
जाने राजकाज में क्या है खास
सात महीने बाद सूबे में होने वाली चुनावी जंग में भगवा वाले भाई लोगों को छोटा भाई और मोटा भाई के नाम के साथ ही लीडर के चेहरे को हथियार बनाने पर ही पार पड़ती दिखती है, वरना ये पब्लिक है, ये सब जानती है, उसे क्या करना है।
अप हुआ ग्राफ
कर्नाटक में कमल वाली पार्टी क्या हारी, मरु प्रदेश के कई नेताओं का दिन का चैन और रातों की नींद उड़ गई। उड़ना भी लाजमी था, चूंकि उन्होंने मैडम से दूरी बनाने से पहले ना आगा सोचा और न ही पीछा। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि साउथ वाले रिजल्ट से सूबे में मैडम का ग्राफ अप हुआ है। सात महीने बाद सूबे में होने वाली चुनावी जंग में भगवा वाले भाई लोगों को छोटा भाई और मोटा भाई के नाम के साथ ही लीडर के चेहरे को हथियार बनाने पर ही पार पड़ती दिखती है, वरना ये पब्लिक है, ये सब जानती है, उसे क्या करना है।
इंतजार दोनों तरफ
सूबे में हाथ वाली पार्टी में दोनों तरफ से बेसब्री से इंतजार है। हो भी क्यों ना, दोनों गुटों के नेता गले तक हो भर गए। एक गुट के लीडर पहले आलाकमान की तरफ ताक रहे थे, मगर अब वहां भी उम्मीद खत्म हो गई। अब वर्कर्स अपने-अपने हिसाब से मायने निकाल रहे हैं। इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वाले के ठिकाने पर आने वाले वर्कर्स में खुसरफुसर है कि अपनी ही सरकार में परिवर्तन के लिए सड़कों पर उतरे यूथ लीडर की मंशा है कि पार्टी ही उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दें, ताकि पब्लिक की कुछ हमदर्दी मिल सके। राज की कुर्सी पर बैठे भाईसाहब भी एक कदम आगे हैं, वे निकालने के पक्ष में कम और खुद के छोड़कर जाने के पक्ष में ज्यादा हैं। आगे के कदम का इंतजार दोनों तरफ हैं।
चर्चा अहंकार की हार की
कर्नाटक के चुनावी नतीजों को लेकर सरदार पटेल मार्ग पर स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा के ठिकाने के साथ ही भारती भवन में भी चिंतन-मंथन जोरों पर हैं। शनि की दोपहर से रवि की रात तक भाई लोग अपने-अपने हिसाब से मायने निकाल रहे हैं। लेकिन भगवा वाले हार्ड कोर वर्कर्स का एक गुट ऐसा भी है, जो सिर्फ चाय की दुकानों पर गपशप करता है। इस गुट में चर्चा है कि यह भाजपा की नहीं, बल्कि अहंकार की हार है। सरपंच के चुनाव में एमएलए का चेहरा कतई काम नहीं आता। नमोजी पीएम का फेस है, सीएम का नहीं। राजस्थान में राज लाना है, तो सीएम फेस के बिना पार पड़ती नजर नहीं आ रही। वर्कर्स की इस गपशप के मायने समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी हैं।
कौन किसके द्वार
भगवा वाले कुछ नेताओं की नजरें ब्यूरोक्रसी पर टिकी हैं। टिके भी क्यों नहीं, ब्यूरोके्रट्स भी संदेश देने में माहिर जो होते हैं। चुनावी साल में जिस नेता के द्वार पर उनके कदम ज्यादा पड़ते हैं, तो आसानी से समझ में आ जाता है कि अगला लीडर कौन है। अब देखो ना, इस बार 1993 बैच के अफसरों के कदम मैडम के दरवाजे की तरफ कुछ ज्यादा ही बढ़ रहे हैं। इनमें अगले राज के डीजी, सीएस और एसीएस हैं। एक-दो अफसर हैं, जो सुबह-शाम भाईसाहब से नमस्कार करते हैं। ब्यूरोक्रेट्स की पारखी नजरों में मरु प्रदेश में अभी सिर्फ दो जोधपुर वाले अशोक जी और मैडम ही लीडर हैं, जिनमें से किसी को राज की कुर्सी मिलेगी।
एक जुमला यह भी
सूबे में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं, बल्कि अगले राज को लेकर है। जुमला है कि हाथ वाले भाईसाहब ने भगवा वाली मैडम की तारीफ यूं ही नहीं की है, उसके पीछे भी राज है। फिलहाल तो हम इस राज का ज्यादा खुलासा नहीं करेंगे, मगर इतना जरूर बताय देते हैं कि हाथ वाले भाई लोगों को इस बात का डर सता रहा है कि कहीं भगवा वाले भाई लोग राज में आने के लिए मैडम का फेस डिक्लेयर नहीं कर दें, चूंकि पंडितों ने तो पहले ही बता रखा है कि मैडम के भाग्य में तीसरी बार सीएम बनना लिखा है।
- एल. एल शर्मा
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