लोकरंग महोत्सव: गुजरात के कलाकारों ने मशाल लेकर रास दिखाया, माहौल किया कृष्णमय 

लोकरंग महोत्सव: गुजरात के कलाकारों ने मशाल लेकर रास दिखाया, माहौल किया कृष्णमय 

शिल्पग्राम के मुख्य मंच पर लोकगायन, लोक नृत्य, चरी नृत्य, चंग, भपंग वादन, गणगौर, मंजीरा और मांड, अग्नि नृत्य, भवाई, कमार, झालावाड़ी रास, बीहू, भांगड़ा, गरगलू और मांगणियार गायन की प्रस्तुति हुई।

जयपुर। जवाहर कला केंद्र की ओर से आयोजित 27वें लोकरंग महोत्सव में विभिन्न राज्यों से आए कलाकारों ने अपने हुनर का प्रदर्शन किया। समस्त राज्यों की संस्कृति का संगम यहां मंच पर देखने को मिला। शिल्पग्राम के मुख्य मंच पर लोकगायन, लोक नृत्य, चरी नृत्य, चंग, भपंग वादन, गणगौर, मंजीरा और मांड, अग्नि नृत्य, भवाई, कमार, झालावाड़ी रास, बीहू, भांगड़ा, गरगलू और मांगणियार गायन की प्रस्तुति हुई। मध्यवर्ती में त्रिपुरा से धमेल व संगराई मोग नृत्य, गुजरात से गरबा, वसावा होली नृत्य व मशाल रास, मणिपुर से माईबी जगोई व पुंग चोलम, हिमाचल प्रदेश से नाटी, जम्मू-कश्मीर से रउफ, महाराष्ट्र से लावणी व जोगवा नृत्य, राजस्थान से बाल गेर व ब्रज की होरी की प्रस्तुति हुई। 
 
लोकरंग अपने परवान पर है। मध्यवर्ती में बड़ी संख्या में दर्शक एकटक होकर विभिन्न राज्यों की प्रस्तुतियां देख रहे हैं। यहां के मंच पर धमेल से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। धमेल त्रिपुरा के बंगाली समुदाय द्वारा किया जाने वाला नृत्य है जो खास तौर पर विवाह के समय परिजनों द्वारा किया जाता है। इस प्रस्तुति में कलाकारों ने नववधू के ससुराल पक्ष में स्वागत के रीति-रिवाजों को साकार किया। नृत्य करते हुए एक कलाकार ने नववधु के रूप में पैरों से रंगोली तैयार की। गुजरात के कलाकारों ने मशाल लेकर रास करते हुए माहौल को कृष्णमय कर दिया। 

देवी की भक्ति में खुशियों की आस लगाए महाराष्ट्र के कलाकारों ने जोगवा नृत्य किया। जगोई के नाम से जाना जाने वाले मणिपुर के लोकनृत्य में लाई हारोबा त्योहार के दौरान किया जाने वाला नृत्य साकार किया गया। इसमें कलाकारों ने आत्मलीन होकर देवताओं का आह्वान किया। कलाकारों की मार्मिक प्रस्तुति देख दर्शकों में आस्था और भक्ति का संचार हुआ। इसी कड़ी में पुंग चोलम की भावपूर्ण प्रस्तुति दी गई, जो त्यौहार के दौरान संकीर्तन की प्रथा को सजीव रूप में प्रस्तुत करती है।

वैष्णव समुदाय में पुंग वाद्य को अत्यंत पवित्र और आध्यात्मिक माना जाता है, जिसे गहरे आदर और भक्ति के साथ संकीर्तन में शामिल कर नृत्य किया जाता है। जब कलाकार पुंग को थामकर नृत्य करते हैं, तो उनकी हर लय और ताल में भक्ति की भावना मुखरित होती है, मानो वे देवताओं के साथ एकात्म हो रहे हों।

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