कीचड़-कचरे और झाड़ियों से अटी ‘जीवन दायिनी’, नदियां पूरी तरह से हो सकती है गंदे नाले में तब्दील

कभी कई गांवों की बुझाती थी नदियां

कीचड़-कचरे और झाड़ियों से अटी ‘जीवन दायिनी’, नदियां पूरी तरह से हो सकती है गंदे नाले में तब्दील

कभी छीपाबड़ौद की शान मानी जाने वाली नदियां आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाने को मजबूर है

छीपाबड़ौद। कभी छीपाबड़ौद की शान मानी जाने वाली नदियां आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाने को मजबूर है। जिन जलधाराओं ने कभी पूरे क्षेत्र को तृप्त किया, खेतों को सिंचाई दी और हरियाली का आधार बनीं, वे अब गंदगी और कूड़े के ढेर में तब्दील हो रही हैं। स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि इन नदियों का पानी पीना तो दूर, इनके किनारे खड़ा होना भी मुश्किल हो गया है।

 पर्यावरण और स्वास्थ्य पर मंडराता खतरा
गंदगी और कूड़े-कचरे की वजह से मच्छरों का प्रकोप बढ़ रहा है। जिससे मलेरिया, डेंगू और अन्य संक्रामक बीमारियों का खतरा बना हुआ है। बारिश के दिनों में स्थिति और विकट हो जाती है, जब गंदा पानी आसपास के इलाकों में फैलने लगता है। यह समस्या न केवल इंसानों के लिए बल्कि पशुओं और पक्षियों के लिए भी जानलेवा साबित हो रही है।

नदियां पूरी तरह से हो सकती है गंदे नाले में तब्दील
अगर अब भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो आने वाले कुछ वर्षों में छीपाबड़ौद की ये नदियां पूरी तरह से गंदे नाले में बदल जाएगी। सवाल यह है कि क्या हम अपनी इस अमूल्य धरोहर को बचाने के लिए आगे आएंगे, या इसे यूं ही नष्ट होने देंगे?

समस्या का निकाले स्थायी समाधान
अब समय आ गया है कि प्रशासन और जनता मिलकर इस समस्या का स्थायी समाधान निकालें। कुछ आवश्यक कदम जो तुरंत उठाए जाने चाहिए। कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। नदी में कूड़ा डालने वालों पर सख्त जुर्माना लगाया जाए।  नगर प्रशासन द्वारा नियमित सफाई अभियान चलाया जाए।आमजन में जागरूकता पैदा की जाए। लोगों को समझाया जाए कि नदियां हमारी धरोहर हैं और इन्हें बचाना हमारी जिम्मेदारी है।  कूड़ा कचरे का निस्तारण कराया जाए। नदी के पास कूड़ा फैंकने के बजाय उचित स्थानों पर कूड़ेदान लगाए जाएं।

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कौन जिम्मेदार? प्रशासन या जनता!
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि इस बदहाली के लिए सिर्फ आम लोग ही नहीं, बल्कि प्रशासन और पंचायत भी बराबर के दोषी हैं। सफाई कर्मचारियों द्वारा कस्बे का कचरा इन नदियों में फैंक दिया जाता है। घरों और दुकानों से निकलने वाला कूड़ा-कचरा भी सीधे जलधाराओं में बहा दिया जाता है। कई बार इस मुद्दे को अधिकारियों तक पहुंचाने की कोशिश की गई, लेकिन हर बार आश्वासनों के सिवा कुछ हाथ नहीं आया।

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नदियों का पानी पीना तो दूर अब इनके किनारे खड़ा रहना भी मुश्किल हो रहा है। फैैल रही गंदगी की दुर्गंध से वातावरण दूषित हो रहा है। 
- कन्हैयालाल, कस्बेवासी। 

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कई बार इस समस्या को अधिकारियों तक पहुंचाने की कोशिश की गई, लेकिन हर बार आश्वासनों के अलावा कुछ हाथ नहीं लगा। 
- ओमप्रकाश, कस्बेवासी। 

स्वच्छता को लेकर सरकार और प्रशासन पूरी तरह से प्रयासरत हैं, लेकिन आमजन की भागीदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कचरा इधर-उधर नहीं फै कें और अपने आसपास की सफाई बनाए रखें। यदि किसी भी ग्राम पंचायत द्वारा कचरा नदियों या अन्य जल स्रोतों में फेंका जा रहा है, तो यह गंभीर विषय है। हम इस ओर कड़ी निगरानी रखेंगे और आवश्यक कार्रवाई करते हुए संबंधित पंचायतों को पाबंद करेंगे ताकि स्वच्छता अभियान को पूरी प्रभावशीलता के साथ लागू किया जा सके। 
- सूर्यप्रकाश जारवल, विकास अधिकारी, पंचायत समिति छीपाबड़ौद। 

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