दुश्मनों के छक्के छुड़ाने वाले सेना के जांबाज श्वानों को आमजन ले सकेंगेें गोद
कुत्तों से विशेष लगाव और जुड़ाव वाले लोग होने चाहिए
सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार इन श्वानों की सूंघने तथा आभास करने की अछ्वुत क्षमता होती है और इसका कोई विकल्प हाल फिलहाल नजर नहीं आता।
नई दिल्ली। आप चाहें, तो सैनिकों की तरह ही देश की रक्षा में अपनी जान की बाजी लगाने से भी पीछे नहीं हटने वाले सेना के जांबाज श्वानों को गोद लेकर अपने पास रख सकते हैं। जी हां, आपको यह सुनकर हैरानी होगी, लेकिन यह बात सही है कि सेना ने पिछले कुछ वर्षों से यह प्रक्रिया शुरू की है, जिसमें कोई भी सेना से सेवानिवृत होने वाले इन जांबाज और बहादुर श्वानों को अपने पास रख कर अपने घर की शोभा बढाने के साथ- साथ उसकी सुरक्षा भी सुनिश्चित कर सकता है।
सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार सेना के सेवानिवृत श्वानों को आसानी से गोद लिया जा सकता है। इसके लिए कोई विशेष शर्तें नहीं हैं, लेकिन इतना जरूरी है कि आपको कुत्तों से विशेष लगाव और जुड़ाव होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसकी प्रक्रिया बेहद आसान और सरल है। यदि कोई इन श्वान को गोद लेना चाहता है, तो उसे सेना को पत्र लिखकर आवेदन करना होगा और अपने बारे में बताना होगा। पत्र में व्यक्ति को अपना पता, पहचान और अन्य विवरण भी देना होता है। सेना आपके आवेदन पर विचार करने और संतुष्ट होने के बाद आपको सेवानिवृत श्वान को अपने साथ ले जाने की इजाजत दे देती है।
उन्होंने कहा कि इन श्वानों की सूंघने तथा आभास करने की अछ्वुत क्षमता होती है और इसका कोई विकल्प हाल फिलहाल नजर नहीं आता। उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले लंदन में प्रौद्योगिकी के आधार पर एक प्रकार के रोबोट में श्वान की तरह सूंघने तथा आभास करने की क्षमता पैदा करने की कोशिश की गयी, लेकिन यह कारगर नहीं पायी गयी।
सेना में श्वानों को लंबे समय से रखा जा रहा है और उनके लिए विशेष इकाईयां भी हैं, जहां इन्हें गहन प्रशिक्षण देकर विभिन्न कार्यों में प्रशिक्षित किया जाता है। इन श्वानों को बारूदी सुरंगों और विस्फोटकों का पता लगाने , ट्रेकिंग, हमला करने, गश्त और विभिन्न तरह के खोजी तथा बचाव अभियानों के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। इनका अपने ट्रेनर तथा हैंडलर के साथ इतना अधिक लगाव हो जाता है कि ये उनके लिए अपनी जान देने से कभी भी पीछे नहीं हटते।
रणबांकुरें सैनिकों की तरह सेना में इन जांबाज श्वानों का भी गौरवशाली इतिहास है और इन्होंने समय समय पर देश की रक्षा से जुड़े अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है तथा प्राणों का बलिदान भी दिया है। इसके लिए इनके योगदान के अनुसार इन्हें स्वतंत्रता दिवस तथा गणतंत्र दिवस जैसे मौकों पर सैनिकों के साथ साथ वीरता पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जाता है।
करीब 08 से दस वर्ष की समर्पित सेवा के बाद सेना से सेवानिवृत होने वाले इन श्वानों को सेवानिवृत सैनिकों की तरह पूरा सम्मान दिया जाता है और उन्हें जीवन के अगले पड़ाव के लिए सेना की मेरठ स्थित रिमाउंट और वेटनरी कोर में सम्मान के साथ रखा जाता है। सेवानिवृत श्वानों को ट्रेन में प्रथम श्रेणी के वातानुकूलित कोच में उनके गंतव्य तक पहुंचाया जाता है।
सेवानिवृत होने के बाद इन श्वानों में से कुछ को इनके हैंडलर या सेना के कुछ अन्य अधिकारी अपने पास रख लेते हैं। कुछ गैर सरकारी संगठन भी इन श्वानों को अपना लेते हैं और बाकी को सेना की इस विशेष कोर में रखा जाता है।
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