जानें राज काज में क्या है खास
चर्चा में दोस्ती और दुश्मनी
सूबे में पिछले सात दिनों से कई तरह की चर्चाएं हैं।
अब उनका क्या ?
सूबे में पिछले सात दिनों से कई तरह की चर्चाएं हैं। हों भी क्यों न, मामला ही कुछ ऐसा हो गया। जो भाई लोग डेढ़ साल पहले बड़ी उम्मीदों के साथ किठाना वाले किसान पुत्र के दम पर हाथ से हाथ छुड़ाकर कमल की सुगंध सूंघने गए थे, अब उनकी रातों की नींद और दिन का चैन उड़ा हुआ है। दिन-रात सोच सोच कर दुबले हो रहे हैं। बेचारों ने डैमेज कंट्रोल के नाम पर बड़े-बड़े सपने भी देखने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। पाला बदलते समय न आगा सोचा था और नहीं पीछा। अब कहने वालों का मुंह थोड़े ही पकड़ा जाता है, सो कहते फिर रहे हैं कि बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना होने वालों के साथ तो यही होना था।
मीटिंग, सीटिंग और ईटिंग :
सचिवालय में इन दिनों मीटिंग, सीटिंग और ईटिंग की चर्चा हुए बिना नहीं रहती। चर्चा है कि ब्यूरोक्रैसी रोड मैप तैयार करने में बड़ी कंजूसी कर रही है, जबकि हिस्ट्री गवाह है कि हर कोई बड़ा साहब राज को नई योजनाएं देकर जाता है, जिससे सूबे की तकदीर तक बदलती है। राज का काज करने वाले लंच केबिनों में बतियाते हैं कि गुजरे जमाने में ब्यूरोक्रैसी ने मरु प्रदेश को तीस जिला-तीस काम, अपना गांव-अपनी योजना और अंत्योदय जैसी नई योजनाएं दी हैं, जो पड़ोसी सूबों के लिए रोल मॉडल भी बनी हैं। अब विभागों में मीटिंग्स तो होती है, लेकिन सीटिंग और ईटिंग तक ही सिमट जाती है। अब अकेले बड़े साहब भी क्या करें, जब दूसरों के इशारों पर उनकी प्लानिंग में मीन मेख निकालने वाले आसपास ही घूम रहे हों।
चर्चा में दोस्ती और दुश्मनी :
सूबे में जबसे स्टेट वर्किंग कमेटी के लिए लीडर्स में जंग हुई है, तब से दोस्ती और दुश्मनी को लेकर कानाफूसी बढ़ी है। सरदार पटेल मार्ग पर स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने के साथ इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वालों के दफ्तर में हर कोई आने वाला इसको लेकर कानाफूसी किए बिना नही रहता। राज का काज करने वालों में भी खुसरफुसर है कि स्टेट वर्किंग कमेटी के गठन में भगवा वालों में दोस्ती और दुश्मनी निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। दोस्ती और दुश्मनी को लेकर दिल्ली तक भी शिकायतें की गई, लेकिन अड़ंगा लगाने वालों के चेहरों पर थोड़ी भी सिकन नहीं है। दिल्ली वालों से ज्यादा कौन जानता है कि राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी दोनों ही लंबी नहीं चलती। मतलब के समय दोनों ही बदले बिना नहीं रहती।
एक जुमला यह भी :
सूबे में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं, बल्कि खाकी वालों के साथ कॉर्डिनेशन को लेकर है। पिछले दिनों खाकी और राज के बीच कॉर्डिनेशन के लिए दिल्ली वालों से गहन चिंतन-मंथन के बाद नया प्रयोग हुआ। इसमें पीएचक्यू और सेक्रेटारियट के बीच कॉर्डिनेशन के लिए खाकी वाले बड़े साहब को लगाया गया। अब बेचारे खाकी वाले साहब लोगों को अभी तक यह समझ में नहीं आ रहा कि ऐसा क्या हुआ, जिससे खाकी और राज के बीच कॉर्डिनेशन कम हुआ। वे हर किसी से पूछ रहे हैं, मगर अभी तक उन्हें सही जवाब नहीं मिला।
-एल. एल. शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं।)

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