आत्मशुद्धि का साधन है धर्म

धर्म जीवन का अभिन्न अंग और तत्व 

आत्मशुद्धि का साधन है धर्म

दुनिया में असंख्य लोग सबसे गहरी श्रद्धा के साथ जिसे पूजते हैं, वह धर्म है।

धर्म जीवन का अभिन्न अंग और तत्व है। इसके अस्तित्व को नकारने का अर्थ है स्वयं के अस्तित्व को नकारना। दुनिया में असंख्य लोग जिस सबसे गहरी श्रद्धा के साथ जिसे पूजते हैं, वह धर्म है। धर्म ही कामधेनु है, धर्म ही कल्पतरु है। जिसने धर्म को सही रूप में स्वीकार कर लिया, समझ लीजिए कि उसने जीवन की सर्वोच्च निधि को प्राप्त कर लिया। आज की दुनिया में, जहां सांस्कृतिक और धार्मिक तनाव अक्सर सुर्खियों में छाए रहते हैं। यह एक महत्वपूर्ण अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है कि हमारे मतभेदों के बावजूद, हम एक समान मानवता, शांति और कल्याण की सार्वभौमिक इच्छा साझा करते हैं। अंतर-धार्मिक संवाद के माध्यम से, हम एक-दूसरे की मान्यताओं और परंपराओं के बारे में जान सकते हैं, गलतफहमियों को दूर कर सकते हैं और आपसी समझ के पुल बना सकते हैं। इससे सहिष्णुता, सम्मान और सहयोग को बढ़ावा मिलता है, जो अंतत: एक अधिक शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण दुनिया का मार्ग प्रशस्त करता है।  भारतीय संस्कृति की आत्मा धर्म है। यही कारण है कि यहां अनेक धर्म पल्लवित एवं पुष्पित हुए हैं। सबने अपने-अपने ढंग से धर्म की व्याख्या की है। 

सुप्रसिद्ध लेखक लार्ड मोर्ले ने लिखा है, आज तक धर्म की लगभग दस हजार परिभाषाएं हो चुकी हैं, पर उनमें भी जैन, बौद्ध आदि कितने ही धर्म इन व्याख्याओं से बाहर रह जाते हैं। पंथ, संप्रदाय या वर्ग तक ही धर्म को सीमित नहीं किया जा सकता। धर्म बहुत व्यापक है। धर्म न तो पंथ, मत, संप्रदाय मंदिर या मस्जिद में है और न धर्म के नाम पर पुकारी जाने वाली पुस्तकें ही धर्म है। धर्म तो सत्य, करूणा और अहिंसा है। आत्मशुद्धि का साधन है। जीवन परिवर्तन एवं उसे सकारात्मक दिशा देने का माध्यम है। इन दिनों प्रयागराज में चल रहा महाकुंभ, भारतीय धर्म और संस्कृति का प्रतीक है जो दुनिया को एकजुट करने का सशक्त माध्यम है। यह दुनिया भर में सनातन धर्म की महत्ता को दिखाता है। 

महाकुंभ में शामिल होने से आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं और पाप धुल जाते हैं। यह सनातन धर्म का सबसे अहम और पवित्र आयोजन है जिसमें शामिल होने से मोक्ष मिलता है, आत्मा की शुद्धि होती है। कुंभ हो या हज यात्रा या फिर क्रिश्चयन समुदाय का वेटिकन मास, धर्म की पुकार सदियों से इंसानों को एक स्थान पर खींचती आई है। धर्म का भाव, मुक्ति की कामना लाखों लोगों को एक सूत्र में पिरोती है। इसलिए ऐसी गतिविधियों में मनुष्य बिना बुलाये ही भारी संख्या में जमा हो जाता है। 

मान्यता है कि सनातन में कुंभ की परंपरा लगभग 2500 साल से ज्यादा समय से चलती आ रही है, इस्लाम के मानने वाले लगभग 1400 सालों से हज पर जाते रहे हैं जबकि क्रिश्चयन समुदाय के लोग 1700 सालों से ईस्टर संडे मनाते आ रहे हैं। वेटिकन मास का आयोजन भी सालों से होता आ रहा है। धर्म जीवन का रूपान्तरण करता है। पर जिनमें धर्म से परिवर्तन घटित नहीं होता उन धार्मिकों ने शायद धर्म के वास्तविक स्वरूप को आत्मसात नहीं किया है। उन धार्मिकों से हैरान हो जाना चाहिए जो वर्षों से धर्म करते आ रहे हैं, किंतु जीवन में परिवर्तन नहीं आ रहा है। धार्मिक की सबसे बड़ी पहचान है कि वह प्रेम और करुणा से भरा होता है। 

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धार्मिक होकर भी व्यक्ति लड़ाई, झगड़े, दंगे-फ साद करें, यह देखकर आश्चर्य होता है। धार्मिक अधर्म से लड़े, असत्य से लड़े, बुराई से लड़े यह तो समझ में आता है, किन्तु एक धार्मिक दूसरे धार्मिक से लड़े, यह दुख का विषय है। धार्मिक होने की पहली प्राथमिकता है नैतिकता। धार्मिक होकर यदि व्यक्ति नैतिक नहीं है तो यह धर्म के क्षेत्र का सबसे बड़ा विरोधाभास है। पुत्र, पत्नी, परिवार, पैसा, पद-प्रतिष्ठा इनके पीछे आम आदमी जहां पागल बना दौड़ रहा है, वहां इस सचाई को भी नकारा नहीं जा सकता कि इन सबसे ऊपर की चीज सुख-शांति का मार्ग धर्म है। धर्म शून्य व्यक्ति बाहर से सब कुछ पाकर भी रिक्तता का अनुभव करता है। 

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धार्मिक व्यक्ति वस्तु जगत की न्यूनता को भी आंतरिक संपदा के कारण पूर्णता में बदल देता है, क्योंकि वह जानता है पदार्थ सापेक्ष सुख अस्थायी है। धर्म मजहबी विश्वास या बंधन नहीं है। वह आंतरिक प्रकाश है, ज्ञान और आनंदमयी चेतना का स्पंदन है। धर्म मनुष्यता का मंत्र है, उन्नति का तंत्र है। पशुता को मनुजता में रूपांतरित करने का यंत्र है। धर्म एक मर्यादा है, वह जीवन को मर्यादित करता है। व्यक्ति और समाज की वृत्तियों-प्रवृत्तियों का नियमन करता है। धर्म सम्मत जीवन वह है, जहां मनुष्य किसी भी प्राणी को हानि पहुंचाएं बिना नैतिक समाज में अपनी मिसाल खड़ी कर सके। बिना किसी को कष्ट दिए, स्वयं सत्कर्म में लगा रहे, क्योंकि धर्म उत्कृष्ट मंगल है- समस्त विघ्न, बाधाओं, कष्टों का निवारक, सिद्धिदायक, यह विश्वशांति का अमोघ साधन है। 

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 - ललित गर्ग
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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