2 करोड़ होंगे खर्च, वन क्षेत्रों में ही मिलेगा शिकार और पानी, लेपर्ड नहीं करेंगे आबादी का रुख
आबादी क्षेत्रों में लेपर्ड अटैक रोकने के लिए वन क्षेत्रों में ‘प्रे-बेस’ बढ़ाने की तैयारी
यहां एनक्लोजन का निर्माण कर चितल सहित अन्य छोटे वन्य जीवों को रखा जाता है और पानी के स्रोत तैयार किए जाते हैं।
अजमेर। सरकारी प्रयास सफल रहे तो निकट भविष्य में लेपर्ड आबादी क्षेत्रों का रुख नहीं करेंगे और न ही पालतू मवेशियों व इंसान पर हमले की घटनाएं होंगी। वन विभाग, लेपर्ड के लिए वन क्षेत्रों में प्रे-बेस (शिकार) बढ़ाने की तैयारी कर रहा है। जिससे कि उन्हें जंगलों में ही शिकार और पानी मिल सके। अजमेर वन विभाग ने काजीपुरा स्थित गंगा भैरव घाटी कन्जर्वेशन रिजर्व में 50 हैक्टेयर वन भूमि पर प्रे-बेस बढ़ाने का प्रस्ताव तैयार किया है। जिस पर करीब दो करोड़ रुपए खर्च होंगे। मौजूदा समय में प्रदेश में लेपर्ड की संख्या में इजाफा हुआ है। लेकिन वन क्षेत्रों में उनके भोजन के लिए वन्य जीवों की कमी देखी जा रही है। इस कारण लेपर्ड आबादी क्षेत्रों में विचरण कर रहे हैं और आए दिन बकरी, कुत्ता, बछड़ा आदि मवेशियों को अपना शिकार (भोजन) बना रहे हैं।
वहीं इंसानों पर भी हिंसक हमले हो रहे हैं। इसीलिए यह आवश्यक है कि प्रदेश के जंगलों में प्रे-बेस बढ़ाने का कार्य प्राथमिकता से किया जाए। इसीलिए प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) एवं मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जयपुर पीके उपाध्याय ने प्रत्येक जिले के वनाधिकारियों को उनके क्षेत्राधिकार में आने वाले जंगलों में प्रे-बेस बढ़ाने के लिए विस्तृत कार्य योजना तैयार करने के निर्देश दिए हैं। प्रत्येक जिले में 25 से 50 हैक्टेयर तक के उपयुक्त वन क्षेत्रों में प्रे-बेस बढ़ाने की तैयारी की जा रही है। वनाधिकारियों को इसकी विस्तृत कार्य योजना, वित्तीय आवश्यकता एवं चयनित स्थल की लोकेशन तैयार कर प्रस्ताव भेजने के निर्देश दिए गए हैं। हाल ही उदयपुर में लेपर्ड के हमले में कुछ लोगों की जान गई तो कुछ घायल हुए। इसी तरह अलवर, पुष्कर सहित अन्य शहरों में भी इसी तरह के मामले सामने आए। इन प्रकरणों में वन विभाग की टीमों को लेपर्ड को रेस्क्यू करने में पसीने आए। यही कारण है कि अब जंगलों में प्रे-बेस बढ़ाने की तैयारी की जा रही है। जिससे कि इन घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके।
क्या है प्रे-बेस
जंगल में शिकार करने वाले जीवों के लिए भोजन का आधार, शिकार का आधार या शिकार क्षेत्र को प्रे-बेस कहते हैं। यहां एनक्लोजन का निर्माण कर चितल सहित अन्य छोटे वन्य जीवों को रखा जाता है और पानी के स्रोत तैयार किए जाते हैं। यहां इनकी वंश वृद्धि होती है। ऐसे में लेपर्ड, टाइगर सहित बड़े वन्य जीवों को जंगल में ही शिकार और पानी उपलब्ध हो जाता है।
फाॅयसागर रोड काजीपुरा स्थित गंगा भैरव घाटी कन्जर्वेशन रिजर्व में 50 हैक्टेयर वन भूमि पर प्रे-बेस बढ़ाने के लिए दो करोड़ रुपए का प्रस्ताव तैयार कर मुख्यालय भेजा गया है। प्रे-बेस बढ़ाने के लिए एनक्लोजर के निर्माण के साथ सौ चीतल की आवश्यकता होगी।
-सुगनाराम जाट, उप वन संरक्षक।
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