जाने राजकाज में क्या है खास

सूबे में भगवा वाले भाई लोगों में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा

जाने राजकाज में क्या है खास

सूबे में हाथ वाले भाई लोग पिछले चार दिनों से संकेतों को लेकर कई तरह के मायने निकाल रहे हैं। मायने इसलिए निकाल रहे हैं कि संकेत भी एआईसीसी के ऑफिशिल सोशल मीडिया अकाउंट से मिले हैं।

संकेतों के मायने
सूबे में हाथ वाले भाई लोग पिछले चार दिनों से संकेतों को लेकर कई तरह के मायने निकाल रहे हैं। मायने इसलिए निकाल रहे हैं कि संकेत भी एआईसीसी के ऑफिशिल सोशल मीडिया अकाउंट से मिले हैं। दिल्ली से मिले इन संकेतों के बाद एक खेमे को लोगों के जमीन पर पैर तक नहीं टिक रहे। चूंकि उन्होंने अपने हिसाब से मायने जो निकाले हैं। राज का काज करने वाले भी गहलोत फिर से वाले संकेतों का अपने हिसाब से मायने निकाल कर काम में जुट गए हैं। ढाई साल से ऊछलकूद कर रहे भाई लोगों को भी अब फ्यूचर को लेकर चिन्ता सताने लगी है। इन संकेतों को समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी हैं।

बदलती बॉडी लैंग्वेज
जोधपुर वाले अशोकजी भाईसाहब की बदलती बॉडी लैंग्वेज को लेकर हाथ वाले कई वर्कर माथा लगा रहे हैं, मगर उनके समझ में नहीं आ रहा है कि इसके पीछे का राज क्या है। वे इंदिरा गांधी भवन में बने पीसीसी के ठिकाने से लेकर सचिवालय तक सूंघासांघी कर रहे हैं, मगर उनकी पार नहीं पड़ रही। अब उनको कौन समझाए कि भाईसाहब जो काम दाएं हाथ से करते हैं, तो बाएं हाथ तक को पता नहीं चलने देते। साहब की बदली बॉडी लैंग्वेज से लगता है कि साहब की हर मंशा पूरी हो रही है, और तो और उनको जिनको मैसज देना था, वो बजट सत्र पूरा होने से पहले ही शुक्र को नए जिलों से दे दिया। राजनीति में जो दिखता है, वो होता नहीं और जो होता है, वो दिखता नहीं है। 

कुछ तो गड़बड़ है
सूबे में भगवा वाले भाई लोगों में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा। गड़बड़ भी छोटी-मोटी नहीं, बल्कि दिन का चैन और रातों की नींद उड़ाने वाली है। हाड़ौती और मारवाड़ से शुरू हुई यह गड़बड़ अब पूरे सूबे में पैर पसार चुकी है। इस गड़बड़ ने सूबे के नेताओं के साथ ही दिल्ली वाले मोटा-भाई और बड़े भाई तक की नींद उड़ा दी है। चौकड़ी को समझ में नहीं आ रहा कि ऐसी कौनसी चूक हुई, जिसकी वजह से सबकुछ गड़बड़ हो गया। अब इनको कौन समझाए कि जब नवरात्रों में घर की देवी माताजी को छोड़ दूसरे पीरों के देवरो ढोकेंगे, तो बताशों की आस लगाना बेकार है, देवी माताजी के रौद्र रूप को शांत करने के लिए भोपे को बुलाकर देवरे पर अखाड़ा तो करना ही पड़ेगा। बाकी तो बाबा जाने मन की बात। 

बीबी और कटाक्ष
कटाक्ष और वह भी बीबी करे, तो माथा ठनके बिना नहीं रहता है, चाहे वह कितना ही धुरंधर क्यों ना हो। बेचारों की हालत ऐसी है कि वह किसी के सामने बयां भी नहीं कर सकते। दिन-रात दुबले होते जा रहे हैं। उनके चेहरों पर चिन्ता की लकीरें भी साफ दिखाई देने लगी हैं। गुजरे जमाने में अपना रौब दिखा चुके हाथ वाले कुछ भाई लोगों की इस पीड़ा को न दिल्ली वाले समझ पा रहे हैं और न ही सूबे में राज करने वाले भाईसाहब। उनकी पीड़ा है कि जब वे अपने घर से सफेद झक कपड़े पहन कर निकलते हैं, तो पड़ोसियों के साथ बीबी भी कटाक्ष किए बिना नहीं रहती कि क्या बींद बन कर शपथ लेने जा रहे हो। अब उनकी बीबियों को कौन समझाए कि उनकी हालत तो चाकी के दो पाटियों के बीच फंसे गेहूं से कम नहीं है।

एक जुमला यह भी
सूबे में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं, बल्कि सूबे के अन्नदाताओं से ताल्लुक रखता है। जुमला है कि सूबे में किसान आंदोलन की हलचल तो नहीं है, लेकिन चौपालों पर चर्चा जरूर है। चौपालों पर हो रही इस चर्चा को लेकर सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा के ठिकाने पर भी काफी खुसरफुसर तो है, लेकिन बेचारों में हिम्मत नहीं है कि दिल्ली वालों को समझा दें, कि अन्नदाता की दांतरी को दांतरी ही रहने दो, अगर यह तलवार का रूप ले लेगी, तो कहीं का नहीं छोड़ेगी।

-एल.एल शर्मा

Tags: opinion

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