महंगाई पर चर्चा

विपक्ष की मांग भी गलत नहीं थी

महंगाई पर चर्चा

इसे लेकर संसद के मानसून सत्र के शुरू से गतिरोध भी बन हुआ था। विपक्ष की मांग भी गलत नहीं थी। आखिर लोकसभा में महंगाई पर चर्चा शुरू हुई, तो केवल आरोपों के अलावा उसमें कोई गंभीरता दिखाई नहीं दी।

महंगाई के मुद्दे को लेकर विपक्ष पिछले कुछ दिनों से लगातार संसद में बहस की मांग कर रहा था। इसे लेकर संसद के मानसून सत्र के शुरू से गतिरोध भी बन हुआ था। विपक्ष की मांग भी गलत नहीं थी। आखिर लोकसभा में महंगाई पर चर्चा शुरू हुई, तो केवल आरोपों के अलावा उसमें कोई गंभीरता दिखाई नहीं दी। कांग्रेस ने रिकार्ड स्तर पर महंगाई के लिए सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया, तो भाजपा ने कोरोना महामारी के बाद भी देश में किसी तरह का कोई संकट नहीं है। भाजपा ने सरकार की नीतियों को सही बताया, जबकि संसद में महंगाई पर लगाम लगाने के उपायों पर दोनों पक्षों को गंभीर चर्चा करनी चाहिए थी। महंगाई 15.88 फीसदी है और कीमतें रिकार्ड स्तर पर है। महंगाई दर ने पिछले 8 साल का रिकार्ड तोड़ दिया है। गरीब व मध्य वर्ग को अपना जीवन चलाना मुश्किल हो रहा है।

महंगाई के कारणों पर जब भी सवाल किया जाता है, तो सरकार का एक ही जवाब सामने आता है कि कच्चे तेल के दाम काफी बढ़े हुए है और अन्य देशों के आर्थिक हालात कमजोर बने हुए है, लेकिन सरकार की यह दलील उचित प्रतीत नहीं होती। देश में सरसों के तेल से लेकर सभी प्रकार के तेल 200 से 300 रुपए प्रति किलो बिक रहे हैं। गेहूं से लेकर सभी तरह के अनाज काफी महंगे हैं। दालों की कीमत हर दिन बढ़ रही है। आखिर इन वस्तुओं की चीजों की महंगाई से वैश्विक मंदी कहां जिम्मेदार है, क्यों नहीं माना जाता कि इसके पीछे आंतरिक कारण ही ज्यादा जिम्मेदार है। देश में खाने-पीने की अधिकांश महंगाई या तो जमाखोरी व विक्रेता कार्टेल की वजह से है या फिर सरकार की तरफ से आपूर्ति फ्रंट पर कुप्रबंधन की वजह से है। खाद्यान्न मामले में भारत आत्मनिर्भर है। दलहन व तिलहन की आपूर्ति तंत्र को सुधारा जा सकता है। सब्जी, दूध और फल की कीमतों को भी सरकार नियंत्रित कर सकती है। सरकार महंगाई के मोर्चे पर गंभीरता से काम करना होगा और संबंधित सभी कारणों को जानना होगा। महंगाई पर संसद में चर्चा हुई, लेकिन परिणाम क्या निकला। ऐसी व्यर्थ की चर्चा का आखिर क्या औचित्य है।

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