कमजोर प्रतिरोधक क्षमता पर फंगस का वार
ठोस पहल की जरूरत
दुनियाभर में सेहत हमेशा से सबसे बड़ा चिंता का विषय रहा है।
दुनियाभर में सेहत हमेशा से सबसे बड़ा चिंता का विषय रहा है। सबसे ज्यादा चिंता इस बात की है कि पूरी दुनिया आने वाले समय में फंगस की वजह से नया स्वास्थ्य संकट झेलने को मजबूर होगी। क्योंकि दुनिया में ब्लैक फंगस के हर साल 100 करोड़ लोग शिकार हो रहे हैं। दुनिया में एस्परजिलस फ्यूमिगेटसेफ नामक एक घातक फंगस गंभीर खतरा बन सकता है। यह फंगस एशिया समेत दुनियाभर में फेफड़ों के रोगों को तेजी से बढ़ा सकता है। यदि समय रहते सावधानी नहीं बरती गई तो यह फंगस लाखों लोगों की जान ले सकता है। यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर के अध्ययन में इसकी चेतावनी दी गई है।
फंगस है जानलेवा :
यह फंगस गर्म और नम वातावरण में तेजी से बढ़ता है और 37 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी जीवित रह सकता है। यह फंगस उन लोगों के लिए जानलेवा है, जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है और जो धूल वाले वातावरण में रहते हैं व अस्थमा,कैंसर,एच आई वी,अंग प्रत्यारोपण वाले मरीज, बुजुर्ग तथा लम्बे समय से बीमार होते हैं। अकेले योरोप में ही इससे 90 लाख लोग संक्रमित हो सकते हैं। एक खतरा और भी दुनिया की 44 फीसदी आबादी पर मंडरा रहा है,वह है जानवरों से होने वाले जूनोटिक रोग का। दुनियाभर के 3.5 अरब लोग इसकी जद में आ सकते हैं। इसकी चपेट में भारत, चीन और दक्षिण पूर्व एशिया की दस फीसदी आबादी पर सबसे ज्यादा जोखिम है।
अध्ययन में सामने आया :
इस रोग की फैलने की दर वहां ज्यादा है, जहां की इंसानी आबादी वन्यजीवों के ज्यादा संपर्क में आती है। अध्ययन में यह भी तथ्य सामने आया कि गाय,भैंस,बकरी और कुत्ते जैसे पालतू जानवरों से इन्सेंफेलाइटिस जैसी गभीर बीमारी होने का खतरा है। दरअसल जानवरों के शरीर पर पायी जाने वाली किलनी यानी अठई के खून में घातक वैक्टीरया पाये जाते हैं, जिससे इंसेफेलाइटिस जैसा ही एक्यूट फेब्रायल इलनेस रोग हो सकता है। इसका निष्कर्ष आई सीएमआर के रीजनल मेडीकल रिसर्च सेंटर के शोध से सामने आया है। इसमें पाया गया कि इंसानों की बस्ती के पास पायी जाने वाली स्तनपायी प्रजातियों में चमगादड, वानर और लीमर हैं, जिनसे इस तरह की बीमारी हो सकती है।
रोग की रोकथाम :
सरकारी अस्पतालों की हालत बेहद खराब है। डेंगू जैसे रोग की रोकथाम के लिए कोई वृहद कार्यक्रम नहीं है। देश में विभिन्न गंभीर रोगों के मरीजों की तादाद बेतहाशा बढ़ रही है। इलाज का खर्च लोगों को गरीब बना रहा है। यह न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक विकास को भी बाधित करता है। इससे भविष्य की मानव पूंजी पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। इसमें दो राय नहीं कि देश में गैर संचारी बीमारियों का खतरा लगातार बढ़ रहा है। इसके चलते इन बीमारियों से मरने वालों की तादाद मे बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की मानें तो देश में 66 फीसदी मौतें गैर संक्रामक बीमारियों के कारण हो रही हैं। हृदय रोग,मधुमेह और कैंसर जैसी बीमारियां 30 साल से अधिक उम्र के लोगों में तेजी से फैल रही हैं, जो गम्भीर चुनौती बन चुकी हैं।
हालत चिंताजनक है :
2040 तक भारत में कैंसर के रोगियों की तादाद दोगुने से भी ज्यादा होने की आशंका है। और तो और वायु प्रदूषण से कैंसर का खतरा बढ़ रहा है। एशिया के 21 देशों के अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि भारत समेत एशिया में कैंसर नियंत्रण की योजनाएं बेहद कमजोर हैं। जबकि सिंगापुर, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने कैंसर के रोकथाम की पांच वर्षीय योजनाओं को अपनाकर मृत्युदर को कम करने में कामयाबी पायी है। जबकि दूसरे एशियाई देशों की हालत चिंताजनक है। जहां तक मोटापे का सवाल है, इससे जुड़ी बीमारियों के बढ़ने की आशंका ने को दृष्टिगत रखते हुए प्रधानमंत्री ने देशवासियों को स्वस्थ जीवन शैली अपनाने की सलाह दी है।
ठोस पहल की जरूरत :
विश्लेषण के अनुसार मोटापे से निपटने के लिए अभी से ठोस पहल किए जाने की जरूरत है अन्यथा भारत में 2050 तक 45 करोड वयस्क मोटापे के शिकार होंगे। भारत में सेकेंडरी मिर्गी के मामलों की दर अधिक है, जो किसी दूसरी बीमारी, संक्रमण या सिर की चोट के कारण उत्पन्न होती है। पिछले एक दशक में इंडोनेशिया में मिर्गी के मामले सबसे तेजी से बड़े हैं, जबकि रूस में इसके मामलों में सबसे ज्यादा गिरावट आई है। हमारे देश में मिर्गी को लेकर अभी भी जागरूकता की बेहद कमी है, जिसके चलते समय पर रोगी को इलाज नहीं मिल पाता। ग्रामीण अस्पतालों में मधुमेह और ब्लड प्रेशर की दवाओं का संकट है। इसका खुलासा भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और विश्व स्वास्थ्य संगठन के सर्वे में हआ है।
प्रयास किए जाएं :
अस्पतालों में नर्सिंग स्टाफ व डाक्टरों की कमी जगजाहिर है, जिससे चिकित्सा सुविधाओं पर और मरीजों की देखभाल पर असर हो रहा है। विडम्बना यह है कि नये विभाग खुलने और वहां बैड की संख्या बढ़ने के बाद भी नर्सिंग स्टाफ और डाक्टरों की तादाद में कोई बढ़ोतरी नहीं की गयी है। मजबूरन कर्मचारियों को तीन-तीन पारियों में काम करना पड़ता है। आयुष्मान भारत योजना और पोषण अभियान, जहां एक महत्वपूर्ण और सकारात्मक संकेत है, वहीं ये सरकार के सराहनीय प्रयास भी है लेकिन स्वास्थ्य के क्षेत्र में अवसरों के साथ - साथ मौजूद गहन असमानताओं और चुनौतियों के बीच वर्ष दो हजार पच्चीस की थीम स्वस्थ्य शुरूआत, आशापूर्ण भविष्य की कल्पना तभी सार्थक होगी जबकि समग्र स्वास्थ्य नीति, समुचित बजट और सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच सुनिश्चित करने के प्रयास किए जाएं।
-ज्ञानेन्द्र रावत
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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