शिक्षा और उद्योग के बीच कौशल अंतर

क्या सिर्फ डिग्री प्राप्त कर लेने से कोई युवा रोजगार के योग्य हो जाता है ?

शिक्षा और उद्योग के बीच कौशल अंतर

भारत में उच्च शिक्षा प्राप्त करना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है।

भारत में उच्च शिक्षा प्राप्त करना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है, लेकिन यह सवाल अभी भी बना हुआ है कि क्या सिर्फ डिग्री प्राप्त कर लेने से कोई युवा रोजगार के योग्य हो जाता है, बदलते समय और तकनीकी विकास के साथ उद्योगों की जरूरतें भी बदल रही हैं, लेकिन क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था इस बदलाव के हिसाब से खुद को ढाल पा रही है, इस विषय पर हाल ही में प्रकाशित इंडिया ग्रेजुएट स्किल इंडेक्स 2025 एक व्यापक अध्ययन प्रस्तुत करता है। यह रिपोर्ट साफ  तौर पर दिखाती है कि देश के स्रातक औद्योगिक जरूरतों को पूरा करने में पिछड़ रहे हैं और उनकी रोजगार क्षमता दर में गिरावट आ रही है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में स्रातकों की समग्र रोजगार योग्यता दर 2023 में 44.3 प्रतिशत थी, जो 2024 में घटकर 42.6 प्रतिशत रह गई। यह गिरावट मुख्य रूप से गैर-तकनीकी भूमिकाओं में आई है, जहां स्रातकों की रोजगार योग्यता दर में भारी कमी देखी गई है। यह दर्शाता है कि पारंपरिक शिक्षा प्रणाली अभी भी ऐसे कौशल विकसित करने में विफल हो रही है, जो छात्रों को वास्तविक कार्यक्षेत्र में सक्षम बना सके। हालांकि, तकनीकी भूमिकाओं में रोजगार योग्यता दर में सुधार देखा गया है, विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन शिक्षण से जुड़े क्षेत्रों में, जहां 46 प्रतिशत स्रातक अब योग्य माने जा रहे हैं। 

यह उन छात्रों की मेहनत और रुचि को दर्शाता है, जो आधुनिक तकनीकों में दक्षता हासिल कर रहे हैं। लेकिन यह भी बताता है कि भारत में उच्च शिक्षा और उद्योग के बीच जो खाई बनी हुई है, उसे अब और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस रिपोर्ट में पुरुष और महिला स्रातकों के बीच रोजगार योग्यता को लेकर भी महत्वपूर्ण विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, पुरुष स्रातकों की रोजगार योग्यता दर 43.4 प्रतिशत रही, जबकि महिला स्रातकों की 41.7 प्रतिशत। यह अंतर भले ही बहुत बड़ा न हो,  लेकिन यह इंगित करता है कि महिलाओं को अभी भी समान अवसर प्राप्त नहीं हो पा रहे हैं। कॅरियर के अवसरों तक समान पहुंच न होना, सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाएं तथा तकनीकी कौशल सीखने के लिए आवश्यक संसाधनों की कमी कुछ ऐसे कारण हो सकते हैं, जिनके कारण महिलाओं की रोजगार योग्यता पुरुषों की तुलना में थोड़ी कम बनी हुई है। रिपोर्ट के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि भारत में शिक्षा प्रणाली की संरचना के आधार पर रोजगार योग्यता में महत्वपूर्ण भिन्नताएं पाई गई हैं। 

उच्च स्तरीय शिक्षण संस्थानों के स्रातकों की रोजगार योग्यता दर 48.4 प्रतिशत दर्ज की गई, जबकि मध्यम स्तरीय संस्थानों के लिए यह 46.1 प्रतिशत और निम्न स्तरीय शिक्षण संस्थानों के लिए 43.4 प्रतिशत रही। इसका अर्थ यह है कि शीर्ष शिक्षण संस्थानों से स्रातक करने वाले छात्रों को बेहतर रोजगार मिलने की संभावना अधिक होती है, क्योंकि वे अधिक प्रतिस्पर्धात्मक कौशल से लैस होते हैं। इसके विपरीत, मध्यम और निम्न श्रेणी के शिक्षण संस्थानों से स्रातक हुए छात्रों के लिए रोजगार के अवसर सीमित होते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है। यदि मध्यम और निम्न स्तर के शिक्षण संस्थान अपने पाठ्यक्रम को उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप विकसित करें और छात्रों को व्यावहारिक अनुभव प्रदान करें, तो उनकी रोजगार योग्यता भी बेहतर हो सकती है। क्षेत्रीय स्तर पर भी रोजगार योग्यता में भिन्नताएं पाई गई हैं। रिपोर्ट के अनुसार,  दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड जैसे राज्यों में उच्च रोजगार योग्यता दर दर्ज की गई है, जबकि उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम और तेलंगाना जैसे राज्य भी शीर्ष दस राज्यों की सूची में शामिल हैं। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि विभिन्न राज्यों में शिक्षा और कौशल विकास के प्रति दृष्टिकोण भिन्न है और जहां उच्च शिक्षा संस्थानों और उद्योगों के बीच बेहतर तालमेल है, वहां  स्रातकों की रोजगार योग्यता अधिक रही है। 

दूसरी ओर, जहां शिक्षा प्रणाली और उद्योग की आवश्यकताओं के बीच समन्वय की कमी है, वहां स्रातक रोजगार के लिए आवश्यक कौशल से वंचित रह जाते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि रोजगार योग्यता को सुधारने के लिए केवल व्यक्तिगत प्रयास ही नहीं, बल्कि एक मजबूत संस्थागत ढांचा भी आवश्यक है, जो शिक्षा और उद्योग के बीच सामंजस्य स्थापित कर सके। रिपोर्ट में इस बात पर भी विशेष रूप से जोर दिया गया है कि आधुनिक कार्यस्थलों में केवल तकनीकी दक्षता ही पर्याप्त नहीं है। कंपनियां अब ऐसे स्रातकों को प्राथमिकता दे रही हैं, जो न केवल तकनीकी रूप से सक्षम हों, बल्कि जिनमें संचार कौशल, समस्या समाधान क्षमता, टीमवर्क और नेतृत्व जैसे गुण भी मौजूद हों। हालांकि, रिपोर्ट बताती है कि भारतीय स्रातकों में इन क्षमताओं की कमी पाई जाती है, जिससे वे उद्योग में प्रतिस्पर्धा करने में पीछे रह जाते हैं। कई स्रातक तकनीकी रूप से कुशल तो होते हैं, लेकिन जब उन्हें अपनी बात स्पष्ट रूप से रखने, समूह में प्रभावी रूप से कार्य करने या व्यावहारिक समस्याओं को हल करने की आवश्यकता पड़ती है, तो वे अक्षम साबित होते हैं। यह इंगित करता है कि भारतीय शिक्षा प्रणाली को अपने शिक्षण दृष्टिकोण में बदलाव करना होगा और छात्रों को केवल सैद्धांतिक ज्ञान देने के बजाय उन्हें व्यावहारिक प्रशिक्षण देने पर अधिक ध्यान देना होगा।  

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 -देवेन्द्रराज सुथार
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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