कविता आज भी जिंदा है, पहले भी जिंदा थी और आगे भी रहेगी : सुनील व्यास
नए बच्चों के लिए सोशल मीडिया अच्छा प्लेटफॉर्म
हास्य कवि सुनील व्यास का कहना है कि पुराने कवि सम्मेलन ट्रेडिशनल होते थे।
जयपुर। हास्य कवि सुनील व्यास का कहना है कि पुराने कवि सम्मेलन ट्रेडिशनल होते थे। इसके श्रोता ये मानते थे कि रात को 12 बजे बजे बाद कविता का रंग और सुरूर चढ़ेगा। पहले ज्यादातर कवि सम्मेलन देर रात या सुबह तक भी चलते थे। वहीं आज के कवि सम्मेलन शो के रूप में बदल गए है और इसका सबसे बड़ा कारण एंटरटेनमेंट के कई साधन होना है, लेकिन ये बात जरूर कहना चाहूंगा कि कविता आज भी जिंदा है, पहले भी जिंदा थी और आगे भी रहेगी। लाफ्टर शो, कवि सम्मेलन का नया स्वरूप है। जहां कवि सम्मेलन आज भी जिंदा है और लाफ्टर शो कुछ सेलेक्टेड जगहों पर ही जिंदा है। आजकल ओपन माइक का ट्रेंड और चला है। इसको मैं हास्य नहीं मानता हूं, इसमें हास्य तरसता है। केवल गालियों का उपयोग ज्यादा होता है। इस ओपन माइक कार्यक्रम में बीच में लगता है अब हास्य आएगा, लेकिन वो हास्य इंतजार करता है कि मैं कब आऊंगा। सोशल मीडिया का प्रभाव ये पड़ा है कि जो स्ट्रगल हम लोगों को करना पड़ा, वो आज की जेनरेशन को नहीं करना पड़ा है। हम कवि सम्मेलन में कागज-कॉपी पेन लेकर जाते थे, लेकिन आज के दौर में इन चीजों की जरूरत नहीं पड़ती है। आज के कवि पुराने नए दोनों की कविताओं को आसानी से सोशल मीडिया पर आसानी से देख और सुन सकते है।
व्यास ने कहा कि जिन नए बच्चों ने अच्छा लिखा है, जो लिखना चाहते है उनके लिए ये अच्छा प्लेटफॉर्म मिल गया है। वो रातों-रात वायरल हो गए है। इसी कारण सोशल मीडिया की वजह से ही इनकों हमारे दौर के बराबर स्ट्रगल नहीं करना पड़ रहा है। नेगेटिव प्रभाव कंटेंट कॉफी का पड़ा है। आजकल के दौर में हर कोई कंटेंट को कॉपी कर उसका उपयोग कर रहा है। अधिकतर लोग मेहनत करना नहीं चाहते है। इसके अलावा लोगों ने पढ़ना छोड़ दिया है। पहले के लोग पढ़ते थे। जब तक पढ़ा नहीं जाएगा, तब तक आप गहराइयों में नहीं उतर पाओगे। साथ ही महसूस भी नहीं कर पाओगे। व्यास ने नवज्योति के कवि सम्मेलन देश राग के बारे में बोला कि मैं बहुत बड़ा सौभाग्शाली हूं कि मुझे इसमें भाग लेने का मौका मिला। मैंने इस कवि सम्मेलन की बहुत तारीफे सुनी है। मैं बहुत ही भावुक हूं और खुश भी हूं।
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