कविताओं के माध्यम से कुछ कवि राजनीति में पाना चाहते हैं स्थान: सुरेश अवस्थी
पिंकसिटी में आकर हम गुलाबी-गुलाबी हो जाते हैं
मुझे काव्यपाठ करते हुए तीन दशक से अधिक समय हो गया है।
जयपुर। पिंकसिटी में आकर हम गुलाबी-गुलाबी हो जाते हैं। मुझे काव्यपाठ करते हुए तीन दशक से अधिक समय हो गया है। इस दौरान अमेरिका, दुबई, इंग्लैंड सहित 24 से अधिक देशों में हुए कवि सम्मेलनों में हिस्सा ले चुका हूं। ये कहना था कवि सुरेश अवस्थी का। उन्होंने कहा कि विदेशों में रहने वाले भारतवंशियों को रोज कविताएं सुनने का मौका नहीं मिलता। क्योंकि भारत में तो इसके आयोजन होते रहते हैं, लेकिन विदेशों में इसके कभी कभार ही आयोजन होते हैं। इसलिए विदेशों में कवि सम्मेलनों में लोग कवियों को मन से सुनते हैं। उन्हें लगता है जैसे कोई अपना आ गया हो।
अवस्थी का कहना था कि कवि सम्मेलनों में कविताएं कम हो रही हैं और लाफ्टर बढ़ रहा है। क्योंकि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हर कोई व्यस्त और परेशान रहता है। परेशानी भरी लाइफ के बीच कुछ हंसी के पल मिलें, तो लोग इन्हें छोड़ना नहीं चाहते। ऐसे में कवि कविताओं में कुछ हंसी-ठिठोली भी कर देते हैं।
नहीं पता कविताओं का अर्थ :
कवि सुरेश अवस्थी का कहना है कि सोशल मीडिया के समय में हर इंसान की जिंदगी के लगभग हर पल सोशल मीडिया पर उपलब्ध हैं। कहीं जाना हो या कोई कार्यक्रम हर गतिविधियां सोशल मीडिया पर अपलोड कर दूसरों तक आसानी से पहुंचाई जा रही है। लेकिन इस बीच सोशल मीडिया के लोगों में से एक वर्ग ऐसा भी है जिन्हें कविताओं का अर्थ पता नहीं है। इससे आज के समय में कविताओं का स्तर नीचे की ओर जा रहा है। हालांकि इस बीच राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तराखण्ड सहित कई ऐसे राज्य हैं, जहां आज भी बढ़ी संख्या में कविताओं के श्रेता हैं।
राजनीति में पाना चाहते हैं जगह :
कवि सुरेश अवस्थी का कहना है कि सोशल मीडिया के जमाने में कवि और कविताओं को सपोर्ट नहीं मिला है। आजकल तो देखने में आया है कि कविता के माध्यम से कुछ कवि राजनीति में स्थान पाना चाहते हैं। वे राजनीतिक संदर्भ को लेकर कविताएं पढ़ते हैं। कहा जाए तो जिस तरह राजनीति करने वाले लोग राजनीतिक फायदा उठाने के लिए आए दिन बयानबाजी करते हैं, ठीक उसी तरह कवि भी ऐसा करके राजनीतिक दुनिया के आसपास छाए हुए हैं।
छोटे कमरों से बाहर अब होटलों और अन्य जगह हो रहे आयोजन :
कवि अवस्थी ने बताया कि पहले के जमाने में संसाधन कम हुआ करते थे। हमने वो दिन भी देखा है जब एक छोटे से कमरे में कविता पाठ किए जाते थे। हमें बैठने के लिए छोटी चारपाइयों में जगह मिलती थी। पैदल-पैदल आयोजन स्थल जाया करते थे। फिर साइकिलें आई और अब बस, ट्रेन और अब फ्लाइट्स की भी सुविधा मिल रही है।
हास्य और व्यंग के नाम पर फूहड़ता बर्दाश्त नहीं :
हास्य कवि अवस्थी का कहना है कि देशभर में हजारों की संख्या में कवि सम्मेलन हो रहे हैं। जहां कई संस्थाएं कवि सम्मेलनों में शुद्ध कविता पाठ कराती हैं। लेकिन इस बीच देखा जा रहा है कि कवि सम्मेलनों में हास्य और व्यंग के नाम पर फूहड़ता परोसी जा रही है। जिसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। यहां तक की अब तो राजनीति फायदा उठाने वाले व्यक्तियों पर भी व्यंग किए जाने लगे हैं, जो गलत है।
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