केंद्र पर आना है तो बच्चों को बोतल घर से लाना होगा
आंगनबाड़ी केंद्रों पर सुविधा का नाम जीरो, भवन का किराया भी नाम मात्र का
आंगनबाड़ी केंद्र पर बैठने के लिए कुर्सियां भी पर्याप्त मात्रा में नहीं होने पर टीकाकरण के दिन आने वाले अभिभावको को बैठने में भी परेशानी का सामना करना पड़ता हैं।
कोटा। महिला बाल विकास विभाग द्वारा संचालित शहर के विभिन्न वार्डों में चलने वाले आंगनबाड़ी केंद्रों के पास ना तो अपने भवन और ना ही उनके पास सरकार ने किसी प्रकार की सुविधा केंद्र पर विकसित कर रखी हैं। केंद्र पर आने वाले बच्चे घर से ही पीने के पानी की बोतल लेकर आते हैं। वहीं अधिकतर केंद्र जर्जर हैं। जिससे बच्चों के साथ कभी भी हादसा हो सकता हैं। घोड़े वाले बाबा चौराहे बस्ती में स्थित आंगनबाड़ी केंद्र द्वितीय में कार्यरत कार्यकर्ता माया नायक ने बताया कि केंद्र में वर्तमान में कुल 55 बच्चे नांमाकित है। जिनसे तीन से छह वर्ष तक के 20 बच्चे व जीरों से लेकर तीन वर्ष तक के 35 बच्चे हैं। आंगनबाड़ी केंद्र एक किराये एक कमरे में चली रहे हैं। बच्चें पीने के लिए पानी की बोतल भी घर से साथ लेकर आते हैं। आंगनबाड़ी केंद्र पर बैठने के लिए कुर्सियां भी पर्याप्त मात्रा में नहीं होने पर टीकाकरण के दिन आने वाले अभिभावको को बैठने में भी परेशानी का सामना करना पड़ता हैं। साथ ही जब कभी भी केंद्र की लाइट जाती है अंधेरा हो जाता है। बच्चों को अंधेरे में ही बैठा का पढ़ाई करनी पढ़ती है।
आंगनबाड़ी केंद्र किराए के एक कमरें में संचालित
शहर की अधिकतर आंगनबाड़ी किराये के घरों में मात्र एक या दो कमरों में संचालित होती हंै। जिसमें बच्चों को दिया जाने वाला खाना बनता हैं। और इसी कमरे में बच्चों को बैठकर पोषाहर खाना पड़ता व पोषाहर वितरण भी उसी में करना पड़ता हंै।
केंद्र के भवन जर्जर स्थिति में
केंद्रों के भवन अधिकतर जर्जर व पुराने है जिससे बारिश के समय पर पानी टपकता हैं। और कमरों में सीलन आ रही हैं। साथ ही बारिश में कई बार केंद्र का रिकार्ड व पोषाहार भी बारिश में भीग जाता हैं। केंद्र की छातों से प्लास्टिक गिरता रहता हैं। बच्चों को बैठने में भी परेशानी आती है। साथ ही केंद्रों के भवनों में दरारें व सीलन आ रही है।
बच्चों के खिलौने के नाम पर कुछ नहीं
चाहे राज्य सरकार आंगनबाड़ी केंद्र पर खेल सुविधा के नाम पर कितनी वाहीं - वाही लूटे पर आंगनबाड़ी केंद्रों खेलने के लिए जगह ही उपलब्ध नहीं हैं। वहीं खिलौने के नाम पर ना तो किचन सेट, रिंग, लेसिंग फे्रम, रंगीन मोम, पेंसिल, बड़ी गेंद, रस्सी, सब्जी फल, जानवरों के चित्र, राउंड टेबल, फिसलन पट्टी, सहित विभिन्न खिलौने होने चाहिए पर अधिकतर आंगनबाड़ी केंद्र मेें कुछ भी नहीं है। बच्चों को बैठने के लिए टेबल -कुर्सी की भी व्यवस्था नहीं है।
बच्चों को पढ़ाने के लिए ब्लैकबोर्ड की व्यवस्था नहीं
केंद्र की दिवारों पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने बच्चों को पढ़ने के लिए पहाड़ व गिनती लिख रखी है। साथ ही केंद्र पर केंद्र पर बच्चों को पढ़ने के लिए विभिन्न चार्ट होने चाहिए जो कि नहीं हैं। दुर्गा बस्ती आंगनबाड़ी केंद्र द्वितीय में चलने वाले आंगनबाड़ी केंद्र में कुल 28 बच्चें है जिसमें अभी एक से तीन वर्ष के 17 व तीन से छह वर्ष के 11 बजे नामांकित है किराये के एक कमरें चलता है। पिछले दिनों बारिश से उसमें रखी किताबें व स्टेशनरी भीग गई है। कार्यकर्ता सायरा मंसूरी ने बताया कि हम एक ही रूम में पोषाहर, बच्चों की पढ़ाई, खेल खेलना, टीकाकरण सहित सभी कार्य एक ही कमरें में करना पड़ता है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने बताया कि केंद्र पर जो सरकारी स्कूल में जो आंगनबाड़ी संचालित की जाती है उनको जो फर्नीचर, खेल के सामान, सुव्यवस्थित रूम सहित अन्य जो सुविधा दी जाती है वहां अन्य केंद्र को भी दी जानी चाहिए।
इनका कहना
जो आंगनबाड़ी केंद्र किरायें के भवन में चले रहे उनके लिए सरकारी भवन देख रहे हैं। जो केंद्र जर्जर हैं उनको अन्य जगह पर शिफ्ट कर दिया जायेंगा।
- सीता शर्मा, उपनिदेशक बाल विकास विभाग कोटा
वर्तमान में एक हजार रूपए जो किराया दिया जाता है उसको बढ़ाकर करीब तीन या चार हजार रूपए किए। साथ ही आंगनबाड़ी केंद्र पर सुविधाओं का विस्तार किया जाएं।
- शाहिदा खान, राज. आंगनबाड़ी महिला कर्मचारी महासंघ

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