आपणो सिद्धी विनायक अब एसी वाले बप्पा के नाम से प्रसिद्ध
पेड़ पर बंधी है आस्था की डोर रूपी मनोकामना
देश-विदेश के श्रद्धालु भी ऑनलाइन करते हैं दर्शन।
कोटा। जब भावना सच्ची हो, तो पेड़ भी देवता बन जाते हैं, और तकनीक भी पूजा का हिस्सा हो सकती है। आपणो सिद्धी विनायक गणेश मंदिर वर्तमान में एसी वाले बप्पा के रूप में कोटा शहर की धार्मिक पहचान बन चुके है। क्षेत्र के दादाबाड़ी क्षेत्र में स्थित लाल बाग आपणो सिद्धी विनायक गणेश मंदिर को अब एसी वाले बप्पा के रूप में लोग पहचानते है। इस मंदिर में प्राचीनकाल से धोकड़ा के पेड़ पर आपणों सिद्धी विनायक प्रतिमा अपने आप प्रकट हुई थी। लेकिन इसका ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। प्राचीनकाल में श्रद्धालुओं ने इस धोकड़ा पेड़ पर अपनी मनोकामना के लिए पर्ची बांधते थे। पूरी होने पर श्रद्धालु अपनी इच्छा भेंट चढ़ा जाते थे। अब वर्तमान में मंदिर का स्वरूप विस्तृत होने के साथ डिजिटल युग के चलते अब देश-विदेश में भी इसको एसी वाले बप्पा के रूप में पहचानने लग गए है। तथा विदेश से भी अब ऑनलाइन दर्शन करते हैं।
ट्रस्ट से संचालित होता हैं मंदिर
मुख्य पुजारी कमलकांत गौतम ने बताया कि यह मंदिर ट्रस्ट श्रीकृष्ण मुरारी गौशाला एसोसिएशन सोसायटी, कोटा की ओर से संचालित होता है। मंदिर में आयोजित होने वाले विशेष कार्यक्रमों में अध्यक्ष सतीश गोपालानी, सचिव व मंदिर प्रभारी श्याम स्वरूप रोहिड़ा, संयोजक विजय नेभनानी, सह-संयोजक शंकर अरोड़ा, संरक्षक अर्जुन जयसिंघानी व संरक्षक लधाराम ग्वालानी ने प्रमुख भूमिका निभा रहे है।
मन्नतों का धोकड़ा पेड़, जहां बांधी जाती है पर्चियां
मंदिर परिसर में आज भी धोकड़ा का पेड़ सुरक्षित है,जिन पर हरी पत्तियां लगी हुई है। जिस पर प्रतिमा प्रकट हुई थी। वहां पर श्रद्धालु अपनी एक पर्ची पर लिखकर बांधते हैं। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। श्रद्धालुओं की जब मन्नत पूरी हो जाती है तब वापस आकर अपनी ईच्छानुसार भेंट भी चढ़ाते हैं। एसी वाले बप्पा मंदिर में कोटा समेत कई राज्यों के वीआइपी भी आपणो सिद्धी विनायक मंदिर में दर्शन लाभ लेने आते है। श्रद्धालुओं के अनुसार यहां हर मनोकामना पूरी होती है।
यूं बने एसी वाले बप्पा
दादाबाड़ी क्षेत्र में स्थित एक अनोखा मंदिर कोटा के अलावा अन्य राज्यों में भी भक्तों और पर्यटकों के बीच आस्था की कड़ी के रूप में जुड़ा हुआ है। ज्यों-ज्यों समय बदला तब-तब इसके विकास कार्य भी खूब करवाए गए। वर्तमान में लाखों श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र बन चुका है। कहा जाता है अत्यंत गर्मी पड़ने पर किसी भक्त मनोकामना पूरी होने उन्होंने आपणों सिद्धी विनायक मंदिर में एसी लगवा दिया। यहां आने वाले हर भक्त ठंडी हवा में शुकून से दर्शनलाभ लेते हैं। उस समय के बाद से सिद्धी विनायक गणेश अब एसी वाले बप्पा के रूप में प्रसिद्ध हो गए। आज भी यहां आने वाले भक्त यहां लगे पेड़ पर अपनी मनोकामना की पर्चिया बांध जाते है। श्रद्धालुओं के अनुसार आपणों सिद्धी विनायक मंदिर में दर्शन के साथ-साथ ठंडी हवा में भी बप्पा की कृपा बरसती है। धोकड़ा पेड़ की पत्तियां आज भी हरी भरी है।
धोकड़ा के पेड़ से प्रकट हुए बप्पा
पुजारी ने बताया कि यह गणेश जी की प्रतिमा किसी मूर्तिकार ने नहीं बनाई, बल्कि वह एक पुराने धोकड़ा के पेड़ पर अपने आप उभरी। वर्षों पहले इस छाल पर भगवान गणेश की आकृति नजर आई थी, इसको देखकर स्थानीय लोगों ने विधि-विधान पूजा-अर्चना कर यहीं मंदिर का निर्माण करवाया। प्राचीनकाल से लेकर आज तक लाखों श्रदलु दर्शन करते आते हैं। उन्होंने बताया कि यह आपणो सिद्धी विनायक गणेश मंदिर 100 वर्षों से भी अधिक पुराना है, इस मंदिर को अब वर्तमान में एसी वाले गणेश मंदिर के नाम से जाने जाते है।
ये होंगे कार्यक्रम
- 31 को रक्तदान शिविर प्रात: 11 बजे से
- 31 को आम भंडारा, सायं 5 बजे से
- 1 सितंबर को शाम को संदरकांड पाठ
- 3 सितंबर रात्रि 9.30 बजे महाआरती
- 4 सितंबर को रात्रि 9.30 बजे छप्पन भोग का आयोजन
- 5 सितंबर को दोपहर 2 बजे शोभायात्रा
- 6 सितंबर को शाम 8 बजे आरती व प्रसाद वितरण
- 6 सितंबर को रात्रि 9 बजे विसर्जन कार्यक्रम
मुंबई के सिद्धी विनायक की तरह ही होती है पूजा
मंदिर के मुख्य पुजारी कमलकांत गौतम ने बताया कि आपणो सिद्धी विनायक मंदिर में गणेश चतुर्थी से लेकर दस दिन तक विधिवत पूजा-अर्चना के साथ विभिन्न कार्यक्रम आयोजित हो रहे है। आपणो सिद्धी विनायक की सूंड दायीं तरफ है। यहां मुंबई के लाल बाग के राजा सिद्धी विनायक की तर्ज पर ही यहां कार्यक्रम आयोजित होते है। उन्होंने बताया कि प्राचीन काल में धोकड़ा पेड़ के पास छतरी में इनकी पूजा-अर्चना होती थी। धोकड़ा पेड़ की हरी पत्तियां शमी के पेड़ की तरह ही है। उन्होंने बताया कि मंदिर में बुधवार के अलावा भी विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। यहां खाटूश्याम का जागरण, सुंदरकांड पाठ समेत कई धार्मिक कार्यक्रम श्रद्धालुओं की ओर से आयोजित किए जाते है। 31 अगस्त को भंडारे का आयोजन भी किया जाएगा।

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