करौली जिले को कब लगेंगे विकास के पंख
आज भी यह जिला विकास की राह पर कदमताल करता हुआ दिखाई दे रहा
पहाड़ी, पठारी और समतल भूमि के समिश्रण वाले करौली जिले को बने हुए 27 साल हो गए।
पहाड़ी, पठारी और समतल भूमि के समिश्रण वाले करौली जिले को बने हुए 27 साल हो गए, लेकिन आज भी यह जिला विकास की राह पर कदमताल करता हुआ दिखाई दे रहा है। इस पर भी चौंकाने वाली बात यह है कि 27 साल की समयावधि में 32 जिला कलक्टर यहां पदस्थापित किए जा चुके हैं। ऐसा नहीं की पूर्वी राजस्थान के इस जिले में विकास की संभावनाओं का नितांत अभाव है। करौली उपखंड में वृहद खनन क्षेत्र भौगोलिक देन के रूप में मिला है। इस खनन क्षेत्र में सदियों से खनन होने के बाबजूद समूचे जिले में एक भी ऐसा बड़ा उद्योग व फोरलेन राष्ट्रीय राजमार्ग आजादी के बाद से अब तक स्थापित नहीं हो पाया है, जिसमें खदानों से निकलने वाले सोप स्टोन, सीलिकासेंड इत्यादि कच्चे माल को खपाया जा सके। यह सही है कि करौली जिले के वृहद खनन क्षेत्र में लाखों श्रमिक सदियों से काम करते हुए अपने परिवार का भरणपोषण करते रहे हैं, लेकिन इसका एक दु:खद पहलू भी है। खदानों में काम करने वाले श्रमिकों में सुरक्षा के उपयुक्त उपकरणों के अभाव के चलते जान लेवा सिलिकोसिस बीमारी होना आम बात है। वर्ष 1997 में सृजित हुआ करौली जिला न सिर्फ आर्थिक और सामाजिक स्तर पर पिछड़ा हुआ है, बल्कि राजनीतिक जागृति का भी यहां नितांत अभाव देखा गया है।
शायद यही वजह है कि न तो आजादी से पूर्व अंग्रेजों के शासन में करौली नगरी को रेललाइन की सौगात मिल पाई और न ही आजादी के बाद रेललाइन के लिए लंबे समय तक आंदोलित रहे करौली के बाशिंदों को कोई उपलब्धि हाथ लगी है। बदलती रही सरकारों के साथ बदलते रहे राजनीतिक चेहरों ने करौली को रेललाइन से जोड़ने के लिए वादे तो खूब किए, लेकिन कोई भी आजतक करौली वासियों को रेललाइन की सौगात नहीं दे पाया है। इस जिले के अधिकांश श्रमिक दूसरे राज्यों में मेहनत मजदूरी के लिए कभी एकल तो कभी सपरिवार दीर्घावधि के लिए जाते रहे है। पूर्व में हिंडौनसिटी में रेलवे स्टेशन से सटे रीको औधौगिक क्षेत्र में स्थित स्लेट और पत्थर की औधोगिक इकाइयों में श्रमिकों की खासी मांग रहती थी, लेकिन अब स्लेट उद्योग तो लगभग बंद हो चुके हैं और पत्थर की इकाइयां भी उत्पाद की मांग घटने के कारण धीरे-धीरे दम तोड़ रही हैं।
सरकार ने करौली मुख्यालय पर भी रीको औधोगिक क्षेत्र घोषित किया हुआ है, लेकिन इसे सरकार की पहल की कमी माने या उधमियों की अरुचि, इस औधोगिक क्षेत्र को अभी तक विकास के अपेक्षित पंख नहीं मिल पाए हैं। यही वजह है कि आज भी करौली जिले में कुशल और अकुशल श्रमिक बेरोजगारी का भीषण दंश झेल रहे हैं। जिला बनने के बाद सरकार की ओर से इस जिले को सिर्फ दो बड़ी सौगात मिल पाई और वह है मेडिकल कॉलेज और करौली-मण्डरायल की सीमा पर चंबल पुल की सौगात मिली, जिससे दो राज्यों राजस्थान-मध्यप्रदेश के बीच आवागमन की सुविधा प्रदान हुई है। जिस वक्त करौली जिला सवाईमाधोपुर जिले का हिस्सा था, उस वक्त सवाईमाधोपुर जिले के गंगापुर उपखण्ड व करौली जिले के टोडाभीम और नादौती उपखंड क्षेत्र के मांड इलाके की प्यासी धरती को सरसब्ज बनाने एवं भूजलस्तर को ऊंचा करने के मकसद से करौली के निकट पांचना बांध का निर्माण किया गया था।
यह बात अलग है कि बीते 18 वर्षों से इस बांध को बनाने का मकसद ही पूरा नहीं हो पा रहा है। बांध के निर्माण के वक्त गंगापुर व नादौती क्षेत्र के उन सैंकड़ों गांवों को पांचना की नहरों से जोड़ा गया था, जहां जमीन में पानी के स्रोत नहीं होने के कारण भूमी बंजर पड़ी थी। कुछ वर्षों तक इन नहरों में पांचना का पानी दौड़ा, लेकिन बाद में इस सरपट दौड़ते पानी को गुर्जर आरक्षण आंदोलन लील गया। वर्ष 2005 के बाद से अब तक मांड क्षेत्र की भूमि को सरसब्ज और वहां के किसानों को खुशहाल बनाने वाली तमाम नहरें सूखी पड़ी हैं। पिछड़ेपन के शिकार इस जिले को विकास की खूब दरकार है, लेकिन रोजगार के संसाधन बढ़ने के बजाय इस जिले में नशे का व्यापार दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति कर रहा है। मादक पदार्थों की बेखौफ बिक्री ने युवाओं को बड़ी संख्या में नशे का आदि बना दिया है। यहां के लोग अतिरिक्त जिला कलक्टर का पद सृजित करने की लंबे समय से मांग कर रहे हैं, लेकिन अभी तक हिंडौनसिटी की ये मांग पूरी नहीं हो पाई।
-प्रकाश चंद्र शर्मा
यह लेखक के अपने विचार हैं।
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