रांधा पुआ आज, बास्योड़ा कल
शील की डूंगरी चाकसू में भरेगा शीतला माता का मेला
शीतलाष्टमी पर कन्याओं को दूल्हा-दुल्हन बनाकर बगीचों में कराएंगे भ्रमण
जयपुर। शीतला माता के पूजन के लिए घरों में गुरुवार को रांधा पुआ पर विभिन्न पकवान बनाए जाएंगे और शुक्रवार को शीतलाष्टमी पर माता को सुबह ठंडे पकवानों का भोग लगाया जाएगा। महिलाओं ने इसके लिए मिट्टी के बर्तन, सिकोरे और अन्य पूजन सामग्री खरीदी। रांधा पुआ में राबड़ी, रोटी, पूड़ी, पुआ-पकौड़ी, गुलगुले, चावल, लापसी, शक्करपारे, कांजीबड़ा आदि बनाए जाते हैं। वेद वेदांग अनुशीलन संस्थान के अधिष्ठाता पंडित दुर्गादत्त शिवदत्त शास्त्री ने बताया कि शीतला माता चेचक, मिर्गी एवं चर्म रोगों से रक्षा करने वाली माता है। इसलिए लोकभाषा में इसे बास्योड़ा कहते हैं। शीतला माता के पूजन के लिए सौम्य (ठंडा) वार अर्थात सोमवार या शुक्रवार होना आवश्यक है। इस दिन प्रतिवर्ष शील की डूंगरी चाकसू में शीतला माता का मेला भरता है।
इस वर्ष शीतलाष्टमी सुस्थिर योग, मकर राशि में त्रिग्रही योग में मनेगी
गणगौर पूजन करने वाली महिलाओं, कुंवारी कन्याओं को दूल्हा-दुल्हन के रूप में सजाकर बाग-बगीचों में भ्रमण करते हैं। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर-जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि इस वर्ष शीतलाष्टमी सुस्थिर योग, मकर राशि में त्रिग्रही योग में मनेगी। चैत्र कृष्ण अष्टमी तिथि 24 मार्च को मध्यरात्रि 12.10 मिनट पर शुरू होगी जो 25 मार्च को रात 10.04 मिनट तक रहेगी। मां शीतला का उल्लेख स्कन्ध पुराण में मिलता है।
पौराणिक कथा प्रचलित है
एक बार की बात है प्रताप नगर नाम के गांव में गांववासी शीतला माता की पूजा-अर्चना कर रहे थे। पूजा के दौरान उन्होंने गर्म नैवेद्य माता के चढ़ाया, जिससे देवी का मुंह जल गया। इससे गांव में आग लग गई, लेकिन एक वृद्ध महिला का घर बच गया, क्योंकि उसने माता शीतला को ठंडा प्रसाद खिलाया था। इससे देवी ने प्रसन्न होकर वृद्ध महिला के घर को जलने से बचा लिया।
आयुर्वेद ठंडे भोजन को मानता है लाभकारी
आयुर्वेद में इसे ऋतु संधि कहते हैं। सर्दी का मौसम जाने के बाद आने वाली गर्मी के अनुसार हमें भोजन करना चाहिए। चेचक जैसे रोग में बुखार आने के बाद जलन होती है। ऐसे में वैद्य शीतलता प्रदान करने वाले भोजन की सलाह देते हैं। रात को बने भोजन में चन्द्रमा की शीतलता होती है, जो इसमें औषधीय गुणों का संचार करती है।
-डॉ. छाजूराम यादव, डीन रिसर्च राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान
आयुर्वेद के परिवेश में ठंडा भोजन कई तरह से लाभकारी है। पेट (उदर) के रोग एसिडिटी, जलन, कब्ज आदि में कांजी बड़ा, मक्का, बाजरा की राबड़ी से आराम मिलता है। कैर सांगरी की सब्जी से भोजन पाचन होता है और ये कफ एवं पित्त रोगों को खत्म करता है।
-डॉ. अंशुमान चतुर्वेदी, वरिष्ठ आयुर्वेद चिकित्साधिकारी

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