जयपुर में उत्तर भारत का पहला स्किन बैंक : झुलसे मरीजों के लिए वरदान है स्किन बैंक, लेकिन जागरूकता के अभाव में तीन साल में महज 45 स्किन डोनेशन

50 फीसदी तक झुलसे मरीजों को लगाई जा सकती है स्किन

जयपुर में उत्तर भारत का पहला स्किन बैंक : झुलसे मरीजों के लिए वरदान है स्किन बैंक, लेकिन जागरूकता के अभाव में तीन साल में महज 45 स्किन डोनेशन

तीन से पांच साल तक स्किन बैंक में प्रिजर्व रखी जा सकती है दान की हुई स्किन

जयपुर। एक अनुमान के मुताबिक देशभर में हर साल जलने से एक लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है। इसका मुख्य कारण होता है बर्न केसेज के मरीजों के शरीर से फ्लूड का लगातार निकलना। ऐसे मामलों में 30-40 फीसदी से ज्यादा जलने पर मरीज का सर्वाइवल मुश्किल हो जाता है। ऐसे में स्किन बैंक के जरिए ब्रेनडैड व्यक्ति द्वारा दान की गई स्किन को सुरक्षित रखा जाता है और झुलसने वाले मरीज की स्किन ग्राफ्टिंग कर उसे नई जिंदगी दी जा सकती है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए राजधानी जयपुर के सवाईमान सिंह अस्पताल के सुपरस्पेशलिटी ब्लॉक में उत्तर भारत का पहला स्किन बैंक करीब तीन साल पहले जून 2022 में शुरू किया गया था।

लेकिन अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित इस बैंक में जागरुकता के अभाव में स्किन डोनेशन उम्मीद के मुताबिक नहीं हो पा रहा है या यूं कहें कि बहुत कम हो रहा है। हालांकि कई स्वयंसेवी संस्थाएं अस्पताल प्रशासन के साथ जागरुकता बढ़ाने पर काम कर रही हैं लेकिन अभी भी जागरुकता के अभाव में कैडेवर स्किन डोनेशन की संख्या काफी कम है। स्किन बैंक की शुरुआत से लेकर अब तक करीब 45 स्किन डोनेशन ही हुए हैं। जो कि मरीजों के अनुपात में काफी कम है।

स्किन ट्रांसप्लांट क्या है?
बर्न मरीजों के लिए डोनेटेड स्किन जीवनदान का काम कर सकती है क्योंकि डोनेटेड स्किन बर्न मरीजों के लिए ड्रेसिंग का काम करती है और संक्रमण का खतरा कम करती है। स्किन ट्रांसप्लांट एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें दूसरे व्यक्ति यानी डोनर या खुद मरीज की त्वचा को प्रभावित हिस्से पर ग्राफ्ट यानी लगाया जाता है। यह खासतौर पर गंभीर जलने, दुर्घटनाओं, कैसर या स्किन रोगों के मामलों में किया जाता है। इस प्रोसेस में हाथ और पैरों से स्किन ली जाती है। जब डोनेटेड स्किन बर्न मरीजों को लगाई जाती है तो दो से तीन सप्ताह बाद मरीज रिकवर करना शुरू हो जाता है और मरीज के बचने की उम्मीद काफी बढ़ जाती है।

स्किन ट्रांसप्लांट के प्रकार
ऑटोग्राफ्ट: इसमें मरीज की खुद की त्वचा का इस्तेमाल किया जाता है।
ऑलोग्राफ्ट: इसमें किसी दूसरे व्यक्ति यानी डोनर की त्वचा लगाई जाती है।
जेनोग्राफ्ट:इसमें किसी अन्य जीव जैसे सूअर या गाय की त्वचा का अस्थायी उपयोग किया जाता है।
आर्टिफिशियल स्किन ग्राफ्ट: इसमें लैब में तैयार बायोसिंथेटिक त्वचा का उपयोग किया जाता है।

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स्किन ट्रांसप्लांट कैसे किया जाता है
स्किन ट्रांसप्लांट में सबसे पहले मृत व्यक्ति यानी कैडेवर से त्वचा ली जाती है। इसके बाद दान की गई त्वचा को स्किन बैंक में संरक्षित किया जाता है। सर्जन जरूरत के अनुसार स्किन तैयार करते हैं। इसके बाद जरूरतमंद मरीज के प्रभावित हिस्से पर सर्जन द्वारा स्किन को लगाया जाता है। ग्राफ्ट की त्वचा धीरे-धीरे शरीर से जुड़ती है। अगर यह मरीज की खुद की स्किन है तो यह स्थायी होती है। डोनर स्किन कुछ समय बाद खुद झड़ जाती है लेकिन यह नई स्किन ग्रोथ में मदद करती है।

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स्किन ट्रांसप्लांट के फायदे
संक्रमण का खतरा कम होता है।
त्वचा जल्दी ठीक होती है और नई स्किन ग्रोथ में मदद मिलती है।
सर्जरी के बाद दर्द और जटिलताएं कम होती हैं।

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स्किन डोनेशन की क्या है प्रक्रिया?
मृत या ब्रेनडैड व्यक्ति घोषित किए जाने के छह घंटे के अंदर त्वचा निकाली जाती है।
त्वचा को ग्लिसरीन में संरक्षित कर रखा जाता है।
इसे 4 डिग्री सेल्सियस से -80 डिग्री सेल्सियस के बीच के तापमान पर स्टोर किया जाता है।
यह स्किन बैंक में तकरीबन तीन से पांच साल तक इस्तेमाल करने योग्य रहती है।
18से 80 साल की उम्र के व्यक्ति की स्किन दान की जा सकती है।
जलने या गंभीर त्वचा रोग से पीड़ित व्यक्ति स्किन डोनर नहीं हो सकता।

इन मरीजों के लिए स्किन ट्रांसप्लांट है जीवनदान
गंभीर रूप से जले हुए मरीज।
एक्सीडेंट या ट्रोमा के मरीज।
स्किन कैंसर या अन्य स्किन डिजीज से प्रभावित लोग।
डायबिटीज के कारण होने वाले स्किन अल्सर के मरीज।

प्रोटीन लॉस-इलेक्ट्रोलाइट फ्लूड की कमी से फैलता है संक्रमण, स्किन ट्रांसप्लांट से काबू संभव
स्किन डोनेशन के लिए हम लोगों को जागरुक करने का काफी प्रयास कर रहे हैं। स्वयंसेवी संस्थाएं भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। अब तक करीब 45 स्किन डोनेशन हो पाए हैं। स्किन डोनेशन को लेकर लोगों में धीरे-धीरे जागरूकता नजर आ रही है। कई बार हादसों के दौरान मरीज का शरीर 40 से 50 फीसदी तक झुलस जाता है। ऐसे में मरीज के शरीर से प्रोटीन लॉस और इलेक्ट्रोलाइट फ्लूड की कमी होने लगती है। इस लॉस के बाद धीरे-धीरे मरीज के शरीर में संक्रमण फैलना शुरू होता है और इस संक्रमण के कारण अधिकतर मरीजों की जान चली जाती है, लेकिन अब स्किन बैंक के माध्यम से ऐसे मरीजों को स्किन उपलब्ध कराई जा रही है। 
-डॉ. राकेश जैन, नोडल ऑफिसर स्किन बैंक एवं सीनियर प्लास्टिक सर्जन एसएमएस मेडिकल कॉलेज। 

 

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