ब्रिक्स सम्मेलन के जरिए कराया शक्ति का अहसास

ब्रिक्स सम्मेलन के जरिए कराया शक्ति का अहसास

रूस के ऐतिहासिक शहर कजान में ब्रिक्स का 16 वां शिखर सम्मेलन संपन्न हुआ

पिछले सप्ताह रूस के ऐतिहासिक शहर कजान में ब्रिक्स का 16 वां शिखर सम्मेलन संपन्न हुआ। यह सम्मेलन ऐसे समय हुआ जब विश्व में दो विभिन्न मोर्चों पर युद्ध चल रहे हैं। सम्मेलन का मेजबान देश रूस जो खुद यूक्रेन के साथ पिछले ढाई साल से अधिक समय से युद्ध में उलझा हुआ है। दूसरी ओर पश्चिमी एशिया क्षेत्र में पिछले एक साल से इजराइल-हमास के बीच जंग जारी है। जो विस्तारित हो लेबनान, सीरिया और ईरान तक को लपेट चुकी है। ऐसे माहौल में विश्व में तेजी से विकास की ओर बढ़ रही अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का सम्मेलन होना अपने आप में न केवल महत्वपूर्ण है बल्कि इससे कई संदेश भी निकल रहे हैं। जिसकी झलक शिखर सम्मेलन के बाद जारी हुए साझा बयान में दिखाई दी। इसका सबसे अहम बिंदु-संयुक्त राष्ट्र के नियमों के विपरीत कुछ देशों पर गैरकानूनी पाबंदियां लगाया जाना है। इससे कुछ ताकतवर देश बाज आएं। इससे साफ  जाहिर होता है कि अमेरिका सहित पश्चिमी देश जिन्होंने रूस और ईरान पर कई तरह की आर्थिक पाबंदियां लगा रखी हैं, को यह संदेश दिया गया है। युद्ध के माहौल में रूस ने त्रिदिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें तीस देशों ने भाग लिया। इसके जरिए पश्चिमी देशों को ब्रिक्स संगठन की मजबूती का भी अहसास करा दिया। इसमें पश्चिमी-प्रभुत्व वाली भुगतान प्रणालियों के विकल्पों को विकसित करने, संघर्षों के खात्मे के प्रयास करने, वित्तीय सहयोग बढ़ाने और ब्रिक्स देशों के समूह के विस्तार जैसे मुद्दे शामिल हैं। मौजूदा पश्चिमी एशिया के हालात के जिक्र के साथ साझा बयान के जरिए गाजा पट्टी में इजराइली हमले की आलोचना की गई। उससे स्थायी संघर्ष विराम, पीड़ितों तक मानवीय सहायता पहुंचने देने की मांग की गई। कजान घोषणापत्र में जलवायु परिवर्तन को किसी भी तरह से सुरक्षा मामलों से नहीं जोड़ने की मांग की गई।

पश्चिमी देशों की राय है कि यह मुद्दा संयुक्त सुरक्षा परिषद का विषय होना चाहिए, क्योंकि इससे अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा पर असर पड़ सकता है। मगर भारत के साथ अन्य विकासशील देश चाहते हैं कि सुरक्षा परिषद की इस मुद्दे पर कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण पर गौर करना होगा। जिसमें उन्होंने ब्रिक्स संगठन की असली भावना को परिभाषित किया है। उन्होंने बताया कि यह संगठन कोई विभाजनकारी संगठन नहीं है, बल्कि मानवता को आगे बढ़ाने की पहल के लिए है। हम युद्ध में नहीं, बातचीत और कूटनीति में विश्वास करते हैं। दुनिया के गंभीर मसलों पर दोहरे रवैये को नहीं अपनाया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी का इस बात पर भी जोर था कि ब्रिक्स का गठन आर्थिक मुद्दों पर व्यापक विचार-विमर्श के रूप में किया गया था। ऐसे में संगठन सदस्यों को आर्थिक एकीकरण की दिशा में परस्पर अपनी मुद्रा में कारोबार करना चाहिए। इसमें कोई दोराय नहीं कि उनके सुझाव से अधिकांश देश सहमत दिखाई दिए। वहीं, उनके संगठन विस्तार के सुझाव पर भी सहमति जताई गई। आज हमारे पड़ोसी पाकिस्तान और अन्य देशों के साथ नाटो संगठन से जुड़े तुर्किए जैसे देश भी इस संगठन से जुड़ना चाहते हैं। ये करीब 30 देश हैं। इससे साफ  जाहिर होता है कि यह संगठन कितना ताकतवर बनने जा रहा है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का कहना था कि पश्चिमी देश यूक्रेन का इस्तेमाल, हमारे महत्वपूर्ण हितों, चिंताओं और रूसी लोगों के अधिकारों के विरुद्ध करना चाहते हैं। जो कि हमारी सुरक्षा के लिए एक खतरा है।

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि ग्लोबल साउथ को विश्व के पटल पर आगे बढ़ाना होगा। ब्रिक्स प्लस देशों की मजबूती से वैश्विक शांति और सुरक्षा सुनिश्चित होगी। आउट रीच सत्र में भारतीय विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने संवाद के जरिए विवादों एवं मतभेदों के समाधान निकालने, समता मूलक वैश्विक व्यवस्था के लिए पांच सूत्री मंत्र दिया। क्षेत्रीय अखंडता के प्रति सम्मान और वैश्विक ढांचे में आई विकृतियों को सुधारने पर भी जोर दिया।  कजान सम्मेलन की सबसे अहम घटना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात रही। दोनों नेताओं ने न सिर्फ  मुलाकात की, बल्कि अलग से बैठक कर वर्षों से जारी सीमा विवाद को सुलझाने की दिशा में कदम बढ़ाने पर सहमत हुए। चार साल तक चले लंबे और अप्रिय विवादों के बाद दोनों देशों के बीच सहमति बनना बड़ी बात तो है ही। बता दें कि आरंभ में आर्थिक एवं व्यापारिक विषयों पर केंद्रित होकर ब्राजील, रूस, भारत और चीन चार देशों ने एक क्षेत्रीय संगठन बनाने का निश्चय किया था। तब यह समूह ‘ब्रिक’ कहलाता था। वर्ष 2009 में इसका पहला सम्मेलन आयोजित हुआ था। वर्ष 2010 में दक्षिण अफ्रीका इसका सदस्य बना, इसके बाद इस संगठन का नामकरण ‘ब्रिक्स’ हुआ। इस साल मिस्र, ईरान, इथियोपिया और संयुक्त अरब अमीरात भी इस सम्मेलन में शामिल हुए। इस संगठन की सदस्यता पाने के लिए कई देश कतार में हैं। यदि फिलहाल उन्हें भी जोड़ दिया जाए तो यह संख्या बढ़कर तीस तक जा पहुंचती है। नए विस्तार के बाद ब्रिक्स सिर्फ आर्थिक और व्यापारिक मसलों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि भू-राजनीति, पर्यावरण, विज्ञान-प्रौद्योगिकी आदि विषयों तक इसका विस्तार हो चला है। ऐसे में भारत को यह ध्यान में रखना होगा कि कहीं यह संगठन रूस-चीन का पिछलग्गू नहीं बन सके।     

महेश चंद्र शर्मा
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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