जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर दिल्ली वाले
स्ट्रोक का खतरा
भारत में तेजी से बिगड़ता वायु प्रदूषण सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट को तो बढ़ावा दे ही रहा है, हर साल इससे होने वाली मौतों का आंकड़ा भी बढ़ता जा रहा है।
भारत में तेजी से बिगड़ता वायु प्रदूषण सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट को तो बढ़ावा दे ही रहा है, हर साल इससे होने वाली मौतों का आंकड़ा भी बढ़ता जा रहा है। 2022 में इससे देश में 17.2 लाख मौतें हुई थीं। यह 2010 की तुलना में 38 फीसदी ज्यादा हैं। इससे साबित होता है कि वायु प्रदूषण एक भयावह समस्या का रूप ले चुका है। मौजूदा समय में यदि देश की राजधानी का ही जायजा लें, तो देश की राजधानी आज गैस चैम्बर बन गयी है। दावे भले कुछ भी किये जाएं हकीकत यह है कि दिल्ली वाले पिछले 120 दिन से जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं और इसका सबसे बड़ा कारण दिल्ली की हवा में सुधार की गुंजाइश बिल्कुल नहीं दिखाई देना है। सबसे बड़ी बात यह कि इस बार इस मौसम की सबसे प्रदूषित हवा है, जिसमें राहत के कोई आसार नहीं हैं। वायु गुणवत्ता के आंकड़े हर साल सवालों के घेरे में रहते हैं।
सोलह गुणा ज्यादा खराब :
औसत एक्यूआई में सभी 39 मानीटरिंग स्टेशनों के आंकड़े शामिल ही नहीं किये जाते। यह हालत अकेले दिल्ली की नहीं, गाजियाबाद समेत कमोबेश पूरे एनसीआर की है। गाजियाबाद तो पिछले दिनों गंभीर वायु गुणवत्ता वाला देश का इकलौता शहर था। दिल्ली में एक्यूआई अभी भी 400 के पार है। वह बात दीगर है कि एक आध इलाके इसके अपवाद हों। अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक दिल्ली की हवा सोलह गुणा ज्यादा खराब है। असलियत में यदि एक दिन भी प्रदूषित हवा में सांस ले ली तो इंसान बीमार पड़ सकता है, जबकि दिल्ली की हालत तो उससे भी बदतर है। प्रदूषण के चलते दिल्ली के लोग स्वास्थ्य आपातकाल का सामना कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पीएम 2.5 का सालाना औसत 05 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर होना चाहिए।
सांस लेना भी दूभर :
अमेरिका में यह मानक 09 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर निर्धारित है। भारत की भौगोलिक व जलवायु कारकों को मद्देनजर रखते हुए यह मानक 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रखा गया है। लेकिन अभी तक दिल्ली में पी एम 2.5 का औसत मानक 79.81 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा है। नतीजा यह है कि जहरीली हवा में सैर करना तो दूर की बात है, सांस लेना भी दूभर हो गया है। प्रदूषित हवा लोगों की रोजाना की जिंदगी, सेहत और आदतों पर सीधा हमला कर रही है। पी एम 2.5 के स्तर में भयावह स्तर तक बढ़ोतरी के चलते बीमारी का खतरा 8.6 फीसदी बढ़ गया है। प्रदूषण से शरीर का कोई भी अंग वह चाहे दिमाग हो, आंख हो, हृदय हो, फेफड़े हों, लिवर,हड्डी, त्वचा, नाक, गला या पेट हो, जो बुरी तरह प्रभावित न हुआ हो। प्रदूषण का खतरा तो प्रदूषण बढ़ने पर पहले दिन से ही शरीर पर होने लगता है।
स्ट्रोक का खतरा :
अस्पतालों में इनकी भीड़ इसका जीता-जागता सबूत है। जबकि जहरीली हवा के चलते अकेले देश की राजधानी में ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ रहा है। हालात की गंभीरता इससे समझी जा सकती है कि ब्रेन स्ट्रोक के शिकार तीन मरीजों में से एक की मौत हो जाती है। जानकारों की मानें तो हर साल लगभग 30 हजार लोग ब्रेन स्ट्रोक के शिकार होते हैं और उनमें से तकरीब 35 फीसदी लोगों की मौत हो जाती है। डाक्टर कहते हैं कि प्रदूषण केवल अब सांस की बीमारी नहीं रही है। यह मस्तिष्क के रक्तप्रवाह और स्रायु कोशिकाओं को भी प्रभावित करता है। इससे जिन लोगों को पहले से डायबिटीज, हाईब्लड प्रैशर या हृदय रोग है, उनको ज्यादा जोखिम रहता है। डाक्टर तो बच्चों को खुले स्थानों पर खेलने से मना कर रहे हैं।
विशेषज्ञ का कहना है :
बालरोग विशेषज्ञ का कहना है कि पिछले दिनों में अस्पतालों में सांस की बीमारी के बच्चों की तादाद पचास फीसदी से ज्यादा बढ़ गयी है। उनके अनुसार पी एम 2.5 का स्तर बढ़ने से ये कण सांस के जरिये सांस की नली व फेफड़े में प्रवेश कर जाते हैं। बाहर खेलते समय उनकी सांस तेज चलती है, ऐसे में प्रदूषक तत्व जल्दी से बच्चों के फेफड़ों में पहुंच जाते हैं, जिससे उनके फेफड़ों में संक्रमण की संभावना ज्यादा होती है। यह स्थिति तब और खतरनाक हो सकती है जब उत्तर भारत में काली खांसी यानी हूपिंग कफ नामक बीमारी बच्चों में तेजी से फैल रही है। इसका खुलासा पीजीआई के शोध में हुआ है। शोध में खुलासा हुआ है कि उत्तर भारत में तेजी से फैल रहा यह वैक्टीरिया, बांडेटेला होल्स अब काली खांसी के समान लक्षण पैदा कर रहा है। यह संक्रमण खासतौर पर पांच से दस साल के बच्चों में फैल रहा है और इसके नियंत्रण में कठिनाई आ रही है।
सुप्रीम कोर्ट का कहना :
दिल्ली में जहरीली हवा के चलते दम घुटने के मामलों पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि हालात बहुत गंभीर हैं और दिल्ली वालों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए मास्क पर्याप्त नहीं हैं। उसने एनसीआर में वायु प्रदूषण के लिए दीर्घकालिक समाधान पर जोर देकर चेतावनी देते हुए कहा कि सभी प्रदूषणकारी गतिविधियों पर साल भर पाबंदी नहीं लगायी जा सकती। जहां तक कूड़ा जलाने का सवाल है, दिल्ली में कूड़े की समस्या बहुत पुरानी है। इसका समाधान बेहद जरूरी है। हकीकत यह है कि दिल्ली में हर गली और सड़कें कूड़ाघर बन गयी हैं। इससे जहां हादसों में बढ़ोतरी होती है,वहीं कचरे में आग लगाये जाने पर कोई रोक नहीं है। इससे प्रदूषण बढ़ रहा है। कूड़े के पहाड़ भी एक बड़ी समस्या है। इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता कि दिल्ली में बाहर से आने वाले प्रदूषण पर कोई रोकटोक नहीं है। उस पर रोक लगायी जानी चाहिए।
-ज्ञानेन्द्र रावत
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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