270 साल पहले ब्रह्मपुरी में स्थापित हुआ था मंगला माता का मंदिर
जयपुर बस रहा था तब अश्वमेघ यज्ञ के लिए सिद्धपुर गुजरात से आए थे पंडित
राजा ने ब्राह्मणों से अनुरोध किया कि राज्य में धर्म का निवास सदैव रहे अत: आप यहीं पर रहे। महाराजा का आमंत्रण स्वीकार कर ब्राह्मण जयपुर के ब्रह्मपुरी इलाके में बस गए।
जयपुर। नाहरगढ़ की पहाड़ियों की तलहटी में महालक्ष्मी का रूप मंगला माता का मंदिर ब्रह्मपुरी इलाके में करीब 270 साल पहले स्थापित हुआ था। जयपुर नगर बस रहा था तब महाराजा सवाई जयसिंह ने अश्वमेघ यज्ञ किया था। इसके लिए सिद्धपुर गुजरात से ब्राह्मण पंडितों को बुलाया था। ब्राह्मणों ने अश्वमेघ यज्ञ सम्पूर्ण कराया। राजा ने ब्राह्मणों से अनुरोध किया कि राज्य में धर्म का निवास सदैव रहे अत: आप यहीं पर रहे। महाराजा का आमंत्रण स्वीकार कर ब्राह्मण जयपुर के ब्रह्मपुरी इलाके में बस गए। यहां मंगला माता मंदिर में ठाकुर त्रिलोकी नाथजी के रूप में राधा-कृष्ण, मंगला माता, गणेश, काल भैरव और शिव परिवार स्थापित कर सेवा, पूजा-अर्चना करने लगे।
काले पत्थर की है मंगला माता की मूर्ति
मंदिर में पांचवीं पीढ़ी के पुजारी सुरेन्द्र ज्ञानी ने बताया कि राजा ने ब्रह्मपुरी क्षेत्र ब्राह्मणों को रहने के लिए दिया था। शुभता के लिए गणेशजी का अनुष्ठान और राजकोष की वृद्धि के लिए महालक्ष्मी (मंगला माता) का अनुष्ठान होता था। मां मंगला की प्रतिमा लगभग पांच फुट है। पहले लोग इस बात का ध्यान रखकर विग्रह निर्माण करते थे कि जैसे ही भक्त उनके सम्पर्क में आए तो उनका कल्याण हो। मंगला माता की मूर्ति उसी काले पत्थर से निर्मित है जो नवग्रह स्थापित करने के लिए जयपुर आया था। मंगला माता की षोड़शोपचार और कभी-कभी पंचोपचार पूजा से अर्चना होती है। हर नवरात्रि में कन्याओं का पूजन, हवन यज्ञ आदि अनुष्ठान कराए जाते हैं।

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