तियानजिन में मोदी-शी वार्ता सकारात्मक रही

भविष्य का रास्ता तैयार 

तियानजिन में मोदी-शी वार्ता सकारात्मक रही

तियानजिन शहर में शंघाई सहयोग संगठन एससीओ के शिखर सम्मेलन के भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बातचीत हुई।

चीन के तियानजिन शहर में शंघाई सहयोग संगठन एससीओ के शिखर सम्मेलन के भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बातचीत हुई। पिछले कई अर्से से दोनों देशों के बीच रिश्तों में कई उतार-चढ़ाव आए। लेकिन अब बातचीत से संबंधों में गरमाहट आने की उम्मीद बनी है। इसमें द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दे,आतंकवाद और बहुपक्षीय मंचों पर निष्पक्ष व्यापार पर साझा आधार की जरूरत महसूस की गई। वहीं एशियाई पड़ोसियों की रणनीतिक स्वायत्ता पर जोर भी दिया गया। यह मुलाकात ऐसे समय पर हुई जब वैश्विक परिदृश्य में बड़े बदलाव हो रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति से न केवल दोनों देश,बल्कि पूरी दुनिया ही प्रभावित हो रही है। अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा भी बढ़ रही है। वहीं रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिम एशिया की अस्थिरता ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर दबाव बना है।ऐसे में मोदी और शी की वार्ता से भारत-चीन संबंधों को संतुलित करने और दोनों देशों की चिंताओं को सामने रखने का अवसर मिला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि दोनों देशों के संबंधों को किसी तीसरे देश के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए।

रिश्तों में और सुधार की उम्मीद :

दोनों नेताओं का इस बात पर जोर रहा है कि मतभेदों को कभी भी विवादों में नहीं बदला जाना चाहिए। विश्व व्यापार को स्थिर करने में दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं अपनी भूमिका का निर्वहन कर सकती हैं। दोनों नेताओं ने सीमा विवाद के निष्पक्ष, उचित और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान की बात की। इसमें कोई दोराय नहीं कि वर्ष 2024 में कजान में हुई बैठक के बाद दोनों देशों के संबंधों में निरंतर सकारात्मक प्रगति हुई है। बातचीत में जोर इस बात का भी रहा कि दोनों देश विकास में साझेदार हैं, प्रतिद्वंद्वी नहीं हैं। मतभेद विवादों में नहीं बदलने चाहिए। गलवान में सीमा विवाद के बाद भारत-चीन के बीच रिश्ते तनाव भरे हो गए थे। लेकिन अब ट्रंप की टैरिफ नीति से दोनों देशों के बीच रिश्तों में और सुधार की उम्मीद जगी है। अब देखना है दोनों देश मिलकर अमेरिका को सबक सिखाते हैं या शी इस बार भी भारत के साथ चालाकी दिखाते हैं।

सीमाई मुद्दे और सुरक्षा :

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इसमें कोई दोराय नहीं है कि भारत-चीन संबंधों की सबसे बड़ी चुनौती सीमाई विवाद है। गलवान संघर्ष के बाद दोनों देशों के बीच अविश्वास का भाव गहराया। मोदी ने स्पश्ट किया कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति और स्थिरता, द्विपक्षीय संबंधों की बुनियाद है। चीन से भी संकेत मिल रहे हैं कि वह टकराव और तनाव को कम करने के लिए सैन्य और राजनयिक वार्ताओं को आगे बढ़ाना चाहता है। हालांकि सीमा विवाद का हल तत्काल संभव नहीं दिखता।

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व्यापार और आर्थिक सहयोग :

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भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंध गहरे हैं। चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, लेकिन व्यापार असंतुलन भारत की चिंता का विषय है। बैठक दौरान भारत ने चीनी बाजार में भारतीय दवाओं, आईटी सेवाओं और कृषि उत्पादों की पहुंच बढ़ाने पर जोर दिया। वहीं चीन चाहता है कि भारत उसकी कंपनियों पर लगाए गए कुछ प्रतिबंधों में ढील दे। दोनों देशों ने ब्रिक्स, एससीओ और जी20 जैसे मंचों पर साझा एजेंडा आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई। चीन चाहता है कि भारत-अमेरिकी प्रभाव को कम करने के लिए एशियाई देशों के साथ अधिक तालमेल बनाए, जबकि भारत अपने रणनीतिक स्वायत्तता के रुख को बनाए रखते हुए चीन से सहयोग की संभावना तलाश रहा है। जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा सुरक्षा और विकासशील देशों के हित जैसे मुद्दों पर दोनों नेताओं में सहमति बनी।

भू-राजनीतिक संकेत :

इस वार्ता से यह संकेत गया कि भारत और चीन टकराव की स्थिति को लंबा खींचना नहीं चाहते। चीन समझता है कि भारत, एशिया में अमेरिकी रणनीति का अहम हिस्सा बन रहा है और इसे संतुलित करने के लिए उससे संवाद बनाए रखना है। वहीं भारत भी जानता है कि पड़ोसी चीन से रिश्ते बिगाड़ने की स्थिति उसकी आर्थिक और क्षेत्रीय नीतियों के लिए नुकसानदायक हो रही है। यह भी एक तथ्य है कि दोनों देशों के बीच गहरा अविश्वास है। चीन का बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव पाकिस्तान के साथ उसका नजदीकी रिश्ता, हिंद महासागर में बढ़ती उपस्थिति और भारत को अमेरिका के साथ रक्षा सहयोग ऐसे मुद्दे हैं जो दीर्घकालिक तनाव बनाए रखते हैं। ऐसे में मोदी-शी वार्ता, रिश्तों को फिर से पटरी पर लाने की दिशा में एक सावधानीपूर्ण कदम माना जा सकता है।

भविष्य का रास्ता तैयार :

इस मुलाकात में फिलहाल न तो कोई बड़ी उपलब्धि अर्जित हुई और ना ही किसी तरह के कोई तीखे मतभेद ही उभरे। दोनों नेता खुले संवाद पर सहमत हुए। भविष्य की वार्ताओं का रास्ता तैयार किया जो अपने आप में सकारात्मक है। दोनों देशों के संबंधों में प्रतिस्पर्धा और सहयोग का मिश्रण है। मतभेदों के बावजूद साझा हितों को दोनों देश अब नजरअंदाज नहीं कर सकते। कुल मिलाकर आने वाले समय में यह वार्ता तभी सार्थक होगी जब सीमा पर स्थिरता बनी रहे और आर्थिक सहयोग के व्यावहारिक परिणाम मिल सकें। भारत-चीन के बीच संबंध केवल विदेश नीति तक सीमित नहीं रहते, बल्कि इनका गहरा असर देश की घरेलू राजनीति और जनमत पर भी पड़ता है। अब आने वाले महीनों में यह देखना होगा कि सीमा पर तनाव कम होता है या नहीं। व्यापारिक सहयोग बढ़ता है या नहीं। यदि बढ़ता है तो दोनों देशों के बीच संबंधों पर जरूर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

-महेश चंद्र शर्मा
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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