जलजनित संकटों से जूझता भारत
जनजीवन प्रभावित
जब से तुचक्र बिगड़ा है, तब से वर्षा का वर्षण भी अनिश्चित हो चुका है।
जब से तुचक्र बिगड़ा है, तब से वर्षा का वर्षण भी अनिश्चित हो चुका है। इसी वर्षा ऋतु से पहले चारों ओर अतिवृष्टि के कारण आई बाढ़ ने जनजीवन के लिए मृत्यु से लेकर अनेक अन्य संकट उत्पन्न कर दिये हैं। पंचांग तथा वार्षिक अंकपत्र के अनुसार श्रावण मास अब कुछ दिन पूर्व ही आरंभ हुआ है, किंतु अत्यधिक वर्षा के कारण देश के अधिसंख्य प्रांत ही नहीं, बल्कि अन्य देशों के कई प्रांतों में भी बाढ़ की स्थितियां निर्मित हुई हैं। मई के अंत से लेकर पूरे जून माह तक राजधानी दिल्ली सहित उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, बिहार, असम में अनिश्चित, अनियंत्रित तथा उथल-पुथल मचाने वाली वर्षा ने जनजीवन को संकट में डाल दिया था। अप्रैल के बाद अब सावन के आगमन तक देश में बादल फटने, बिजली गिरने तथा अतिवृष्टि के कारण आई बाढ़ से हजारों लोग मारे जा चुके हैं।
जलवायु असंतुलन :
भारत ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान, दक्षिण कोरिया इत्यादि देशों में भी अत्यधिक वर्षा के कारण आई जलप्रलय में कई सौ लोग मारे गए हैं। लाखों-करोड़ों रुपये मूल्य की व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक संपत्तियां नष्ट हो चुकी हैं। यह परिस्थिति प्राकृतिक प्रतिकूलताओं तथा जलवायु असंतुलन की पुनरावृत्ति के कारण गत तीस-चालीस वर्षों से हरेक वर्ष अधिक भयंकर रूप में उत्पन्न हो रही है। बाढ़ के बहते हुए पानी तथा विशाल क्षेत्र में ठहरे हुए कीचड़ से युक्त पानी के कारण अकल्पनीय समस्याएं होती हैं। प्रकार-प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। अतिवृष्टि तथा बाढ़ के उपरांत निरंतर आकार लेनेवाली जलजनित समस्याओं का निदान कुछ दिनों, सप्ताहों अथवा माहों में नहीं हो पाता। ऐसी समस्याएं बनी रहती हैं तथा समस्याग्रस्त लोगों के जीवन को अकल्पनीय बुराइयों के अधीन करके भयंकर ढंग से असुरक्षित कर देती हैं।
जनजीवन प्रभावित :
अतिवृष्टि की बाढ़ द्वारा सामान्य लोगों का जीवन किस सीमा तक प्रभावित होता होगा, इसका आभास बाढ़ से घिरे सामान्य लोगों के साथ रहकर ही हो सकता है। ऐसी स्थितियों-परिस्थितियों से घिरे लोगों की जीवन-असुरक्षा अत्यंत भयाक्रांत होती है। इस लेखक ने उत्तराखंड के एक जनपद मुख्यालय से कुछ दूर स्थित एक लघु उप-नगर में रहते हुए निरंतर दो वर्षों तक वर्षा की अतिवृष्टि से उत्पन्न बाढ़ में अपने आवास तथा उसके चहुंओर के क्षेत्र को निरुपाय होकर केवल और केवल ईश्वर के भरोसे सुरक्षित होने की प्रार्थना करते देखा व भोगा है। ऐसी अतिवृष्टि, ऐसी बाढ़, ऐसी आपदा से प्रत्यक्ष प्रभावित लोग भाग्य के बूते ही जीवित रह पाते हैं।
प्राकृतिक आपदाएं :
शासन, समाज, सहायता प्रदान करनेवाले संगठनों तथा संबंधियों द्वारा सहायता-धनराशि एवं अन्य जीवन-सुविधाएं तत्काल व सुगमतापूर्वक प्रदान नहीं की जातीं। इन्हें प्राप्त करने के लिए भी पीड़ित व्यक्तियों को संघर्ष करना पड़ता है। इन परिस्थितियों में जब पीड़ितों का जीवन चहुंओर से असुरक्षित तथा संघर्ष में व्यतीत होता है तो उनका मन अवसादग्रस्त हो जाता है। उनकी आत्मा निर्बल हो जाती है। प्राकृतिक आपदाओं के देखे-भोगे गए संकट का प्रतिघात तथा आपदा के संकट से निकलने के बाद जीवन जीने की असुरक्षा व संघर्ष में व्यतीत होते दिनों का दु:ख इतना गहन होता है कि पीड़ित व्यक्ति जीवनभर आत्मविश्वास अर्जित नहीं कर पाता। वास्तव में जलजनित आपदाओं का भौतिक तथा मानसिक आघात वही अनुभव कर सकता है, जिसने इन्हें प्रत्यक्ष भोगा हो।
जलजन्य संकट :
सावन के माह से पहले ही देश के विभिन्न राज्यों में एक ही स्थान पर अत्यधिक वर्षण होने से स्थान-स्थान पर जो जलजन्य संकटकारी परिस्थितियां निर्मित हुई हैं, उसने प्राकृतिक असंतुलन को नवीन विकृत ढंग से प्रकट किया है। असंतुलन की ऐसी पुनरावृत्ति के कारण विगत चालीस-पचास वर्षों में हजारों-लाखों लोग मरे हैं। अनेक लोगों की संपत्तियां-परिसंपत्तियां नष्ट हुई हैं। लोगों के जीवन का हर पक्ष, जैसे कि जीविका, शिक्षा, स्वास्थ्य, समाज, परिवार,संस्कृति, मन, आत्मविश्वास, इत्यादि सभी पर भयंकर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
समस्याओं का निराकरण :
प्राय: शासन पर ही देश व समाज की प्राकृतिक तथा सामाजिक, सभी प्रकार की समस्याओं के निराकरण का उत्तरदायित्व होता है। शासन इसलिए उत्तरदायी होता है, क्योंकि उसके पास व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह से अधिक साधन होते हैं, जिन्हें समस्याओं के समाधान हेतु नियोजित किया जा सकता है। आवश्यकता होने पर शासन व्यक्तियों तथा नागरिकों के जीवन की रक्षा के लिए अपने हर संभव साधन का उपयोग करता है, किंतु शासन, समाज और लोगों को यह विचार करना होगा कि प्राकृतिक आपदाओं के सामने शासकीय साधन भी निरुपाय सिद्ध हुए हैं और होते रहेंगे। ऐसी आपदाओं से सुरक्षित होने के लिए विश्व स्तर पर प्राकृतिक संरक्षण, जलवायु संतुलन तथा की दिशा में अपेक्षित कार्य किए जाने की आवश्यकता है।
-विकेश कुमार बडोला
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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