वुशूू में हर पंच ताकतवर हो तभी प्रतिद्वंदी परास्त होता है

लड़कों के साथ वुशू और बॉक्सिंग की पै्रक्टिस करती हैं दिव्यांशी

वुशूू में हर पंच ताकतवर हो तभी प्रतिद्वंदी परास्त होता है

50 किलो के टायर से फिजिकल प्रैक्टिस, रोज 8 किलोमीटर दौड़ और 500 सपाट।

कोटा। सफलता कभी उम्र की मोहताज नहीं होती, अगर मेहनत और इरादे बड़े हों तो किस्मत भी झुका करती है। ये बात शायद पुलिस लाइन निवासी दिव्यांशी सुंडा के लिए लिखी गई हैं। जो महज 17 साल की उम्र में अंतराष्ट्रीय स्तर पर कोटा को मेडल दिलाने वाली एक मात्र लड़की हैं। दिव्यांशी इतनी छोटी उम्र में रोज छह घंटे से ज्यादा प्रैक्टिस करती हैं ओर वो भी पढ़ाई के साथ साथ। कभी स्वीमिंग करने वाली दिव्यांशी आज बॉक्सिंग और वुशू की कई प्रतियोगिताओं में 10 से ज्यादा पदक अपने नाम कर चुकी हैं। 

ताइक्वांडो से वुशू तक सफर नहीं था आसान
दिव्यांशी ने बताया कि ताइक्वांडो से वुशू तक का सफर इतना आसन नहीं था। इसके पीछे कड़ी मेहतन और कई उतार चढ़ाव के दौर से गुजरना पड़ा। मैनें अपने करियर की शुरुआत स्वीमिंग सीखने से की थी। वहीं साथ में सेफ डिफेंस के लिए ताइक्वांडो भी सीखना शुरू किया जिसे बाद ताइक्वांडो में ही करियर बनाने का मन बनाया।  लेकिन 2017 में ताइक्वांडो की दो एसोसिएशन होने से मैने वुशू में तैयारी करना शुरू कर दिया था। जहां लगातार प्रैक्टिस के दम पर एक साल बाद ही राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में पहला पदक अपने नाम कर लिया। इसके बाद मैने  पीछे मुड़कर नहीं देखा और इसी साल 30 सितंबर को वुशू की अंतराष्ट्रीय जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में पहला कांस्य पदक अपने नाम किया। ऐसा करने वाली में  पहली लड़की हूं। वुशू के साथ साथ बॉक्सिंग में दो दो हाथ कर लेती हूं। बॉक्सिंग मैने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीत है।

अपने को बेहतर बनाने के लिए लड़कों के साथ करती हूं अभ्यास
बॉक्सिग हो या वुशू यहां जिसका जिनता दमदार पंच होगा विजेता वहीं बनेगा। इसके लिए दमदार की अभ्यास की आवश्यकता होती है।इसके लिए मैं रोज लडको के साथ अभ्यास करती हूं ताकि मेरा हर पंच भारी बने। लडको के साथ खेलने से एक कौशलता बढ़ती है। साथ पंच सहन करने की क्षमता भी बढ़ती है। रोज 2 घंटे की प्रैक्टिस लडकों के साथ करती हूंं। मैने राष्ट्रीय स्तर पर वुशू प्रतियोगिताओं में 8 गोल्ड मेडल, बॉक्सिंग प्रतियोगिताओं में 3 सिल्वर और वर्ल्ड चैंपियनशिप में एक ब्रांज मेडल जीत चुकी हूं।

हर दिन हाड़ तोड़ मेहनत से ही आ सके पदक 
वुशू और बॉक्सिंग के  बीच सामजस्य बिठाने के लिए कड़ी मेहनत और एकाग्रता की आश्यकता होती है। रोजाना छह घंटे हाड़ तोड़  प्रैक्टिस करनी पड़ती है तब जाकर पदक का सफर तय हो पता है।  4 घंटे तो केवल फिजिकल वर्कआउट करने में ही निकल जाते है। इसके साथ कई और गतिविधियां भी दिनचर्या में शामिल है जिसमें दौड़ से लेकर लड़कों के साथ प्रैक्टिस करना रोज एक चेलेंज होता है। हर दिन 500 सपाट, 200 पुल अप और रोज 8 किलोमीटर की दौड़ना पड़ता है। शारीरिक क्षमता बढ़ाने के लिए 50-50 किलो के टायरों से अभ्यास करना जरूरी है तभी पंच में ताकत आती है। 50 किलो  टायर उठाना अब मेरे लिए पांच किलो का वजन उठाने जैसा है। स्कूल और प्रैक्टिस के बीच तालमेल बिठाना टेढी खीर है लेकिन माता पिता द्वारा रोज हौसला बढ़ाने से यह सब आसान हो जाता है। सुबह स्कूल जाने से पहले 3 घंटा और शाम को करीब 4 घंटा अभ्यास करती हूं।  महज 17 साल की उम्र में बड़े- बड़े  सूरमाओं के बराबर खड़ा रहने की ताकत मुझे मेहनत और अपनी आत्म शक्ति से मिलती है। दूसरे देश में जाकर देश के लिए मेडल लाने के लिए अनवरत अभ्यास की आश्यकता होती है। इसके लिए कोच अशोक गौतम का पूरा सहयोग मिलता है। 

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