किसानों के लिए मुसीबत बना लैंड रिकॉर्ड का डिजिटलाइजेशन
पायलट प्रोजक्ट के तौर पर यह काम शुरू किया गया था
प्रदेश में डिजिटल सेटलमेंट के जरिए प्रदेश भर में भूमि का फाइनल रिकॉर्ड तैयार करने की कवायद शुरू की थी। प्रदेश की 12 तहसीलों में पायलट प्रोजक्ट के तौर पर यह काम शुरू किया गया था।
जयपुर। दावा तो यह किया गया था कि लैंड रिकॉर्ड डिजिटलाइजेशन से राजस्थान के किसानों की जमीनों का रिकॉड पूरी तरह सुरक्षित होगा, लेकिन हुआ इसका उलटा। इसने किसानों के लिए मुसीबतें खड़ी कर दी। किसी किसान का रकबा कम कर दिया गया, तो किसी की नक्शों में जमीन घटा दी। सालों से एक-दूसरे के सुख-दुख में काम आ रहे किसानों का भाई-चारा बिगड़ गया और अब उन्हें कोर्ट कचहरी में जाने को मजबूर होना पड़ रहा है। किसानों की जातियां तक बदल दी गई। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने अगस्त 2021 में प्रदेश में डिजिटल सेटलमेंट के जरिए प्रदेश भर में भूमि का फाइनल रिकॉर्ड तैयार करने की कवायद शुरू की थी। प्रदेश की 12 तहसीलों में पायलट प्रोजक्ट के तौर पर यह काम शुरू किया गया था।
सबसे ज्यादा जयपुर में हुई गड़बड़ियां
वैसे तो लैंड रिकॉर्ड डिजिटलाइजेशन में गड़बड़ियां पूरे प्रदेश में हुई है, लेकिन सबसे ज्यादा जयपुर जिले की सांगानेर, बस्सी और जमवारामगढ़ तहसीलों में हुई हैं। इन गड़बड़ियों की जानकारी मुख्य सचिव सुधांश पंत और राजस्व विभाग के प्रमुख शासन सचिव दिनेश कुमार तक भी पहुंची है। सांगानेर तहसील के गोनेर गांव में खसरा नंबर 1564 और 1686 के मध्य मेड़ में हुई गड़बड़ी को काश्तकारों ने ठीक करवा लिया, किन्तु रामचन्द्रपुरा गांव मं आॅनलाइन नक्शे में करीब 25 से 30 खसरा नंबर गलत बना दिए गए, जो अभी तक ठीक नहीं किए गए। बस्सी तहसील के कानड़वास गांव में खसरा नंबर 157, 159 और 230 में भी सीमाओं की नाप आॅनलाइन नक्शे में बदल दी गई, जिसे ठीक करने की प्रक्रिया जारी है।
हुआ इसका उलटा
लैण्ड रिकॉर्ड डिजिटलाइजेशन में सरकार के दावों का उलटा हुआ। किसानों की खेतों की मेड़ों को गलत दर्शा दिया गया है। खसरा नंबरों के क्षेत्रफल और माप में अंतर आ गया। इससे किसानों के मध्य आपसी मुकदमों की संख्या बढ़ गई। शुद्धि के लिए किसानों को उपखंड अधिकारी की कोर्ट में जाना पड़ रहा है। इसके साथ ही एक खसरा नंबर की जगह दूसरा खसरा नंबर डाल दिया गया।
लैण्ड रिकॉर्ड डिजिटलाइजेशन से भू-नक्शा एक साथ एक से अधिक खसरा नक्शों का कम्पोजिट नक्शा नहीं निकल रहा है। वर्तमान में जमीन का बेचान अथवा बंटवारा होने से नक्शे में तरमीन पटवारी द्वारा आॅनलाइन की जाती है जिससे कभी-कभी पड़ौसी खातेदारों के खेतों की सीमा भी गलत कर दी गई। यहीं नहीं पटवारियों के पास उपलब्ध नक्शों में नवीन तरमीमें नहीं होने से सीमाज्ञान प्रकरणों में समस्याएं आने लगी है। सेग्रीग्रेशन में भी गड़बड़ियां कर दी गई। इसकी जांच केवल पटवारी स्तर तक ही होती है। इस वजह से कई पटवारियों ने मनमानी की है। पूरी तहसील की तरमीम तहसील कार्यालय में बैठकर एलआरसी पटवारी ने की है।
यह किया था दावा
तत्कालीन राजस्व मंत्री ने दावा किया था कि सैटेलाइट से मिली इमेज, रिकॉर्ड में उपलब्ध नक्शों और धरातल की स्थिति का मिलान कर यह फाइनल रिकॉर्ड तैयार होगा। इस तरह ये बिल्कुल सटीक होगा जो लम्बे अरसे तक काम आएगा और इसमें कोई फेरबदल नहीं हो पाएगा। एक तरह से यह भूमि के फाइनल सेटलमेंट के रूप में होगा।
लैंड रिकॉर्ड डिजिटलाइजेशन में गड़बड़ियां होने की काफी शिकायतें मिली है। कुछ विधायकों ने भी इसकी जानकारी दी है। सभी जिलों से कलक्टरों से जानकारी ली जाएगी और गलतियां सुधारी जाएगी।
- दिनेश कुमार, प्रमुख शासन सचिव, राजस्व विभाग, राजस्थान

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