राजस्थानी भाषा के लालित्य से रूबरू कराकर विदा हुआ विजयदान देथा साहित्य उत्सव
कहानी विचारों में उपजती है, शब्दों के रूप में होती है साकार
समापन सत्र में मुख्य अतिथि डॉ. जितेन्द्र कुमार सोनी ने कहा कि राजस्थानी भाषा को बढ़ावा देने के लिए हम सभी को अपना योगदान निभाना होगा।
जयपुर। राजस्थान के मूर्धन्य साहित्यकारों को समर्पित सत्रों में मायड़ भाषा पर चर्चा, लोक सांस्कृतिक प्रस्तुतियां और कवि सम्मेलन। जवाहर कला केन्द्र की ओर से आयोजित तीन दिवसीय विजयदान देथा साहित्य उत्सव में यह सभी गतिविधियां देखने को मिली। रविवार को उत्सव का समापन हुआ। उत्सव में 10 सत्रों में लगभग 50 साहित्यकारों ने राजस्थानी भाषा के इतिहास, महत्व, विजयदान देथा, रानी लक्ष्मी कुमारी चुंडावत, सीताराम लालस, नृसिंह राजपुरोहित, कन्हैया लाल सेठिया सरीखे साहित्यकारों के लेखन, साहित्य लेखन में महिलाओं के योगदान पर प्रकाश डाला।
राजस्थानी कहानियां सबसे पुरानी
प्रात:कालीन सभा में तुषार शर्मा व साथी कलाकारों ने गायन प्रस्तुति दी। नृसिंह राजपुरोहित सत्र में राजस्थानी भासा रो कथा संसार विषय पर दिनेश पांचाल ने कहा कि कहानी विचारों में उपजती है और शब्दों के रूप में साकार होती है। राजस्थान ऐसा प्रदेश है, जिससे विभिन्न राज्यों और अंतरराष्ट्रीय सीमा भी लगती है। यही कारण है कि राजस्थानी में भाषागत प्रभाव देखने को मिलता है। विजयदान देथा ने राजस्थानी लोक कथाओं को एक जाजम पर लाकर राजस्थानी कहानी लेखन का बीजारोपण किया। ओम पुरोहित कागद सत्र में राजस्थानी री नूंवी कविता विषय पर चर्चा में मदन गोपाल लढ़ा ने कहा कि कविताओं पर समय चक्र का प्रभाव देखने को मिलता है। घनश्याम नाथ कच्छावा ने कहा कि लोगों को जोड़ने के लिए कविताएं लिखी जाती है। रवि पुरोहित ने कहा कि आधुनिक दौर में व्यस्तता का हवाला देते हुए लोग साहित्य से किनारा बनाते हैं, लेकिन कविताएं या साहित्यिक रचनाएं स्वयं से साक्षात्कार करवाती हैं और सुकून देती है।
भाषा करती है जोड़ने का काम
राजस्थानी देस दिसावर विषय पर दिनेश जांगिड़ ने कहा कि भाषा के साथ ही संस्कृति आगे बढ़ती है। कहीं भी रहे यदि राजस्थानी बोलने वाला व्यक्ति हमें मिलता है तो अलग जुड़ाव महसूस होता है और प्रदेश की यादें ताजा हो जाती है। गौरी शंकर ने हर क्षेत्र में राजस्थानी भाषा के रचनाओं को संग्रहित कर लाइब्रेरी बनाने पर जोर दिया। मृदुला कोठारी ने कन्हैया लाल सेठिया के लेखन और महिला लेखन पर प्रकाश डाला। समापन सत्र में मुख्य अतिथि डॉ. जितेन्द्र कुमार सोनी ने कहा कि राजस्थानी भाषा को बढ़ावा देने के लिए हम सभी को अपना योगदान निभाना होगा। ओंकार सिंह लखावत व वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र बारहठ ने राजस्थानी के महत्व पर प्रकाश डाला।
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