जानें राज काज में क्या हैं खास
ऊंघते मंत्री, सुस्ताते एमएलए
तीन धड़ों में बंटे भगवा वाले भाई लोगों ने तय कर रखा है कि फ्रंट लाइनों वाले ऊंघेंगे, तो फोर्थ लाइन वाले भी सुस्ताएंगे।
ऊंघते मंत्री, सुस्ताते एमएलए
आज हम बात करेंगे सदन में ऊंघने वाले मंत्रियों और सुस्ताने वाले एमएलएज की। इनको लेकर फ्लोर पर कई बार राज की किरकिरी भी हुई, मगर उनके कोई असर नहीं पड़ा। बेचारे चीफ व्हिप ने उनकी परफोरमेंस सुधारने के लिए टोने-टोटके भी किए, मगर पार नहीं पड़ी। फोर्थ लाइन में बैठने वाले भाई लोग सुस्ताए तो कोई खास बात नहीं, लेकिन फ्रन्ट लाइन से थर्ड लाइन वाले राज के रत्न ऊंघे, तो मामला सीरियस हो जाता है। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि यह सब जान बूझकर किया जा रहा है, चूंकि भगवा वालों में इन दिनों सबकुछ ठीक नहीं चल रहा। तीन धड़ों में बंटे भगवा वाले भाई लोगों ने तय कर रखा है कि फ्रंट लाइनों वाले ऊंघेंगे, तो फोर्थ लाइन वाले भी सुस्ताएंगे।
चिन्ता में राज का रत्न
राज के एक रत्न के चौघड़िए इन दिनों ठीक नहीं है। पंडितों को हाथ की रेखाएं भी खूब दिखाई, मगर चौघड़िया ठीक होने का नाम ही नहीं लेता। अब देखो ना गुजरे दिनों फर्जी मामले के चक्कर में खाकी वालों के हत्थे चढ़े खून के एक रिश्तेदार की वजह से उनको वो सब कुछ करना पड़ा, जो कभी भी सपने में नहीं सोचा था। फिलहाल ऊपर से नीचे तक हाथा-जोड़ी कर मामले को तो निपटा लिया, मगर चौघड़िया ठीक करने में कामयाब नहीं हो पाए। अब उनको कौन समझाए कि जब शनि की दशा आती है, तो सबसे पहले पालतू भैंस ही सींग मारती है या फिर अपनी ही छान से आंख फूटती है। अब चौघड़िया ठीक करना है, तो शनि को तेल तो चढ़ाना ही पड़ेगा।
आड़ फेफड़ों के दम की
जब से कोटा वाले भाई साहब ने फेफड़ों के दम को लेकर छाती ठोकी है, तब से सामने वालों की नींद उड़ी हुई है। उनके समझ में नहीं आ रहा कि 81 वां बसंत देख चुके शांति जी के इस चैलेंज के पीछे इशारा किस तरफ है। अपने से 13 साल छोटे शांति से बैठने वाले श्रीमाधोपुर वाले भाई साहब को भरी पंचायत में ललकारा तो 77 साल के अजमेर वाले वासु जी अपने फेफड़ों को टटोले बिना नहीं रहे। अब सूबे के पंचों को कौन समझाए कि शांति जी का इशारा तो कहीं ओर था, जिनको मैसेज देना था, उसमें खर्रा जी की आड़ लेकर देने में कामयाब हो गए। चर्चा है कि कोटा वाले भाई साहब को अपने फेफड़ों के बजाय घुटनों का दम पर ज्यादा भरोसा है।
साहब का दर्द
गुजरे जमाने में खाकी का सुख ले चुके भाई साहब ने सूबे की सबसे बड़ी पंचायत में अपना दर्द बयां क्या कर दिया, राज का काज करने वाले कई साहब लोगों को खुसरफुसर करने का मौका मिल गया। दर्द बयां करने वाले साहब भी कोई छोटे-मोटे नहीं, बल्कि पांच साल पहले अपने दम पर पंचायत में पहुंचने के बाद अब हाथ से हाथ मिला रखा है। खाकी वाले साहब लोगों में चर्चा है कि पिंकसिटी से सटी अगुणी वाली सीट से नुमाइंदी करने वाले भाई साहब ने अपनी ही पार्टी के राज का इकबाल खत्म होने की बात कहकर अपना दर्द तो बयां कर दिया, मगर इसके लिए जिम्मेदारों की लिस्ट भी बता देते, तो सारा सच सामने आ जाता। चूंकि राज के इकबाल के खात्मे के बारे में उनसे ज्यादा कोई नहीं जानता।
सांसें ऊपर-नीचे
ठाले बैठे हाथ वाले भाई लोग भी खुराफात की प्रेक्टिस में इतना ट्रेंड हो गए कि अपने बॉस तक को पीछे छोड़ दिया। बॉस ने तीन सप्ताह पहले कइयों की सांसों को ऊपर-नीचे किया, तो कारिन्दों ने भी शुक्र को नहले पर दहला मार दिया। इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वालों के ठिकाने में रोजाना इधर-उधर की सूंघासांघी करने वाले कुछ भाईयों ने वाट्सहेप पर अपने अपने ग्रुप बना रखे है। एक गु्रप के एडमिन ने शुक्र को अपना स्टेटस अपडेट किया, तो कइयों की धड़कनें तेज हो गईं। बेचैनी से कुछ तो पसीने से तरबतर हो गए। उनकी सांसें तेज होना भी लाजमी था, चूंकि भाई साहब ने बीस पदाधिकारियों की छुट्टी होने के संकेत जो दे दिए। पीसीसी की बडी कुर्सी पर बैठे भाई साहब की टेड़ी नजरों का असर तो कुछ दिनों बाद में दिखेगा, मगर फिलहाल खुराफातियों ने मजे जरूर ले लिए।
एक जुमला यह भी
सूबे इन दिनों एक जुमले को लेकर चर्चा जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नही बल्कि डीपीटी को लेकर है। इसकी चर्चा हो भी क्यों न, इन दिनों इसकी डिमाण्ड जो है। यह डीपीटी वैक्सीन नहीं है, जो संक्रामक रोगों से बचाव के लिए बच्चों को लगाया जाता है। इसका अर्थ कुछ और ही है। राज का काज करने वाले इस डीपीटी को लेकर लंच केबिनों में चर्चा किए बिना नहीं रहते। इस डीपीटी के सहारे से खाचरियावास वाले बाबोसा वीपी के कुर्सी तक पहुंच चुके हैं। चर्चा है कि अटारी वाले भाई साहब भी सुशासन के सपने को पूरा करने के लिए डिसीजन मैकिंग, पैसेंस एण्ड टारलेंस को प्रायरिटी पर जोर देने में कोई कसर नहीं छोड रहे हैं। अब इस डीपीटी वाले जुमले का मतलब समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है।
एल.एल. शर्मा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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