अंतरराष्ट्रीय नर्सेज दिवस आज :डॉक्टर्स और मरीज के बीच की अहम कड़ी हैं नर्सेज
अस्पतालों में इंडियन नर्सिंग काउंसिल के नियम भी नहीं हो पा रहे पूरे
नर्सेज की कमी पूरी कर वर्तमान नर्सेज पर दबाव कम किया जाए और समय पर नर्सेज को सरकार द्वारा प्रोत्साहित किया जाए।
जयपुर। एक मरीज जब बीमार होकर अस्पताल में भर्ती होता है और उसका इलाज सबसे पहले नर्सेज के माध्यम से ही शुरू होता है। मरीज का इलाज शुरू होने से उसके ठीक होकर घर जाने तक डॉक्टर्स और मरीज के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में नर्सिंगकर्मी अपनी भूमिका निभाता है। डॉक्टर्स मरीज का इलाज करते हैं, उनका ऑपरेशन करते हैं, लेकिन इस बीच मरीज की केयर एक नर्सिंगकर्मी ही करता है। मरीज और नर्सिंगकर्मी के बीच एक भावनात्मक रिश्ता इस दौरान बन जाता है। नर्सिंगकर्मी की इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होने के बावजूद अस्पतालों में नर्सेज की कमी चिंता का विषय है। राजस्थान प्रदेश के लगभग हर जिले में मेडिकल कॉलेज बन चुके हैं, लेकिन बावजूद इसके अस्पतालों में आज भी मैन पावर की बहुत कमी है। इनमें सबसे ज्यादा जरूरत अगर किसी संवर्ग की है तो वो नर्सिंग संवर्ग है। प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी सवाई मानसिंह अस्पताल सहित अन्य मेडिकल कॉलेजों से जुड़े अस्पतालों में नर्सेज जरूरत के अनुपात में काफी कम है। ऐसे में ऑपरेशन या इलाज के बाद जो नर्सिंग केयर मरीजों को मिलनी चाहिए, वो नहीं मिल पा रही है। वर्तमान में प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में करीब 70 हजार नर्सिंग ऑफिसर और नर्सिंगकर्मी हैं, लेकिन जरूरत इससे कहीं ज्यादा है।
एक नर्सिंगकर्मी के जिम्मे पूरा वार्ड
प्रदेश के सबसे बड़े सवाई मानसिंह अस्पताल सहित अन्य मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में एक वार्ड में 50-50 मरीज सिर्फ एक या दो नर्सिंगकर्मियों के भरोसे हैं। आईसीयू और क्रिटिकल केयर इकाइयों में भी मरीजों के अनुपात में नर्सेज नहीं होने से मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
क्या कहते हैं आईएनसी के नियम
इंडियन नर्सिंग काउंसिल के तय मापदंडों के अनुसार आईसीयू में भर्ती तीन मरीजों पर एक नर्स का होना जरूरी है। अगर मरीज ज्यादा गंभीर है तो एक बैड पर एक नर्स होना चाहिए। जनरल वार्ड में छह मरीजों पर एक नर्स होनी चाहिए, लेकिन प्रदेश में वर्तमान स्थिति में ये मापदंड सिर्फ कागजों में ही हैं। नर्सिंग स्टॉफ के अवकाश लेने की स्थिति में वैकल्पिक व्यवस्था के तहत इंडियन नर्सिंग काउंसिल के नियमों के अनुसार 30 प्रतिशत लीव रिजर्व नर्सेज स्टॉफ भी होना चाहिए। ऐसे में वर्तमान संख्या के साथ ही करीब 40 हजार नर्सेज की प्रदेश में और जरूरत है।
सरकारी अस्पतालों में नर्सेज की कमी के कारण नर्सिंग काउंसिल के मापदंड पूरे नहीं हो रहे हैं। इससे मरीजों को बेहतर नर्सिंग केयर नहीं मिल पा रही है। नर्सिंग स्टॉफ पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है। इसके साथ ही प्रदेश में अलग से नर्सिंग निदेशालय स्थापित किए जाने की भी जरूरत है।
-खुशीराम मीणा, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष,
ऑल इंडिया गवर्नमेंट नर्सेज फेडरेशन।
अस्पतालों में नर्सेज की भारी कमी है। मरीजों की बढ़ती संख्या के कारण नर्सेज का कार्यभार काफी बढ़ गया है। ऐसे में करीब 20 हजार नर्सेज और लीव रिजर्व नर्सेज सहित करीब 40 हजार नर्सेज की भर्ती और होनी जरूरी है।
-नरेंद्र सिंह शेखावत, कार्यकारी प्रदेशाध्यक्ष,
राजस्थान नर्सेज एसोसिएशन।
नर्सिंगकर्मी मरीजों और डॉक्टर्स के बीच की अहम कड़ी है। इसलिए उनकी मांगों पर भी विशेष ध्यान दिया जाना जरूरी है। नर्सेज की कमी पूरी कर वर्तमान नर्सेज पर दबाव कम किया जाए और समय पर नर्सेज को सरकार द्वारा प्रोत्साहित किया जाए।
-प्यारेलाल चौधरी, प्रदेशाध्यक्ष,
राजस्थान नर्सेज एसोसिएशन।
Comment List