राजस्थान में मिर्गी के 41 प्रतिशत मरीजों में डिप्रेशन, वजह: सामाजिक उपेक्षा, 28 प्रतिशत मरीज आज भी इलाज के लिए झाड़ फूंक का ले रहे सहारा
उनके जीवन की गुणवत्ता भी बहुत कम हो जाती है
डिप्रेशन के कारण मरीजों को सही इलाज लेने में भी मुश्किल होती है और उनके जीवन की गुणवत्ता भी बहुत कम हो जाती है।
जयपुर। ग्रामीण इलाकों में आज भी झाड़फूंक के जरिए मिर्गी का इलाज किया जा रहा है जो कि मरीज की जान के साथ खिलवाड़ है। यही वजह है कि राजस्थान में सबसे आम न्यूरोलॉजिकल बीमारी मिर्गी के 41 प्रतिशत मरीज डिप्रेशन से ग्रस्त हैं। इसका सबसे बड़ा कारण दौरे आने पर होने वाली सामाजिक उपेक्षा है। डिप्रेशन के कारण मरीजों को सही इलाज लेने में भी मुश्किल होती है और उनके जीवन की गुणवत्ता भी बहुत कम हो जाती है।
क्या कहते हैं आंकड़ें
आंकड़ों की मानें तो भारत में मिर्गी के करीब डेढ़ करोड़ मरीज हैं। इनमें से अकेले राजस्थान में ही करीब पांच लाख मरीज मिर्गी रोग से ग्रस्त हैं। इतना ही नहीं हर साल करीब 25 हजार नए मिर्गी के मामले प्रदेश में सामने आ रहे हैं। इसके बावजूद जागरुकता की कमी इस बीमारी के इलाज में आड़े आ रही है।
इंडियन एपिलेप्सी एसोसिएशन के जयपुर चैप्टर के अध्यक्ष और सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. राजेंद्र सुरेका ने बताया कि राजस्थान में हुई एक रिसर्च में सामने आया है कि मिर्गी के मरीजों में डिप्रेशन की शिकायत सबसे आम है। इसका सबसे बड़ा कारण समाज में उन्हें लेकर भ्रांतियां हैं। मरीज को आम इंसान जैसा महसूस नहीं कराया जाता है जिससे वह अपने भविष्य को लेकर बहुत चिंतित हो जाते हैं और डिप्रेशन में चले जाते हैं। रिसर्च में 352 मरीजों ने भाग लिया था जिसमें ये परिणाम सामने आए।
28% मरीजों की अब दूर हो रही भ्रांति
डॉ. सुरेका ने बताया कि अब मिर्गी के झाड़फूंक से ठीक होने की भ्रांति तेजी से बदलाव आ रहा है। करीब 10 साल पहले तक जहां 78 प्रतिशत मरीज मिर्गी के इलाज के लिए डॉक्टर्स के पास न जाकर झाड़फूंक के लिए जाते थे अब भी 28 प्रतिशत मरीज मिर्गी के इलाज के लिए झाड़फूंक करा रहे हैं।
57% लोग मानने लगे, मिर्गी दिमाग की बीमारी
शोध में यह भी सामने आया है कि मिर्गी के वे मरीज जो इसे बुरी आत्मा की बीमारी न मान कर दिमागी बीमारी मानते हैं, उनकी संख्या बढ़ी है। चार सालों में ऐसे मरीज 23 से 57 प्रतिशत तक पहुंच गए हैं। करीब 10 प्रतिशत से भी कम लोग अपनी इस बीमारी को नजरअंदाज कर रहे हैं।
मिर्गी से जुड़े मिथक और उनकी सच्चाई
मिथक: मिर्गी का दौरा पड़ने पर मरीज के मुंह में चम्मच या धातु की वस्तु डालना जरूरी है।
सत्यता: ऐसा करना बिल्कुल गलत है। इससे रोगी को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है और दांत या जबड़ा भी टूट सकता है। दौरे के समय रोगी को सिर्फ एक तरफ करवट देकर सुरक्षित स्थान पर लेटना चाहिए और सिर के नीचे कोई मुलायम वस्तु रखनी चाहिए।
मिथक: मिर्गी किसी भूतप्रेत या टोने-टोटके का असर है।
सच्चाई: मिर्गी का संबंध मस्तिष्क में असामान्य विद्युत गतिविधि से होता है। यह एक न्यूरोलॉजिकल विकार है, जिसका इलाज दवाओं और उचित देखभाल से संभव है।
मिथक: मिर्गी छूने या संपर्क में आने से फैलती है।
सच्चाई: मिर्गी किसी भी प्रकार से संक्रामक रोग नहीं है। यह अनुवांशिक या मस्तिष्क में चोट, संक्रमण या अन्य कारणों से हो सकती है लेकिन यह किसी और को छूने से नहीं फैलती।
मिथक: मिर्गी का कोई इलाज नहीं है, यह जीवन भर साथ रहती है।
सच्चाई: मिर्गी का इलाज संभव है। सही समय पर शुरू की गई दवाओं से लगभग 70 प्रतिशत मरीज पूरी तरह सामान्य जीवन जी सकते हैं।
हार्ट की तरह अब मिर्गी के लिए भी पेसमेकर
जिस तरह हार्ट की अनियंत्रित धड़कन को नियंत्रित करने के लिए पेसमेकर लगाया जाता है। उसी तरह अब दिमाग में मिर्गी को कंट्रोल करने के लिए भी पेसमेकर जैसा डिवाइस वेगस नर्व स्टीमुलेटर आ गया है। यह गर्दन के पास इंप्लांट होता है जो ब्रेन तक जाने वाली नर्व से जुड़ता है और मिर्गी आने पर उसे इलेक्ट्रिक शॉक देकर बढ़ने से रोकता है।
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