पर्याय है जो टूटे है पर बिखरे नहीं हैं। और एक आखिरी कोशिश है गुलमोहर में होली पर सबका साथ होना, ताकि रिश्ते बिखरे इससे पहले उन्हें समेट लें। क्या ऐसा हो पाएगा। क्या सब जुड़ पाएंगे। कहानी और विचार दोनों उम्दा हैं। स्क्रीनप्ले की कसावट अच्छी है। संवाद असरदार है। निर्देशन अच्छा है। एडिटिंग ठीक है, लेकिन सिनेमेटोग्राफी सबको साथ लेकर चलती है। शर्मिला टैगोर दादी के रोल में कमाल लगी हैं। मनोज वाजपेई बेटा बन फिल्म की धुरी है। अमोल पालेकर देवर दादा के किरदार में छाप छोड़ते है। ओवरआल हॉटस्टार पर स्ट्रीम गुलमोहर बेहतरीन सोच है और सोचने पर मजबूर करती है कि अपना घर तोड़ सबको अपना घर क्यों बनाना है।  

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