आजादी को तरसे शावक, 9 माह से पिंजरे में काट रहे जीवन
अनावश्यक देरी से प्रभावित हो सकती है रिवाइल्डिंग प्रक्रिया
रिवाइल्डिंग के नाम पर बायोलॉजिकल पार्क में शावकों को एक कमरेनुमा पिंजरा व इसी साइज की कराल में रखा जा रहा है।
कोटा। अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में पल रहे बाघिन टी-114 के दोनों शावक 11 माह के हो चुके हैं। लेकिन, इन्हें अभी तक भी दरा अभयारण्य के 28 हैक्टेयर के एनक्लोजर में शिफ्ट नहीं किया गया। जिससे शावकों की रिवाइल्डिंग पर प्रश्नचिन्ह खड़े हो गए। वहीं, वन्यजीव प्रेमी शावकों के चिड़ियाघर के जानवर बनकर न रह जाने को लेकर आशंकित हैं। जबकि, गत माह एनटीसीए द्वारा गठित कमेटी दोनों शावकों को दरा एनक्लोजर में शिफ्टिंग पर सहमति जता चुकी है और चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन को जुलाई माह में प्रस्ताव भी भिजवाए दिए, इसके बावजूद स्वीकृति नहीं मिलने से इन शावकों के भविष्य पर सवाल खड़े हो गए।
दो बार प्रस्ताव भेजे, फिर भी निर्णय नहीं
शावकों की मॉनिटरिंग के लिए एनटीसीए द्वारा गठित कमेटी की 13 जुलाई को अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में बैठक हुई थी। जिसमें कमेटी सदस्यों ने स्वीकार किया था कि दोनों शावक बड़े हो चुके हैं और वजन भी तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में बायोलॉजिकल पार्क का पिंजरा व कराल छोटी पड़ रही है, उनके चलने फिरने के लिए जगह की तंगी बनी हुई है। ऐसे में कमेटी ने सर्वसहमति से शावकों को दरा के 28 हैक्टेयर के एनक्लोजर में शिफ्ट किए जाने का निर्णय किया था। जिसके प्रस्ताव चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन अरविंदम तोमर को भेजे लेकिन तवज्जों नहीं दी गई। इसके बाद 25 अगस्त को हुई बैठक में फिर से शिफ्टिंग प्रस्ताव का रिमाइंडर भेजा। इसके बावजूद इस संबंधित कोई निर्णय नहीं हुआ।
न शिकार के बचने और न शिकारी के दौड़ने की जगह
वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, रिवाइल्डिंग के नाम पर बायोलॉजिकल पार्क में शावकों को एक कमरेनुमा पिंजरा व इसी साइज की कराल में रखा जा रहा है। जिनके सामने 13 से 15 किलो का बकरा (लाइव शिकार) खुला छोड़ देते हैं। ऐसे में शिकार को खुद की जान बचाने के लिए न तो दौड़ने की जगह मिल पाती है और न ही शिकार के पीछे भागने के लिए शावकों को मेहनत करनी पड़ती है। वहीं, घात लगाकर शिकार करने के लिए उन्हें छिपने की जगह मिलती है। जबकि, जंगल में भोजन के लिए हर दिन संघर्ष से गुजरना होता है। ऐसी स्थिति में वे न तो शिकार की कला सीख पा रहे और नहीं जंगल की चुनौतियों से रूबरू हो रहे।
...तो चिड़ियाघर के जानवर बनकर रह जाएंगे शावक
बाघिन टी-114 की मौत के बाद रणथम्भौर से दोनों शावकों को गत 1 फरवरी को अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में शिफ्ट किया गया था। उस समय इनकी उम्र करीब दो से ढाई माह की थी। तब उच्चाधिकारियों ने इन्हें 6 माह रिवाइल्ड कर मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के दरा एनक्लोजर में छोड़ने का हवाला दिया गया था। लेकिन, निर्धारित अवधी बीतने के बाद दो माह का समय और बढ़ाकर बायोलॉजिकल पार्क में रखे जाने के आदेश हुए, वह समय भी बीत गया। इसके बावजूद इनकी शिफ्टिंग पर निर्णय नहीं हुआ। वन्यजीव प्रेमियों ने आशंका जताई है कि शिफ्टिंग में देरी से दोनों शावक चिड़ियाघर के जानवर बनकर रह जाएंगे।
मेल शावक 80 तो फिमेल शावक का वजन 60 किलो
अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क से मिली जानकारी के अनुसार दोनों शावकों का तेजी से वजन बढ़ रहा है। मेल शावक का करीब 80 तो फिमेल शावक का वजन 60 किलो के लगभग हो चुका है। वहीं, 11 महीने से ज्यादा की उम्र हो चुकी है। जबकि, उन्हें 25 गुणा 25 साइज के कमरे और कराल में रखा जा रहा है। ऐसे में उनके चलने फिरने के लिए जगल की तंगी बनी हुई है। जिससे उनके लोको मोटर सिस्टम प्रभावित होने की आशंका बनी रहती है।
क्या कहते हैं वन्यजीव प्रेमी
शावकों को दरा एनक्लोजर में शिफ्ट किए जाने का यह सही समय है। शिफ्टिंग में देरी से रिवाइल्डिंग का उद्देश्य पूर्ण नहीं हो सकेगा। इन्हें सप्ताह में एक दिन मंगलवार को ही टाइगर के एनक्लोजर में छोड़ते हैं, जो पर्याप्त नहीं है। जबकि, इस उम्र के शावक जंगल में प्रतिदिन 15 से 20 किमी मूवमेंट करते हैं। वन विभाग को इस संबंध में जल्द निर्णय करना चाहिए।
- एएच जैदी, नेचर प्रमोटर
लंबे समय तक चिड़ियाघर में रहने से शावकों की प्रवृति प्रभावित होगी। वर्तमान में पिंजरे में ही उन्हें शिकार दिया जाता है, जिसे किल करने के लिए उन्हें मेहनत नहीं करनी पड़ती। ऐसे में वे आराम करने के आदी हो जाएंगे। जबकि, यह व्यवस्था जंगल की परिस्थिति से बिलकुट उलट है। ऐसे में देरी से उन्हें जंगल में अपने शिकार व संभावित खतरों को पहचानने में दिक्कत होगी।
- देवव्रत सिंह हाड़ा, संस्थापक, पगमार्क फाउंडेशन
अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में गत माह कमेटी की बैठक हुई थी। जिसमें कमेटी सदस्यों ने शावकों को दरा वनक्षेत्र के 28 हैक्टेयर के एनक्लोजर में छोड़े जाने पर सहमति जताई। इस संबंध में उच्चाधिकारियों को प्रस्ताव भी भेजे गए हैं, वहां से जो भी निर्णय होगा उसके अनुरूप कार्य करेंगे।
- सुनील गुप्ता, उप वन संरक्षक, वन्यजीव विभाग कोटा

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