ब्रेन ईटिंग अमीबा का खतरा, जागरूकता ही बचाव

सतर्कता ही सुरक्षा 

ब्रेन ईटिंग अमीबा का खतरा, जागरूकता ही बचाव

भारत के दक्षिणी राज्य केरल में हाल ही के महीनों में एक दुर्लभ परंतु अत्यंत घातक संक्रमण ने स्वास्थ्य विभाग और आम जनता की चिंता बढ़ा दी है।

भारत के दक्षिणी राज्य केरल में हाल ही के महीनों में एक दुर्लभ परंतु अत्यंत घातक संक्रमण ने स्वास्थ्य विभाग और आम जनता की चिंता बढ़ा दी है। यह संक्रमण एक विशेष प्रकार के अमीबा नेगलेरिया फाउलेरी के कारण होता है, जिसे सामान्य भाषा में ब्रेन ईटिंग अमीबा या मस्तिष्क खाने वाला अमीबा कहा जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से इसे प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएन्सेफेलाइटिस के नाम से जाना जाता है। केरल में वर्ष 2025 की शुरुआत से अब तक इस संक्रमण के 69 मामले सामने आए हैं, जिनमें से 19 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। यह आंकड़े बीते वर्ष की तुलना में दोगुने हैं, जब 36 मामलों में 9 लोगों की जान गई थी। इस बढ़ोतरी ने स्वास्थ्य तंत्र को सतर्क कर दिया है और अब राज्य सरकार तथा केंद्र सरकार इस पर गंभीरता से कार्य कर रही हैं।

क्या है ब्रेन ईटिंग अमीबा ?

नेगलेरिया फाउलेरी एक स्वतंत्र रूप से रहने वाला एककोशकीय यूकैरियोटिक जीव है। यह अमीबा आमतौर पर गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में पाए जाने वाले गर्म मीठे पानी के स्रोतों में रहता है-जैसे कि झीलें, तालाब, नदियां, गर्म पानी के झरने तथा कभी-कभी स्विमिंग पूल भी, यदि उनकी सफाई सही ढंग से न हुई हो। प्राकृतिक पर्यावरण में यह जीव हानिरहित होता है और बैक्टीरिया को खाकर जीवित रहता है। लेकिन जब यह नाक के रास्ते मानव शरीर में प्रवेश करता है, तब यह जानलेवा साबित हो सकता है। संक्रमित पानी के नाक में प्रवेश करने पर यह अमीबा श्लेष्मा झिल्ली से होते हुए ऑल्फैक्टरी नर्व के जरिए सीधे मस्तिष्क तक पहुंच जाता है। वहां यह न्यूरॉन्स को नष्ट करने लगता है, जिससे मस्तिष्क की सूजन, ऊतकों को नुकसान और अंतत: रोगी की मृत्यु तक हो सकती है।

दूषित पानी के संपर्क में :

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इस संक्रमण के लक्षण आमतौर पर दूषित पानी के संपर्क में आने के 1 से 9 दिन के भीतर सामने आते हैं। प्रारंभिक लक्षणों में तेज बुखार,सिरदर्द,मतली और उल्टी। जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता है, गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं जैसे गर्दन में अकड़न ,भ्रम की स्थिति,दौरे चेतना में बदलाव,मानसिक असंतुलन, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई यह बीमारी इतनी तेजी से बढ़ती है कि 5 से 7 दिनों के भीतर ही मृत्यु हो सकती है। अब तक केवल कुछ ही लोगों को इससे बचाया जा सका है। संक्रमण की पहचान समय रहते नहीं हो पाती, जिससे उपचार में देरी हो जाती है और तब तक मस्तिष्क को व्यापक नुकसान पहुंच चुका होता है। केरल में वर्ष 2025 में इस संक्रमण के सबसे अधिक मामले अगस्त और सितंबर के महीनों में सामने आए, जो कि मानसून के बाद का समय होता है। इस दौरान वातावरण में उच्च तापमान और नमी होती है, जो इस अमीबा के लिए उपयुक्त परिस्थितियां प्रदान करती हैं। पिछले वर्ष भी राज्य के कोझिकोड, मलप्पुरम और कन्नूर जिलों में ऐसे कई मामले सामने आए थे। इस पर केंद्र सरकार ने जांच के आदेश दिए और स्वास्थ्य दिशा-निर्देश भी जारी किए गए। विशेषज्ञों के अनुसार जलवायु परिवर्तन भी इस समस्या को बढ़ा रहा है। बढ़ता तापमान और जलवायु में बदलाव नेगलेरिया के लिए अनुकूल वातावरण तैयार कर रहे हैं।

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सतर्कता ही सुरक्षा है :

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इस संक्रमण का इलाज अत्यंत जटिल और सीमित है। अभी तक कोई सटीक और प्रमाणित उपचार उपलब्ध नहीं है। फिर भी, कुछ एंटिफंगल और एंटीबायोटिक दवाओं का संयोजन उपयोग किया जा रहा है। इनमें मिल्टेफोसिन को हाल के वर्षों में संभावित उपयोगी दवा के रूप में देखा गया है। लेकिन यह तभी कारगर साबित हो सकता है जब प्रारंभिक अवस्था में निदान हो और तुरंत उपचार शुरू किया जाए। इसके साथ ही, मस्तिष्क में उत्पन्न हुए दबाव को कम करना भी इलाज का एक अहम हिस्सा है। इस संक्रमण से बचाव के लिए सबसे कारगर तरीका है दूषित पानी के संपर्क से बचाव। खासकर गर्म मौसम और मानसून के बाद इन बातों का ध्यान रखें, तालाब, झील, नदी या अनजाने जलस्रोतों में तैरने या नहाने से बचें। अगर पानी में जाना आवश्यक हो, तो नाक को बंद रखने के लिए क्लिप या नाक बंद करने वाले सुरक्षा उपकरणों का प्रयोग करें।

संक्रमण पर नियंत्रण :

बढ़ते मामलों को देखते हुए केरल सरकार ने एक टास्क फोर्स गठित की है, जो संक्रमण पर नियंत्रण के लिए कार्यरत है। इसके तहत स्वास्थ्य विभाग की निगरानी टीमों द्वारा जल स्रोतों की जांच,स्कूलों और समुदायों में जागरूकता अभियान,त्वरित जांच और रिपोर्टिंग प्रणाली,इसके अलावा,केंद्र सरकार भी इस संक्रमण पर कड़ी नजर बनाए हुए है और राज्यों को आवश्यक मार्गदर्शन व संसाधन मुहैया करा रही है। ब्रेन ईटिंग अमीबा एक खतरनाक लेकिन रोके जा सकने वाला संक्रमण है। इसकी रोकथाम के लिए लोगों में जागरूकता और सतर्कता अत्यंत आवश्यक है। अगर कोई व्यक्ति गर्मी के मौसम में जलस्रोतों के संपर्क में आने के कुछ दिनों बाद तेज बुखार, सिरदर्द, भ्रम या न्यूरोलॉजिकल लक्षण महसूस करता है,तो तुरंत चिकित्सा सहायता लेनी चाहिए। इस घातक रोग से डरने की नहीं, बल्कि समझदारी से निपटने की जरूरत है।

-देवेन्द्रराज सुथार
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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