खाद्य सुरक्षा कानून में पुलिस को सीधी कार्रवाई का अधिकार नहीं, एफआईआर निरस्त

दूध-पनीर मिलावट मामले में पुलिस की सीधे कार्रवाई नहीं चलेगी

खाद्य सुरक्षा कानून में पुलिस को सीधी कार्रवाई का अधिकार नहीं, एफआईआर निरस्त

राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि खाद्य सुरक्षा कानून 2006 के तहत मिलावट वाले मामलों में पुलिस को सीधे कार्रवाई का अधिकार नहीं है। अदालत ने 2022 में धौलपुर में दर्ज एफआईआर और उसके आधार पर की गई कार्रवाई रद्द कर दी। संबंधित प्राधिकरण कानून के अनुसार स्वतंत्र रूप से कार्रवाई कर सकता है।

जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने दूध, मावा और पनीर जैसे खाद्य पदार्थ में मिलावट से जुड़े मामले में कहा है कि खाद्य सुरक्षा कानून में पुलिस को सीधे कार्रवाई का अधिकार नहीं है। इस अधिनियम के तहत मामलों की जांच और अभियोजन के लिए एक निर्धारित प्रक्रिया है और उनके अनुसार ही मामलों में कार्रवाई की जा सकती है। अदालत ने कहा है कि जिन मामलों में विशेष कानून बनाए जाते हैं, वह आम कानूनों पर प्रभावी होते हैं। 

इसके साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ धौलपुर के सदर पुलिस थाने में 2022 में दर्ज एफआईआर और उसके आधार पर चल रही आपराधिक कार्रवाई को रद्द कर दिया। हालांकि अदालत ने संबंधित अथॉरिटी को कहा है कि वह साल 2006 के एक्ट के तहत मामले में कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है। जस्टिस अनूप कुमार ने यह आदेश रवि की आपराधिक याचिका को मंजूर करते हुए दिए। याचिका में अधिवक्ता मयंक गुप्ता ने बताया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ पुलिस ने सीधे एफआईआर दर्ज कर मिलावटी और मिस ब्रांड का खाद्य सामान बेचने का आरोप लगाया। 

इस आधार पर पुलिस ने निचली अदालत में आरोप पत्र भी पेश कर दिया। जबकि खाद्य सुरक्षा कानून, 2006 में ऐसे मामलों को लेकर अलग से प्रावधान किए गए हैं। इसके अलावा याचिकाकर्ता के खिलाफ किसी को नुकसान पहुंचाने का आरोप भी साबित नहीं है। 
ऐसे में जब पुलिस को मामले में एफआईआर दर्ज करने का अधिकार ही नहीं है तो उसके आधार पर आरोप पत्र भी पेश नहीं किया जा सकता। इस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने मामले में दर्ज एफआईआर और उसके आधार पर की गई कार्रवाई को रद्द कर दिया है।

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