जलवायु संकट : लक्ष्यों में बदलाव करना होगा

2024 अब तक का मानव इतिहास में दर्ज सबसे गर्म साल रहा

जलवायु संकट : लक्ष्यों में बदलाव करना होगा

ग्लोबल वार्मिंग आधिकारिक रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गई।

ग्लोबल वार्मिंग आधिकारिक रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गई। साल 2024 अब तक का मानव इतिहास में दर्ज सबसे गर्म साल रहा। ज्यादातर जलवायु सूचकांक ऐसे टिपिंग पॉइंट के करीब पहुंच गए हैं जहां से वापसी मुमकिन नहीं है। ऐसी संभावना है 2025 पिछले साल का रिकॉर्ड भी तोड़ सकता है। पिछले साल अजरबेजान की राजधानी बाकू में हुए जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन में अमीर देशों ने फाइनेंस के नाम पर केवल 300 बिलियन डॉलर का वादा किया, वह भी कई शर्तों के साथ। दूसरी ओर अमेरिका में जलवायु संकट को हौव्वा बताने वाले डोनाल्ड ट्रंप फिर से राष्ट्रपति चुने गए हैं, जो विकासशील देशों के लिए एक नई चुनौती है। जलवायु संकट से सबसे बुरे प्रभाव झेलती प्रभावित भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए इन घटनाओं ने एक बात साफ कर दी, कि जलवायु संकट से निपटने के लिए उन्हें खुद ही फाइनेंस की व्यवस्था करनी होगी। भारत उन देशों में है, जहां जलवायु परिवर्तन के सबसे नुकसानदेह परिणाम हो रहे हैं और राजस्थान जैसे राज्यों को निर्माण, कृषि और व्यापार में इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी। आर्थिक सर्वे में भारत सरकार ने स्पष्ट रूप से कह दिया था कि क्लाइमेट फाइनेंस की कमी से देशों को अपने जलवायु लक्ष्यों में बदलाव करना होगा। 

जीवाश्म ईंधन का प्रयोग बंद करने के अलावा, भारत के लिए एक मजबूत और प्रभावी इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने, स्वच्छ  ऊर्जा अपनाने की गति बढ़ाने और खतरों से घिरे समुदायों का संरक्षण करने के लिए क्लाइमेट फाइनेंस महत्वपूर्ण है। लेकिन अंतर्राष्ट्रीय फाइनेंस न मिलने पर ऐसी क्या वैकल्पिक रणनीतियां हैं जो भारत फाइनेंस पैदा करने के लिए अपना सकता है, विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को वैश्विक स्रोतों जैसे डेवलपमेंट बैंक, सॉवरेन वेल्थ फंड, पेंशन और निजी इक्विटी का उपयोग करना चाहिए, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर बैंकों, एनबीएफसी और बड़े निवेशकों के माध्यम से फंड जुटाना चाहिए। उनका मानना है कि पूंजीगत लागत को कम करना, क्रेडिट एक्सेस और डेवलपमेंट बैंको में सुधार कर फंडिंग को सस्ता बनाना, महंगे कर्ज लेने से बेहतर है। 

विश्व मौसम विज्ञान संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, सूखे, बाढ़ और भूस्खलन से एशिया में आर्थिक नुकसान तेजी से बढ़ा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अकेले 2021 में मौसम संबंधी जोखिमों के कारण कुल 3,560 करोड़ डॉलर की क्षति हुई, जिससे लगभग 5 करोड़ लोग प्रभावित हुए। उसी साल एशिया में 100 से अधिक प्राकृतिक घटनाओं में लगभग 4,000 मौतें हुईं। भारत सरकार का अनुमान है कि पेरिस समझौते के तहत उसे अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान को पूरा करने के लिए उसे 2030 तक 2.5 लाख करोड़ डॉलर की जरूरत होगी, यानि हर साल 17,000 करोड़ डॉलर। चूंकि भारत ने अपने एनडीसी में संशोधन कर लिया है इसलिए यह राशि भी कम पड़ सकती है। बाकू सम्मेलन में जारी एक स्वतंत्र विशेषज्ञ रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक चीन को छोड़कर उभरते बाजारों और विकासशील देशों को क्लाइमेट एक्शन के लिए हर साल 5 लाख करोड़ डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी। इसी सम्मेलन में ग्लोबल साउथ के देशों ने 1.3 लाख करोड़ डॉलर के फाइनेंस की मांग की थी, जबकि उन्हें मिले केवल 30,000 करोड़ डॉलर, जो 2035 तक दिए जाएंगे। 

फाइनेंस में इस बड़ी कमी की भारत सरकार और जलवायु विशेषज्ञों ने कड़ी आलोचना की थी। भारत जैसे 140 करोड़ से अधिक की जनसंख्या और उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाले देश को बुनियादी शिक्षा, रोजगार और गरीबी उन्मूलन जैसे कार्यों के लिए बड़े पैमाने पर फंड्स की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र की 2019 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत को 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अपने सकल घरेलू उत्पाद  जीडीपी का 10 प्रतिशत खर्च करना होगा। यानि प्रति व्यक्ति लगभग 2 डॉलर प्रतिदिन। चूंकि सरकार ज्यादातर घरेलू फंडिंग पर निर्भर होगी, इसलिए भारत के जलवायु लक्ष्य प्रभावित हो सकते हैं। पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने फरवरी 2025 में संसद में कहा था कि भारत को अबतक 116 करोड़ डॉलर का फाइनेंस मिल चुका है, जो उसकी जरूरत 17,000 करोड़ डॉलर  का एक प्रतिशत भी नहीं है। उन्होंने कहा कि ज्यादातर क्लाइमेट एक्शन की फंडिंग के लिए भारत घरेलू स्रोतों पर निर्भर है। पिछले साल क्लाइमेट पॉलिसी इनिशिएटिव की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत ने चुनौतियों के बावजूद ग्रीन फाइनेंस जुटाने में अच्छी प्रगति की है। कर्ज की अधिक लागत विकासशील देशों के लिए एक बड़ी चुनौती है। 

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फाइनेंस के लिए भारत को लंबी अवधि के कम ब्याज वाले लोन, अधिक इक्विटी निवेश और ज्यादा तेजी से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की जरूरत है। चुनौती बड़ी है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अच्छी योजना और स्मार्ट नीतियों की मदद से भारत सतत विकास के एक मजबूत मॉडल का निर्माण कर सकता है।

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-हृदयेश जोशी 
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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