जयपुर बम ब्लास्ट के सभी आरोपी बरी

डीजीपी को जांच अधिकारियों पर कार्रवाई करने को कहा, निचली अदालत ने सुनाई थी फांसी की सजा 

जयपुर बम ब्लास्ट के सभी आरोपी बरी

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि यह सही है कि घटना में कई लोगों की जान गई थी और कई लोग घायल हुए थे। इसके अलावा लोगों की भावनाएं भी इससे जुड़ी हुई है, लेकिन कोर्ट भावनाओं से नहीं बल्कि कानून के आधार पर फैसला देता है।

जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने 13 मई 2008 को शहर में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में विशेष न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें अदालत ने चार आरोपियों मोहम्मद सैफ, सैफुर्रहमान, सरवर आजमी और एक अन्य को फांसी की सजा सुनाई थी। इसके साथ ही अदालत ने इन चारों में शामिल एक आरोपी को घटना के समय नाबालिग मानते हुए उसके प्रकरण को सुनवाई के लिए किशोर न्यायालय में भेज दिया है। न्यायाधीश पंकज भंडारी और न्यायाधीश समीर जैन की खंडपीठ ने यह आदेश आरोपियों की अपीलों और राज्य सरकार के डेथ रेफरेंस पर सुनवाई करते हुए दिए। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि यह सही है कि घटना में कई लोगों की जान गई थी और कई लोग घायल हुए थे। इसके अलावा लोगों की भावनाएं भी इससे जुड़ी हुई है, लेकिन कोर्ट भावनाओं से नहीं बल्कि कानून के आधार पर फैसला देता है। ऐसा लगता है कि जांच अधिकारियों को कानून की जानकारी ही नहीं थी। इसलिए प्रकरण में लचर जांच करने वाले जांच अधिकारियों के खिलाफ डीजीपी जांच कर कार्रवाई करें और मुख्य सचिव इसकी मॉनिटरिंग करें।

यह मानी कमियां
अदालत ने बचाव पक्ष की उन दलीलों को माना है, जिसमें पुलिस जांच पर सवाल उठाए गए थे। बचाव पक्ष की ओर से कहा गया की घटना के अगले दिन ही पुलिस ने साइकिल विक्रेताओं की बिल बुक जब्त कर ली थी, लेकिन डिस्क्लोजर स्टेटमेंट चार माह बाद लिए गए। इसके अलावा धमाका करने में काम ली गई साइकिलों और बिल बुक की साइकिलों के चेचिस नंबर अलग थे। वहीं आरोपियों की शिनाख्त परेड के दौरान जांच अधिकारी भी मौके पर मौजूद रहे। इसके अलावा जिस साइबर कैफे से विस्फोट करने की जिम्मेदारी लेने का ईमेल भेजने की बात कही गई, वहां से कोई रिकॉर्ड जब्त नहीं किया गया और ना ही जिन टीवी चैनलों में यह ईमेल भेजे गए, उन लोगों के बयान लिए गए। आरोपियों की ओर से यह भी कहा गया की आरोपियों का घटना के दिन दिल्ली से बस के जरिए आना बताकर उसी दिन साइकिल खरीद कर वारदात को अंजाम देकर ट्रेन से वापस दिल्ली जाने की बात कही गई है, जबकि पुलिस ने सहयात्रियों के बयान, सीसीटीवी कैमरा रिकॉर्डिंग और टिकट आदि से जुड़े साक्ष्य पेश नहीं किए। वहीं पुलिस ने दिल्ली के जामा मस्जिद के सामने से छर्रे खरीदना बताया, जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से साबित है कि   मृतकों के शरीर में मिले छर्रे अलग थे। राज्य सरकार की ओर से डेथ रेफरेंस में कहा गया कि निचली अदालत ने अभियुक्तों को बम ब्लास्ट का दोषी मानते हुए फांसी की सजा सुनाई है। अभियुक्तों के खिलाफ अभियोजन पक्ष के पास साक्ष्य हैं। ऐसे में अभियुक्तों की फांसी की सजा को कन्फर्म किया जाए।

यह है मामला
13 मई, 2008 को बम ब्लास्ट होने के बाद पुलिस ने शाहबाज हुसैन, मोहम्मद सैफ, सैफुर्रहमान, सरवर आजमी और एक अन्य को गिरफ्तार किया था। विशेष अदालत ने 18 दिसंबर, 2019 को शाहबाज हुसैन को बरी कर अन्य चारों आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी। विशेष न्यायालय के फैसले के करीब आठ माह बाद अभियोजन पक्ष ने चांदपोल हनुमान मंदिर के पास मिले जिंदा बम को लेकर इन पांचों आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र पेश किया था। इस आरोप पत्र में शाहबाज हुसैन को हाईकोर्ट पूर्व में जमानत मिल चुकी है।

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