ट्रंप की टैरिफ नीति से बदला माहौल
आश्वासन का भाव
पिछले सप्ताह चीन के विदेश मंत्री वांग यी अपने दो दिवसीय भारत दौरे पर आए।
पिछले सप्ताह चीन के विदेश मंत्री वांग यी अपने दो दिवसीय भारत दौरे पर आए। उन्होंने सीमा विवाद को लेकर विशेष प्रतिनिधि स्तर के 24 वें दौर की वार्ता में भाग लिया। इस सिलसिले में उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एनएसए अजीत डोभाल के साथ बैठक हुई। द्विपक्षीय संबंधों पर उनकी अपने समकक्ष एस.जयशंकर से बातचीत हुई। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिले। उन्हें शंघाई सहयोग संगठन एससीओ में भाग लेने को आमंत्रित किया। कूटनीतिक गलियारों में वांग के इस दौरे को दोनों देशों के संबंधों में नजदीकी आने और अन्य मसलों पर बनी सहमतियों को काफी सार्थक बताया जा रहा है। सबसे महत्वपूर्ण यह रहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एससीओ की बैठक में भाग लेने 31 अगस्त को दो दिवसीय दौरे पर चीन जा रहे हैं। वांग से बातचीत दौरान प्रधानमंत्री ने चीन के साथ शांति और सौहार्द्र बनाए रखने पर जोर दिया। उनका कहना था कि दोनों देशों के बीच स्थिर और रचनात्मक संबंध वैश्विक शांति में महत्वपूर्ण है।
नजरिए में बदलाव :
यही बात बाद में चीन की ओर से दोहराई गई कि भारत और चीन, वैश्विक विकास में डबल इंजन की भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं। इसका सीधा मतलब चीन का भारत के प्रति अब नजरिए में बदलाव आता दिखाई दे रहा है। लेकिन चीन के पिछले इतिहास को ध्यान में रखते हुए भारत को निकटता बनाने के साथ पूरी तरह सतर्कता भी बरतनी होगी। इसकी प्रमुख वजह चीन का ऐतिहासिक रूप से भारत के प्रति अविश्सनीय व्यवहार रहा है। वर्ष1962 में भारत-चीन युद्ध हो या डोकलाम या गलवान सैन्य संघर्ष। अरुणाचल प्रदेश के गांवों के नामों को बदलकर अपना दावा ठोक रहा है। पाकिस्तान में रह रहे आतंकियों को वैश्विक आतंकी घोषित कराने की कोशिशों और सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता के भारतीय दावों का चीन लगातार विरोध करता आया है। तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर सबसे बड़े बांध का निर्माण कर रहा है।
हथियारों की मदद :
मई माह में पाकिस्तान में आतंकवादियों के खिलाफ शुरू किए गए भारत के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन ने खुलकर न केवल पाकिस्तान को हथियारों की मदद की बल्कि उसका खुला समर्थन भी किया। भारत की आपत्ति के बावजूद पाकिस्तान में आर्थिक गलियारे का निर्माण कर रहा है। अब तो वह इसे अफगानिस्तान तक विस्तारित करने जा रहा है। हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में अपने वर्चस्व को बढ़ाने और भारत की चारों ओर से घेराबंदी करने के उद्देश्य से म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, पाकिस्तान, मालदीव, बांग्लादेश में बंदरगाहों निर्माण और बीआरआई योजनाओं में भारी पैमाने पर निवेश कर रहा है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि भारत एक लंबे अर्से से चीन की सीपेक और बीआरआई योजनाओं का विरोध करता आया है। एशिया में दोनों देशों में आर्थिक, रक्षा आदि क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा का भाव भी पैदा हुआ है।
हुई द्विपक्षीय वार्ता :
खैर, वांग के ताजा दौरे दौरान हुई द्विपक्षीय वार्ता के क्रम में लिपुलेख पास, शिपकी ला पास और नाथुला पास से सीमाई व्यापार को फिर से शुरू करने पर सहमति बनी। हालांकि इस पर नेपाल ऐतराज जाहिर कर रहा है। इसके अलावा भारत-चीन के मध्य सीधी उड़ान शुरू करने और नया एयर सर्विसेज एग्रीमेंट करने पर भी सहमति बनी। कैलाश, मानसरोवर यात्रा, वीजा ढील देने से जुड़े मुद्दे पर सहमति बनी। कोरोना महामारी के दौर में वर्ष 2019 दौरान दोनों देशों के मध्य सीधी उड़ानें बंद हो गई थीं। जो मासिक 500से अधिक उड़ान होती थीं। सालाना बारह लाख से अधिक यात्रियों का आवागमन होता था। फिर चाहे व्यापारी हों या छात्र वर्ग। वर्तमान में हांगकांग, सिंगापुर या दुबई होकर जाना पड़ता है। यात्रा में छह घंटे की बजाय दस घंटे लगते हैं।
आश्वासन का भाव :
चीन भारत को उर्वरकों, रेयर अर्थ मिनरल्स और सुरंगें खोदने वाली मशीनें देगा। बता दें चीन के पास रेयर अर्थ मिनरल्स का सत्तर फीसदी हिस्सा है। यह मिनरल्स ड्रोन, बैटरी स्टोरेज, रक्षा, उपग्रह, अंतरिक्ष तकनीक एवं इलेक्ट्रिक वाहनों में इस्तेमाल होते हैं। फिलहाल इस पर सहमति की बजाय आश्वासन का भाव अधिक नजर आ रहा है। समझा जाता है इस संबंध में असली प्रगति प्रधानमंत्री की चीन यात्रा के बाद ही पता चलेगी। वांग-डोभाल में सीमा विवाद को सुलझाने को लेकर हुई बातचीत में सीमा प्रबंधन वर्किंग ग्रुप बनाने, सीमा पर शांति बनाए रखने और डि-एस्केलेशन की प्रक्रिया शुरू करने पर दोनों देशों में सहमति भी बनी। दोनों देश निवेश और व्यापार बढ़ाएंगे। अगले साल नदियों पर सहयोग बढ़ेगा। चीन आपात हाइड्रोहाइड्रोलॉजिकल सूचना देगा।
भारत-चीन सीमा :
मोदी सरकार भारत-चीन सीमा के समाधान के लिए वर्ष 2005 के राजनीतिक मानदंडों और मार्गदर्शक सिद्धांतों के समझौते पर आगे बढ़ने पर सहमत हुई। यदि ऐसा होता है तो नईदिल्ली चीनी सेना की ओर से किए गये अतिक्रमणों, गलवान संघर्षों और गतिरोध से आगे बढ़ सकती है। डोभाल ने कहा कि सीमाएं शांत हैं, लेकिन यह एहसास कराया कि स्थिर सीमा के बावजूद अन्य दीर्घकालिक समस्याएं संबंधों पर प्रभाव डालती रहेंगी। वांग की यह यात्रा ऐसे अवसर पर हुई जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ट्रैरिफ नीति के तहत भारत पर सर्वाधिक 50 फीसदी टैरिफ लगाया गया है। जिससे दोनों देशों के बीच संबंध तनावग्रस्त बन गए हैं।
अमेरिकी टैरिफ नीति :
25 फीसदी टैरिफ और 25 फीसदी पेनल्टी बतौर लगाया गया। पेनल्टी इस बात की भारत रूस से तेल खरीद रहा है। इससे यूक्रेन के खिलाफ रूस की ओर से छेड़े गए युद्ध में मदद मिल रही है। इस बीच चीनी राजदूत जू फेइहोंग ने भारत पर 50 फीसदी अमेरिकी टैरिफ नीति को गलत और धमकाने वाली बताया है। चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने भारत यात्रा दौरान स्वीकार किया कि दोनों देशों के बीच भले ही मतभेद हों, लेकिन कुछ साझा आपसी हित भी हैं, जो दोनों देशों को सहयोग के लिए प्रेरित करते हैं। भारत पर इसका असर कहीं ज्यादा पड़ रहा है। चीन भी इससे आशंकित है। ऐसे में दोनों देशों के बीच संबंध बेहतर होना जरूरी हैं, लेकिन भारत को बेहद सतर्क रहना होगा।
-महेश चंद्र शर्मा
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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