भारतीय रेलवे के मानचित्र पर मिजोरम : बैराबी-सैरांग रेल लाइन का सफल समापन
परियोजना की कुल लागत लगभग 8071 करोड़
मिजोरम, जिसे पहाड़ी लोगों की भूमि के रूप में जाना जाता है, अब पहली बार एक सीधी रेल नेटवर्क से जुड़ गया है
गुवाहाटी। मिजोरम, जिसे पहाड़ी लोगों की भूमि के रूप में जाना जाता है, अब पहली बार एक सीधी रेल नेटवर्क से जुड़ गया है। मिजोरम की राजधानी, आइजोल को राष्ट्रीय रेल नेटवर्क से जोड़ने वाली बैराबी-सैरांग नई रेल लाइन का काम पूरा हो चुका है। यह उपलब्धि राज्य के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है।
परियोजना का विवरण
यह परियोजना 29 नवंबर 2014 को शुरू की गई थी, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैराबी से सैरांग तक नई रेल लाइन का वर्चुअली उद्घाटन किया था। परियोजना की कुल लागत लगभग 8071 करोड़ है और इसे चार खंडों में पूरा किया गया है- बैराबी-होटोर्की (16.72 किमी), होटोर्की-कांवपुई (9.71 किमी), कांवपुई-मुआलखांग (12.11 किमी), और मुआलखांग-सैरांग (12.84 किमी)। परियोजना के तहत, 48 सुरंगें, 55 बड़े पुल, 87 छोटे पुल, 5 रोड ओवर ब्रिज और 6 रोड अंडर ब्रिज का निर्माण किया गया है। पुल संख्या 196 की ऊंचाई 114 मीटर है, जो कुतुब मीनार से 42 मीटर अधिक है।
सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व
इस परियोजना में मिजोरम की समृद्ध संस्कृति को रेल संरचना में एकीकृत किया गया है। बैराबी-सैरांग रेल लाइन की सुरंगों को मिजो संस्कृति को दर्शाने वाले सुंदर भित्तिचित्रों से सजाया गया है, जिससे यह यात्रा केवल एक परिवहन का साधन न होकर एक सांस्कृतिक अनुभव बन जाती है। यह रेल लाइन पर्यटन को बढ़ावा देगी और स्थानीय कला को नई पहचान दिलाएगी। इस परियोजना से माल और यात्री परिवहन सुलभ और सस्ती होगी, जिससे जीवन यापन की लागत में कमी आएगी। यह स्थानीय व्यापार और रोजगार के नए अवसर भी पैदा करेगा।
रणनीतिक महत्व
मिजोरम भारत का सीमावर्ती क्षेत्र है, जो रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। यह रेल कनेक्टिविटी सैन्य बलों और आवश्यक सामग्री को तेजी से स्थानांतरित करने में सक्षम बनाएगी। यह आपात स्थिति और प्राकृतिक आपदाओं के दौरान राहत और बचाव कार्यों में भी मदद कर सकती है।
भविष्य की योजनाएं
विद्युतीकरण कार्य जारी है। सैरांग से म्यांमार के पास हिबिचुआ तक 223 किमी के सर्वेक्षण को मंजूरी मिल चुकी है। मिजोरम, त्रिपुरा, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और असम राज्य की राजधानियों को जोड़ने का काम पूरा हो चुका है। नागालैंड, मणिपुर और मेघालय में काम प्रगति पर है।

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