साझेदारी और बराबरी से ही टिकेगा आधुनिक विवाह
शिक्षित और आत्मनिर्भर
आधुनिक जीवनशैली ने जहां रिश्तों में नए अवसर खोले हैं, वहीं कई नई चुनौतियां भी खड़ी कर दी हैं।
आधुनिक जीवनशैली ने जहां रिश्तों में नए अवसर खोले हैं, वहीं कई नई चुनौतियां भी खड़ी कर दी हैं। शिक्षा, रोजगार और तकनीक ने महिलाओं को पहले से अधिक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाया है। आज की महिला घर के दायरे से निकलकर नौकरी, व्यवसाय और प्रशासनिक जिम्मेदारियों तक सक्रिय रूप से पहुंच रही है। लेकिन विडंबना यह है कि घर की दहलीज के भीतर उसकी स्थिति उतनी नहीं बदली जितनी बदलनी चाहिए थी। अधिकांश परिवारों में अभी भी घरेलू कार्यों की जिम्मेदारी लगभग पूरी तरह से महिलाओं पर ही डाल दी जाती है। इस समस्या का एक नया और चिंताजनक रूप सामने आया है,पति द्वारा घरेलू कामों में जानबूझकर अयोग्यता दिखाना। इसे पश्चिमी समाज में वेपनाइज्ड इनकंपिटेंस कहा जाता है, जिसका सीधा अर्थ है कि पति जानबूझकर घरेलू काम बिगाड़कर यह जताता है कि वह इन कार्यों में सक्षम ही नहीं है। नतीजतन पत्नी को ही दोबारा सब कुछ करना पड़ता है और धीरे-धीरे घर का पूरा बोझ उसी के कंधों पर आ जाता है।
लैंगिक भेदभाव :
यह प्रवृत्ति केवल आलस्य का रूप नहीं है, बल्कि मानसिकता की गहराई में छिपा हुआ लैंगिक भेदभाव है। समाज ने सदियों से यह धारणा बना दी है कि घरेलू काम महिलाओं का दायित्व है और पुरुष केवल बाहर की जिम्मेदारियों तक सीमित हैं। लेकिन आज के समय में जब महिलाएं बाहर भी बराबर की जिम्मेदारी उठा रही हैं, तब यह तर्क न तो न्यायसंगत है और न ही स्वीकार्य। कोरोना महामारी और लॉकडाउन के दौरान यह स्थिति और स्पष्ट होकर सामने आई। जब दफ्तर घरों में सिमट गए, बच्चे पूरे समय घर में रहने लगे और बाहर से सहायक मिलना बंद हो गया, तब लाखों परिवारों में यह देखा गया कि महिलाओं पर काम का बोझ कई गुना बढ़ गया। वे दिनभर ऑनलाइन मीटिंग्स में भी थीं और साथ ही तीन वक्त का खाना बनाने, बच्चों को पढ़ाने,बुजुर्गों की देखभाल करने की जिम्मेदारी भी निभा रही थीं। पति जहां तक संभव हुआ, इन जिम्मेदारियों से बचते रहे और बहाना यही रहा कि वे घर के कामों में उतने माहिर नहीं हैं। इस परिस्थिति ने कई रिश्तों में तनाव को जन्म दिया और कई परिवारों में तलाक और अलगाव की घटनाएं बढ़ीं।
शिक्षित और आत्मनिर्भर :
महिलाएं अब पहले जैसी स्थिति में चुपचाप समझौता नहीं कर रही हैं। शिक्षित और आत्मनिर्भर होने के कारण वे बराबरी की मांग कर रही हैं। उनके लिए विवाह अब केवल परंपरा निभाने का नाम नहीं है, बल्कि एक साझेदारी है। इस साझेदारी का अर्थ है कि दोनों साथी मिलकर घर की जिम्मेदारियां बांटें। जब पति जानबूझकर अयोग्यता दिखाता है तो यह सीधे-सीधे पत्नी के आत्मसम्मान और मानसिक स्वास्थ्य पर चोट करता है। कई बार यह स्थिति डिप्रेशनए चिंता और थकान का कारण बन जाती है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यह प्रवृत्ति रिश्तों को नुकसान पहुंचाती है। रिश्ता तभी मजबूत होता है जब उसमें बराबरी और विश्वास का भाव हो। यदि एक पक्ष बार-बार जिम्मेदारी से भागे और दूसरा पक्ष मजबूरी में सब कुछ ढोता रहे तो धीरे-धीरे नाराजगी, कड़वाहट और दूरी बढ़ जाती है। पत्नी को लगता है कि उसकी मेहनत को महत्व नहीं दिया जा रहा और पति को लगता है कि वह अपनी सुविधा से बच निकला है। यह असंतुलन लंबे समय तक नहीं चल सकता।
तलाक का कारण :
अमेरिका, कनाडा और यूरोप के कई समाजशास्त्रीय अध्ययनों में पाया गया है कि घरेलू कार्यों का असमान वितरण तलाक का एक बड़ा कारण है। भारत में भी यही प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। बदलते शहरी जीवन, दोहरे रोजगार और छोटे परिवारों की पृष्ठभूमि में महिलाएं अधिक मुखर हो रही हैं और बराबरी की मांग खुलकर रख रही हैं। इस समस्या का समाधान केवल कानून या सामाजिक दबाव से नहीं निकलेगा, बल्कि यह पति-पत्नी के आपसी संवाद और समझदारी से ही संभव है। पुरुषों को यह समझना होगा कि घरेलू कार्य केवल साधारण काम नहीं हैं,बल्कि वे परिवार की नींव को मजबूत रखते हैं। यदि रसोई का काम, बच्चों की पढ़ाई या घर की सफाई समय पर और ठीक से न हो तो घर का वातावरण बिगड़ जाता है और तनाव बढ़ता है। इसलिए इन्हें हल्के में लेना या केवल महिला पर थोपना उचित नहीं। इसलिए आवश्यक है कि शुरुआत से ही दोनों के बीच काम बांटने की आदत विकसित हो। शिक्षा प्रणाली और सामाजिक अभियानों में भी यह संदेश देना होगा कि घरेलू कार्य किसी एक लिंग की जिम्मेंदारी नहीं हैं। जब यह सोच बचपन से पनपेगी तभी आने वाली पीढ़ी में असमानता घटेगी।
-प्रियंका सौरभ
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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