पीएम मोदी के नेतृत्व में 2025 के सुधार, विकसित भारत की ओर बढ़ते तेज कदम
बिल्डिंग परमिट और पर्यावरणीय स्वीकृति में सुधार
वर्ष 2025 भारत के लिए बड़े आर्थिक और संरचनात्मक सुधारों का निर्णायक वर्ष रहा। आयकर छूट, नए आयकर कानून, श्रम संहिताओं के लागू होने, सरल जीएसटी, तेज पर्यावरणीय मंजूरियों और निवेश-अनुकूल नीतियों से अर्थव्यवस्था को गति मिली। भारत ने 8.2 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर्ज की, जिससे मध्यम वर्ग, श्रमिकों और उद्योगों को व्यापक लाभ हुआ।
नई दिल्ली। वर्ष 2025 को एक ऐसे वर्ष के रूप में याद किया जाएगा, जब भारत ने बड़े संकल्पों, तीव्र गति और गहरे सुधारों को लागू करने का रास्ता चुना। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, यह एक ऐसा निर्णायक मोड़ साबित हुआ जब देश ने पुराने और अप्रसंगिक कानूनों की परतों को उतार फेंका, अपनी कर और नियामक व्यवस्थाओं को सरल बनाया, उद्योगों के लिए नए द्वार खोले और शासन व्यवस्था को एक आत्मविश्वास से भरे राष्ट्र की आकांक्षाओं के अनुरूप ढाल दिया। यह वह वर्ष था जब भारत का आर्थिक दर्शन स्पष्टता, व्यापकता और वैश्विक महत्वाकांक्षा की ओर अग्रसर हुआ। इसका प्रभाव ग्रामीण भारत, उद्योगों, लेबर मार्केट और उन उभरते क्षेत्रों में महसूस किया गया जो भविष्य को आकार देंगे। 15 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा नियामक सुधारों और 21वीं सदी के भारत के लिए कानूनों को नए सिरे से तैयार करने का जो आह्वान किया गया था, उसकी गूँज इन सुधारों में स्पष्ट रूप से दिखाई दी। सभी वैश्विक अनुमानों को पीछे छोड़ते हुए, भारतीय अर्थव्यवस्था ने साल 2025 में 8.2 प्रतिशत की आश्चर्यजनक जीडीपी वृद्धि दर्ज की। यह कराधान से लेकर श्रम सुधारों तक, बंदरगाहों के आधुनिकीकरण से लेकर परमाणु ऊर्जा तक और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से लेकर मुक्त व्यापार समझौतों के साथ-साथ महत्वपूर्ण डीरेगुलेशन जैसे ऐतिहासिक सुधारों के जरिए अर्थव्यवस्था में नए प्राण फूंकने का परिणाम था।
आयकर क्रांति : मध्यम वर्ग को बड़ी राहत
वर्ष 2025 भारत के मध्यम वर्ग के लिए एक क्रांतिकारी बदलाव लेकर आया, जिसमें एक ऐसा आयकर का ऐसा फ्रेमवर्क प्रस्तुत किया गया जो अंतत: मॉडर्न घरेलू बजट की वास्तविकताओं को दर्शाता है। इतिहास में पहली बार 12 लाख तक की वार्षिक आय वाले लोगों को कोई आयकर नहीं देना पड़ा। इसने न केवल परिवारों के लिए महत्वपूर्ण बचत के द्वार खोले, बल्कि उन्हें अधिक आत्मविश्वास के साथ भविष्य की योजना बनाने, निवेश करने और खर्च करने की वित्तीय स्वतंत्रता भी प्रदान की। इसके साथ ही, भारत ने 4,000 से अधिक संशोधनों और हजारों जटिलताओं के बोझ तले दबे 1961 के पुराने आयकर अधिनियम को बदलकर आधुनिक और सरल ,आयकर अधिनियम, 2025 को लागू किया। यह नया कानून छूट को तर्कसंगत बनाता है, कानूनी विवादों को कम करता है, स्पष्टता बढ़ाता है और स्वैच्छिक कर अनुपालन को मजबूती देता है। यह औपनिवेशिक काल के पुराने विधायी ढांचे से एक निर्णायक अलगाव है और एक पारदर्शी, तकनीक-आधारित कर प्रशासन के नए युग में भारत के प्रवेश का शंखनाद है।
श्रम सुधार : भारत की विकास गाथा के केंद्र में श्रमिक
वर्ष 2025 वह पहला वर्ष बना जब श्रम संहिताओं ने भारत के कार्य-जगत को प्रत्यक्ष और निर्णायक रूप से एक नया आकार दिया। 29 जटिल एवं अलग-अलग कानूनों को चार आधुनिक संहिताओं में समाहित करके, भारत ने एक ऐसा लेबर फ्रेमवर्क तैयार किया जो बिजनेस के लिए अधिक स्पष्ट और श्रमिकों के लिए अधिक सुरक्षित है। उचित वेतन, सुगम औद्योगिक संबंधों, व्यापक सामाजिक सुरक्षा और सुरक्षित कार्यस्थलों पर अधिक बल देते हुए, ये सुधार भारत के श्रम बाजार को 64.33 करोड़ की बढ़ती श्रमशक्ति की सहायता करने, महिलाओं की उच्च भागीदारी को प्रोत्साहित करने और अर्थव्यवस्था के विस्तार के साथ-साथ बेरोजगारी के स्तर को कम बनाए रखने के लिए तैयार करते हैं।
हाल के श्रम सुधारों ने भारत के कार्यबल के बड़े हिस्से तक सामाजिक सुरक्षा का विस्तार किया है। अब लगभग 10 मिलियन गिग वर्कर्स को 5,000 से 10,000 तक की वार्षिक सामाजिक सुरक्षा सहायता मिल रही है। साथ ही, 5 से 7 करोड़ कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स को कर्मचारी भविष्य निधि और कर्मचारी राज्य बीमा के दायरे में लाया जा रहा है, जिससे प्रत्येक श्रमिक को प्रति वर्ष 15,000 से ?25,000 तक का लाभ मिलेगा। इसके अतिरिक्त, नया नेशनल मिनिमम वेज लागू होने से 150 से 180 मिलियन कम वेतन पाने वाले श्रमिकों की आय में वृद्धि होना तय है।
अगली पीढ़ी के जीएसटी सुधार : एक सरल, न्यायसंगत और अधिक पारदर्शी व्यवस्था
वर्ष 2025 में भारत की जीएसटी व्यवस्था में अब तक का सबसे महत्वपूर्ण सरलीकरण देखा गया। 5 प्रतिशत और 18 प्रतिशत के दो स्पष्ट स्लैब वाली संरचना को अपनाने से परिवारों, एमएसएमई, किसानों और श्रम-प्रधान क्षेत्रों पर कर का बोझ कम हुआ। इस सुधार का उद्देश्य विवादों को कम करना, कर अनुपालन में सुधार करना और डिजिटल निगरानी को मजबूत करना था, जबकि वित्तीय संतुलन बनाए रखने के लिए सिन गुड्स को इस नई संरचना से बाहर रखा गया। इसका सीधा प्रभाव कंज्यूमर सेंटिमेंट में दिखाई दिया, जहाँ भारत में दिवाली पर 6.05 ट्रिलियन की रिकॉर्ड बिक्री हुई और पिछले एक दशक में नवरात्रि की सबसे शानदार बिक्री देखी गई। इन सुधारों के परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं पर जीएसटी का औसत बोझ 5 प्रतिशत कम हुआ, जबकि कुछ मामलों में यह कमी 20 प्रतिशत तक रही, जिससे जनता की जेब में लगभग 1 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त बचत हुई। साथ ही, जीवन और स्वास्थ्य बीमा पर जीएसटी में कटौती से सालाना 50,000 करोड़ रुपये की बचत सुनिश्चित हुई। प्रीमियम कम होने से न केवल लोगों का आर्थिक बोझ कम हुआ, बल्कि जीवन और स्वास्थ्य बीमा अपनाने की दर में भी बड़ी वृद्धि देखी गई। पंजीकरण प्रक्रियाओं के सरलीकरण से छोटी फर्मों के लिए पंजीकरण का समय 30 दिनों से 90 प्रतिशत घटकर अब 3 दिन रह गया है।
बिल्डिंग परमिट और पर्यावरणीय स्वीकृति में सुधार :
मोदी सरकार ने हरित क्षेत्र के लिए पहले से अनिवार्य 33 प्रतिशत की एक समान शर्त में ढील देकर और उद्योग की प्रदूषण क्षमता के आधार पर एक विभेदित प्रणाली शुरू करके विनिर्माण इकाइयों के निर्माण के नियमों को सरल बना दिया है। इस कदम से लगभग 1.2 लाख हेक्टेयर औद्योगिक भूमि उपयोग के लिए उपलब्ध होगी, परियोजना लागत में 20 प्रतिशत तक की कमी आएगी और 20-30 लाख करोड़ के निवेश को गति मिलेगी। इसी तरह, किसी इंडस्ट्रियल पार्क में मौजूद अलग-अलग इंडस्ट्रियल यूनिट्स, जिसने पहले ही व्यापक पर्यावरणीय स्वीकृति (ईसी) प्राप्त कर ली है, उन्हें आम तौर पर अलग से पर्यावरणीय स्वीकृति लेने की आवश्यकता नहीं होगी। यह कदम, विशेष रूप से टाइम-सेंसिटिव सेक्टर्स में, पर्यावरणीय स्वीकृति मिलने में होने वाली देरी के कारण निवेश और रोजगार में होने वाले नुकसान को रोकेगा और समय की 6 से 18 महीने तक की बचत करेगा। सोलर पावर, साइकिल असेंबली, हथकरघा, वैज्ञानिक उपकरण, चाय पैकेजिंग, जैव-उर्वरक और लकड़ी के फर्नीचर (बिना स्प्रे पेंटिंग वाले) जैसे क्षेत्रों सहित 32 और उद्योगों को व्हाइट कैटेगरी में जोड़ा गया है। इससे कंप्लायंस का बोझ कम होगा और पहली बार व्यापार शुरू करने वाले तथा छोटे उद्यमियों के लिए बाजार में प्रवेश की बाधाएं कम होंगी।

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