बीमारियों की जद में लाखों नन्हे-मुन्ने, हर साल टीकाकरण से छूट रहे 10 फीसदी से अधिक बच्चे
वंचित बच्चों और क्षेत्रों की ट्रेकिंग को मिशन इन्द्रधनुष अभियान चलाता है
गांवों में टीकों को लेकर भम्र, जागरूकता का अभाव है। वहीं शहरों में चुनौतियां बच्चों के चिन्हिकरण की है। शहरों में सभी जगह आंगनबाड़ी केन्द्र नहीं है।
जयपुर। राजस्थान में एक साल तक के लाखों बच्चे बीमारियों की जद में है। प्रदेश में चिकित्सा विभाग के टीकाकरण अभियान में एक साल तक के बच्चों को कुल 9 प्राणघातक बीमारियों से बचाने के लिए 17 टीके अलग-अलग समयावधि में दिए जाते हैं, लेकिन प्रदेश में हर साल 10 फीसदी से अधिक बच्चों को टीकों को सभी डोज नहीं लग पा रही है। ऐसे में वैक्सीनेशन नहीं होने से बच्चों के बीमारियों का खतरा बना हुआ है।
चिकित्सा विभाग के आंकड़ों के मुताबिक राजस्थान में बीते दो साल में करीब 13 फीसदी बच्चें यानी करीब 4.36 लाख बच्चे टीकाकरण से छूटे हैं। वहीं इस साल के मार्च से 8 अगस्त, 2024 तक 5 माह के बीच 8 फीसदी यानी 43,731 बच्चे अभियान में टीकाकरण कराने नहीं आए। यह आंकड़ा केवल ढाई साल का है। इससे पूर्व भी लाखों बच्चे टीकाकरण से वंचित रह कर बीमारियों की जद में हैं। चिकित्सा विभाग अभियान में घर-घर जाकर बच्चों की ट्रेकिंग करता है। कई बच्चे टीका लगाने के वक्त ट्रेक नहीं हो पाते, लेकिन टीके नहीं लगाने के लिए बडे़ जिम्मेदार बच्चों के माता-पिता हैं।
प्रतिरोधकता को विभाग का प्रयास, परिजनों से आस
सभी बच्चों को सभी टीके लग सके इसके लिए चिकित्सा विभाग स्कूलों, आंगनबाड़ी केन्द्रों, एएनएम के जरिये बच्चों को चिन्हित करता है, उनका टीकाकरण करता है। टीकाकरण के विशेष अभियान संचालित करता है। घर-घर जाकर टीके लगाए जाते हैं। वंचित बच्चों और क्षेत्रों की ट्रेकिंग को मिशन इन्द्रधनुष अभियान चलाता है। टीकाकरण से किन बीमारियों से बच्चों को बचाया जा सकता है, इसकी जानकारी परिजनों को देता है, लेकिन दुर्भाग्य से परिजन टीका केन्द्रों तक नहीं जाते। प्रदेश की सभी पीएचसी में टीकाकरण की व्यवस्था है।
एक साल के भीतर ये टीके जरूरी
बीसीजी, हैपेटाइटिस बी, ओपीवी की जीरो डोज पैदा होने के तुरंत बाद 15 दिन के भीतर, ओपीवी की तीन डोज और पेंटावेलेंट टीके की डोज 6वें, 10वें और 14वें सप्ताह में डोज, एफआईपीवी 1 व 2 डोज 6वें और 14 वें सप्ताह में दो डोज, एफआईपीवी की 9 माह के होने पर बूस्टर डोज, पीसीवी की पहले 1 व 2 और बूस्टर डोज 6वें, 14वें सप्ताह में और फिर नौ माह पूरे होने पर, मीजेल्स/ रूबेला की नौ माह पूरे होने पर एक साल के होने तक, विटामिन-ए की नौ माह पूरे होने पर एक साल के होने तक।
टीकाकरण में बड़ी चुनौतियां
गांवों में टीकों को लेकर भम्र, जागरूकता का अभाव है। वहीं शहरों में चुनौतियां बच्चों के चिन्हिकरण की है। शहरों में सभी जगह आंगनबाड़ी केन्द्र नहीं है। शहरी पीएचसी क्षेत्र का नोडल टीकाकरण केन्द्र होता है। यहां एएनएम बच्चों को घर-घर जाकर ट्रेक करती है, लेकिन दिन-प्रतिदिन कॉलोनियों का विस्तार, मल्टीस्टोरी बिल्डिंग्स में इनकी नो एंट्री जैसी समस्याएं ट्रेकिंग में बाधक है।
विभाग टीकाकरण की सालभर मुहिम चलाता है। कई कार्यक्रम, अभियान चलते हैं। घर-घर और स्कूलों तक हैल्थ वर्कर्स जाते हैं। पिछले पांच माह में 92 फीसदी लक्ष्य प्राप्त किया है। प्राइवेट अस्पतालों को भी यू-विन पोर्टल से जोड़कर बच्चों को ट्रेक करने का काम शुरू किया है। अभी सभी को इससे जोड़ना बाकी है।’
-डॉ. रघुराज सिंह, स्टेट नोडल अधिकारी, टीकाकरण, चिकित्सा विभाग
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