पेड़ों की सुरक्षा और संवैधानिक दायित्व
अधिक से अधिक पेड़ों को बचाएं और उनकी सुरक्षा करें
बीते दिनों देश की सर्वोच्च अदालत ने पेड़ों के अंधाधुंध कटान पर टिप्पणी करते हुए कहा कि पेड़ों की सुरक्षा करना हर किसी का संवैधानिक कर्तव्य है।
बीते दिनों देश की सर्वोच्च अदालत ने पेड़ों के अंधाधुंध कटान पर टिप्पणी करते हुए कहा कि पेड़ों की सुरक्षा करना हर किसी का संवैधानिक कर्तव्य है। शीर्ष अदालत ने कहा कि अधिकारियों का यह संवैधानिक कर्तव्य है कि वे अधिक से अधिक पेड़ों को बचाएं और उनकी सुरक्षा करें। अदालत ने अधिकारियों से कहा कि वे पेड़ काटने के संबंध में सावधानी बरतें और आवश्यकता से अधिक पेड़ों को काटने के बारे में आवेदन ना करें। याचिका में आगरा और ग्वालियर के बीच छह लेन वाले राजमार्ग के विकास के लिए ताज ट्रेपेजियम क्षेत्र टीटीजेड में 800 से अधिक पेड़ों को काटने की अनुमति मांगी गई थी। इस बाबत अदालत ने कहा कि इस मामले में बड़ी संख्या में क्षतिपूरक पौधारोपण से पहले ही पेड़ों को काटने की अनुमति दे दी गई थी। पीठ ने प्रतिपूरक पौधारोपण की शर्त पूरा करने का निर्देश दिया और सीईसी से अनुपालन की जांच करने को कहा। देश की शीर्ष अदालत का यह निर्देश इस बात का प्रमाण है कि विकास कार्य हेतु अधिकारी जरूरत से ज्यादा मात्रा में पेड़ काट रहे हैं। दरअसल दुनिया में जिस तेजी से अंधाधुंध पेड़ों के कटान के चलते पेड़ों की तादाद कम होती जा रही है, उससे पर्यावरण तो प्रभावित हो ही रहा है, पारिस्थितिकी, जैव विविधता, कृषि और मानवीय जीवन ही नहीं, बल्कि भूमि की दीर्घकालिक स्थिरता पर भी भीषण खतरा पैदा हो गया है। जहां तक जंगलों के खत्म होने का सवाल है, उसकी गति देखते हुए ऐसा लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब दुनिया से जंगलों का नामोनिशान तक मिट जाएगा और वह किताबों की वस्तु बनकर रह जाएंगे। हकीकत यह है कि हर साल दुनिया में एक करोड़ हेक्टेयर जंगल लुप्त होते जा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र भी इसकी पुष्टि करता है। यदि अपने देश की बात करें तो विकास यज्ञ में समिधा बने लाखों पेड़ों को छोड़ भी दें तो भी उसके अलावा बीते पांच सालों में देश में नीम, जामुन, शीशम, महुआ, पीपल, बरगद और पाकड़ सहित करीब पांच लाख से भी ज्यादा छायादार पेड़ों का अस्तित्व ही खत्म कर दिया गया है।
दुनिया के वैज्ञानिक बार-बार कह रहे हैं कि इंसान जैव विविधता के खात्मे पर आमादा है। जबकि जैव विविधता का संरक्षण ही हमें बीमारियों से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निबाहता है। इसीलिए जैव विविधता का संरक्षण बेहद जरूरी है। यहां इस कटु सत्य को नकारा नहीं जा सकता कि यदि पेड़ों की कटाई पर अंकुश नहीं लगा तो प्रकृति की लय बिगड़ जाएगी और उस स्थिति में वैश्विक स्तर पर तापमान को रोक पाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। ऐसी स्थिति में सूखा और स्वास्थ्य सम्बंधी जोखिम से आर्थिक हालात और भी प्रभावित होंगे, जिसकी भरपाई आसान नहीं होगी। यह न केवल हमें गर्मी से राहत प्रदान करते हैं बल्कि जैव विविधता को बनाए रखने, कृषि की स्थिरता सुदृढ़ करने, सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करने और जलवायु को स्थिरता प्रदान करने में भी अहम योगदान देते हैं। आज जो देश-दुनिया की स्थिति है, वह सब मानव के लोभ का नतीजा है। क्योंकि उसने अपने सुख-संसाधनों की अंधी चाहत के चलते प्रकृति से इतनी छेड़छाड़ की है, जिसका दुष्परिणाम हमारे सामने मौसम में आए भीषण बदलाव के रूप में सामने आया है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र ही नहीं हमारा आर्थिक-सामाजिक ढांचा तक चरमरा गया है।
यह बदलाव अचानक नहीं आया है। इसके बारे में बीते कई बरसों से दुनिया के वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और वनस्पति व जीव विज्ञानी चेता रहे हैं कि अब हमारे पास पुरानी परिस्थिति को वापस लाने के लिए समय बहुत ही कम बचा है। यह भी कि हम जहां पहुंच चुके हैं वहां से वापस आना अब आसान काम नहीं है। यदि उत्तराखंड की ही बात करें तो उत्तराखंड में बीते 8.9 बरसों के दौरान ढ़ाई लाख से ज्यादा पेड़ काट दिए गए हैं। इनमें एक लाख से ज्यादा पेड़ आल वैदर रोड के नाम पर और शेष पर्यटन, देहरादून से लेकर दिल्ली तक सड़क चौड़ी के करण, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना व सुरंग आधारित परियोजनाओं आदि के नाम पर देवदार, बांज, राई, कैल जैसी दुर्लभ प्रजातियों के पेड़ों का अस्तित्व ही मिटा दिया गया। एक लाख पंद्रह हजार से ज्यादा पेड़ कटान हेतु चिन्हित कर दिए गए हैं। जंगलों की बात करें तो पिछले बीस सालों के दौरान 40,000 हेक्टेयर जंगल आग की समिधा बने हैं, जिसमें लाखों पेड़ जलकर राख हो गए हैं।
पेड़ जीवन के लिए कितने जरूरी हैं, एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि पेड़-पौधों की मौजूदगी लोगों को मानसिक तनाव से मुक्ति दिलाने में सहायक होती है। जैव विविधता न सिर्फ हमारे प्राकृतिक वातावरण के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इस वातावरण में रहने वाले लोगों के मानसिक कल्याण के लिए भी उतनी ही अहम है। इसलिए इस बात पर गंभीरता से विचार किए जाने की जरूरत है कि जैव विविधता धरती और मानव स्वास्थ्य के लिए सह-लाभ के तत्व हैं और इसे महत्वपूर्ण बुनियादी मान कर इसकी रक्षा करनी चाहिए।
यह लेखक के अपने विचार हैं।
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