आठ साल में आपराधिक मामले की जांच पूरी नहीं, दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई करें पुलिस कमिश्नर : हाईकोर्ट
शिप्रापथ थाने में दर्ज एक अन्य मामले में भी वांछित
अदालत ने भी जांच अधिकारी को तीन बार जांच पूरी करने के लिए समय दिया, लेकिन जांच अभी तक लंबित है।
जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने धोखाधड़ी से जुडे़ मामले में आठ साल में जांच पूरी नहीं करने और दोषी महिला हिस्ट्रीशीटर को गिरफ्तार नहीं करने पर नाराजगी जताई है। अदालत ने कहा कि मामले में पुलिस ने हास्यास्पद तरीके से जांच की है। प्रताप नगर थाने के एसएचओ और एसीपी प्रताप नगर जांच को गंभीरता से नहीं लेने और उसे लंबा खींचने के लिए स्पष्ट रूप से जिम्मेदार हैं। अदालत ने पुलिस आयुक्त को निर्देश दिए हैं कि प्रकरण में लापरवाह पुलिसकर्मियों को तत्काल आरोप पत्र जारी करे और उनके खिलाफ विभागीय जांच आरंभ करें। जस्टिस सुदेश बंसल की एकलपीठ ने यह आदेश अशोक मेहता की आपराधिक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए। अदालत ने कहा कि धोखाधड़ी को लेकर साल 2013 में जेडीए थाने में मामला दर्ज हुआ था, जिसे बाद में प्रतापनगर थाने में स्थानान्तरित किया गया।
प्रकरण में जांच अधिकारी ने आरोपी रामप्रकाश गुप्ता और उसकी पत्नी अलका गुप्ता को दोषी माना। रामप्रकाश को गिरफ्तार कर 15 जून, 2017 को चालान पेश किया गया। अलका के गिरफ्तार नहीं होने के चलते मामले में जांच लंबित रखी गई। प्रकरण में न तो अलका को अभी तक गिरफ्तार किया गया और ना ही जांच पूरी हुई। याचिकाकर्ता ने मामले में जांच पूरी करने के निर्देश देने के लिए याचिका दायर की। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से अदालत में प्रगति रिपोर्ट पेश की गई, जिसमें सामने आया कि अलका हिस्ट्रीशीटर है और उसके खिलाफ विभिन्न थानों में 15 मामले में दर्ज हैं।
सहायक पुलिस आयुक्त विनोद शर्मा ने अदालत में पेश होकर कहा कि आरोपी अलका के खिलाफ गिरफ्तारी का स्थाई वारंट लिया गया है और वह शिप्रापथ थाने में दर्ज एक अन्य मामले में भी वांछित है। अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी बीते आठ साल में आरोपी की गिरफ्तारी के लिए जरूरी कदम उठाने में असफल रहे हैं। जिसके चलते जांच भी पूरी नहीं हुई। अदालत ने भी जांच अधिकारी को तीन बार जांच पूरी करने के लिए समय दिया, लेकिन जांच अभी तक लंबित है। अदालत ने कहा कि आरोपी की गिरफ्तारी के लिए स्थाई वारंट लेना पर्याप्त कदम उठाना नहीं कहा जा सकता।

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