हाल-ए-पशु चिकित्सालय: नि:शुल्क दवा हो रही हवा
पशुपालन विभाग में गड़बड़ाई दवा आपूर्ति व्यवस्था
पशुपालकों ने बताया कि सर्दी के सीजन में पशुओं में मौसमी बीमारियां बढ़ रही है, लेकिन पशु अस्पतालों में जरूरी दवाएं तक नहीं है।
कोटा। सरकार ने भले ही पशुओं के लिए नि:शुल्क दवा वितरण योजना लागू कर रखी है, लेकिन हकीकत में पशुपालकों को इस योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है। जिले के पशु अस्पतालों में कुछ समय से दवाओं का टोटा बना हुआ है। यहां पर पर्याप्त मात्रा में दवा की सप्लाई नहीं हो रही है। जिससे जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित पशु चिकित्सालय पर अधिकांश दवाएं खत्म हो गई है। पशुपालकों ने बताया कि सर्दी के सीजन में पशुओं में मौसमी बीमारियां बढ़ रही है, लेकिन पशु अस्पतालों में जरूरी दवाएं तक नहीं है। ऐसे में पशुपालकों को निजी मेडिकल स्टोर से पशुओं की दवा महंगे दामों पर खरीदनी पड़ रही है।
फैक्ट फाइल
- जिले में पशु चिकित्सा इकाइयां 180
- प्रथम श्रेणी के पशु चिकित्सालय 16
- पशु चिकित्सालय 36
- पशु चिकित्सा उप केंद्र 124
- मोबाइल यूनिट संचालित 3
इन दवाइयों की किल्लत
पशुपालकों का कहना है कि पशु चिकित्सालयों में पशुओं के लिए अधिकांश दवा नहीं मिलती है। पशुओं के लिए पशु चिकित्सालय में दस्त, पेट के कीड़ों, बुखार, भूख न लगने की दवा, दूध की कमी की दवा मिलनी चाहिए, लेकिन यह दवाएं उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। एंटी रेबीज, एन्टोबायोटिक एनालजीन जैसी दवाएं भी पशु चिकित्सालयों में नहीं हैं। बाजार में इनके मनमाने दाम वसूले जा रहे हैं। इस समय पशुओं पर मौसमी बीमारियों के संक्रमण से उबारने के लिए कोई पुख्ता प्रबंध नहीं हैं।
अस्पतालों से निराश लौट रहे पशुपालक
कैथून क्षेत्र के पशुपालक भवानीशंकर गुर्जर, श्योजीराम मीणा ने बताया कि नि:शुल्क इलाज की आस में बीमार पशु को लेकर अस्पताल आ रहे हैं लेकिन वहां चिकित्सक दवाएं नहीं होने के नाम से टरका देते हैं। मजबूरी में बाजार से दवाएं खरीदनी पड़ रही है। दवाई नहीं होने के कारण पशुओं का भी इलाज नहीं हो रहा है। ऐसे में पशु चिकित्सा व्यवस्था फेल हो रही है। पशु अस्पतालों में दवाइयों का टोटा बना हुआ है। सर्दी के मौसम में अक्सर पशुओं को बुखार व नाक से पानी आने की शिकायत रहती है। पशुपालक अपने पशुओं को पशु चिकित्सालयों में तो लेकर जा रहे हैं, लेकिन परामर्श के अलावा उनको कुछ नहीं मिल रहा है।
इनका कहना
पशु चिकित्सालय में दस्त, पेट के कीड़ों, बुखार, भूख न लगने की दवा, दूध की कमी की दवा मिलनी चाहिए, लेकिन यह दवाएं उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। एंटी रेबीज, एन्टोबायोटिक एनालजीन जैसी दवाएं भी पशु चिकित्सालयों में नहीं हैं। ऐसे में बाजार में इनके मनमाने दाम वसूले जा रहे हैं।
- भवानीशंकर गुर्जर, पशुपालक
राजकीय पशु चिकित्सालयों में दवाइयों का स्टॉक कम आया है। मुख्यालय में टेंडर प्रक्रिया में देरी होने की वजह से दिक्कतें आई हैं। पशुपालन विभाग ने दवाइयों की आपात खरीद की अनुमति दी है। पशु अस्पतालों से डिमांड मांगी गई है, जिन दवाओं की कमी है उनकी सरकार द्वारा निर्धारित मानकों के हिसाब से खरीद कर व्यवस्था कराई जाएगी।
- डॉ. अनिल कुमार, नोडल अधिकारी पशुपालन विभाग

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