बढ़ता ई-कचरा स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए खतरा
दुनिया में हर साल 3 से 5 करोड़ टन ई-वेस्ट पैदा हो रहा है
आज दुनिया के सामने कई तरह की चुनौतियां हैं, जिसमें से ई-वेस्ट एक नई उभरती विकराल एवं विध्वंसक समस्या भी है।
लगातार बढ़ रहा ई-कचरा न केवल भारत के लिए बल्कि समूची दुनिया के बड़ा पर्यावरण, प्रकृति एवं स्वास्थ्य खतरा है। ई-कचरा से तात्पर्य उन सभी इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिकल उपकरणों (ईईई) तथा उनके पार्ट्स से है, जो उपभोगकर्ता द्वारा दोबारा इस्तेमाल में नहीं लाया जाता। ग्लोबल ई-वेस्ट मानिटर-2020 के मुताबिक चीन और अमेरिका के बाद भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा ई-वेस्ट उत्पादक है। चूंकि इलेक्ट्रिक्ल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बनाने में खतरनाक पदार्थों (शीशा, पारा, कैडमियम आदि) का इस्तेमाल होता है, जिसका मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर दुष्प्रभाव पड़ता है। दुनियाभर में इस तरह से उत्पन्न हो रहा ई-कचरा एक ज्वलंत समस्या के रूप में सामने आ रहा है। पारा, कैडमियम, सीसा, पॉलीब्रोमिनेटेड फ्लेम रिटार्डेंट्स, बेरियम, लिथियम आदि ई-कचरे के जहरीले अवशेष मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक होते हैं। इन विषाक्त पदार्थों के सम्पर्क में आने पर मनुष्य के हृदय, यकृत, मस्तिष्क, गुर्दे और कंकाल प्रणाली की क्षति होती है। इसके अलावा, यह ई-वेस्ट मिट्टी और भूजल को भी दूषित करता है। ई-उत्पादों की अंधी दौड़ ने एक अन्तहीन समस्या को जन्म दिया है। शुद्ध साध्य के लिए शुद्ध साधन अपनाने की बात इसीलिए जरूरी है कि प्राप्त ई-साधनों का प्रयोग सही दिशा में सही लक्ष्य के साथ किया जाए, पदार्थ संयम के साथ इच्छा संयम हो।
आज दुनिया के सामने कई तरह की चुनौतियां हैं, जिसमें से ई-वेस्ट एक नई उभरती विकराल एवं विध्वंसक समस्या भी है। दुनिया में हर साल 3 से 5 करोड़ टन ई-वेस्ट पैदा हो रहा है। ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर के मुताबिक भारत सालाना करीब 20 लाख टन ई-वेस्ट पैदा करता है और अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद ई-वेस्ट उत्पादक देशों में 5वें स्थान पर है। ई-वेस्ट के निपटारे में भारत काफी पीछे है, जहां केवल 0.003 मीट्रिक टन का निपटारा ही किया जाता है। यूएन के मुताबिक, दुनिया के हर व्यक्ति ने साल 2021 में 7.6 किलो ई-वेस्ट डंप किया। भारत में हर साल लगभग 25 करोड़ मोबाइल ई-वेस्ट हो रहे हैं। ये आंकड़ा हर किसी को चौंकाता है एवं चिंता का बड़ा कारण बन रहा है, क्योंकि इनसे कैंसर और डीएनए डैमेज जैसी बीमारियों के साथ कृषि उत्पाद एवं पर्यावरण के सम्मुख गंभीर खतरा भी बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, ई-कचरे से निकलने वाले जहरीले पदार्थों के सीधे सम्पर्क से स्वास्थ्य जोखिम हो सकता है।
दुनियाभर में इलेक्ट्रॉनिक कचरे के बढ़ने की सबसे बड़ी वजह इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की तेजी से बढ़ती खपत है। आज हम जिन इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को अपनाते जा रहे हैं। उनका जीवन काल छोटा होता है। इस वजह से इन्हें जल्द फेंक दिया जाता है। जैसे ही कोई नई टेक्नोलॉजी आती है, पुराने को फेंक दिया जाता है। इसके साथ ही कई देशों में इन उत्पादों के मरम्मत और रिसायक्लिंग की सीमित व्यवस्था है या बहुत महंगी है। ऐसे में जैसे ही कोई उत्पाद खराब होता है लोग उसे ठीक कराने की जगह बदलना ज्यादा पसंद करते हैं। साल 2021 में डेफ्ट यूनिवर्सिटी आफ टेक्नोलॉजी द्वारा किए गए सर्वेक्षण में फोन बदलने का सबसे बड़ा कारण साफ्टवेयर का धीमा होना और बैट्री में गिरावट रहा। दूसरा बड़ा कारण नए फोन के प्रति आकर्षण था। कंपनियों की मार्केटिंग और दोस्तों द्वारा हर साल फोन बदलने की आदतों से भी प्रभावित होकर भी लोग नया फोन ले लेते हैं, जबकि इसकी जरूरत नहीं होती। इस वजह से भी ई-कचरे में इजाफा हो रहा है। एक अन्य आंकड़े के मुताबिक अगर साल 2019 में उत्पादित कुल इलेक्ट्रॉनिक कचरे को रिसायकल कर लिया गया होता वो करीब 425,833 करोड़ रुपए का फायदा देता। यह आंकड़ा दुनिया के कई देशों के जीडीपी से भी ज्यादा है। यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी की ओर से जारी ‘ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2020 रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में दुनिया में 5.36 करोड़ मीट्रिक टन ई-कचरा पैदा हुआ था। अनुमान है कि साल 2030 तक इस वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक कचरे में तकरीबन 38 प्रतिशत तक वृद्धि हो जाएगी। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यह समस्या कितनी बड़ी है और आने वाले समय में यह और कितना बढ़ने वाली है। बात अगर दिल्ली की करें तो यहां हर साल 2 लाख टन ई-कचरा पैदा होता है। हालांकि, इसे वैज्ञानिक और सुरक्षित तरीके से हैंडल नहीं किया जा रहा है। इससे आग लगने जैसी कई जानलेवा घटनाएं हो चुकी हैं, जो दिल्ली के निवासियों और कूड़ा उठाने वालों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। इसी क्रम में अभी हाल ही में दिल्ली सरकार ने घोषणा की है कि दिल्ली में भारत का पहला ई-कचरा इको-पार्क खोला जाएगा। 20 एकड़ में बनने वाले इस पार्क में बैटरी, इलेक्ट्रॉनिक सामान, लैपटॉप, चार्जर, मोबाइल और पीसी से अनूठे एवं दर्शनीय चीजों को निर्मित किया जाएगा। इसी कड़ी में कानपुर में ई-वेस्ट प्रबंधन का एक बेहतरीन मॉडल सामने आया है। यहां जयपुर के एक कलाकार ने ई-वेस्ट से 10 फीट लंबी मूर्ति बनाई है। इसे बनाने में 250 डेस्कटॉप और 200 मदरबोर्ड, केबल और ऐसी अनेक खराब इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का इस्तेमाल किया गया है।
-ललित गर्ग
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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