नवज्योति तत्काल : बसों में नहीं मिले आग से बचने के इंतजाम, कोटा में स्लीपर बसों में न फायर सेफ्टी न फर्स्ट एड बॉक्स मिले
स्लीपर बसों में इमरजेंसी गेट बंद कर लगवाई अतिरिक्त सीटें
ड्राइवर बोला-दराज में रखे, रिपोर्टर ने दिखाने को कहा तो मना किया, नवज्योति की पड़ताल में खुली पोल।
कोटा। जैसलमेर-जोधपुर हाईवे पर स्लीपर बस अग्निकांड के बाद एक बार फिर बस यात्रियों की सुरक्षा पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। दर्दनाक भीषण घटना ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया है। दैनिक नवज्योति ने जब कोटा में स्लीपर बसों की हकीकत जानी तो हालात भयावह मिले। अधिकांश बसों में न तो आग बुझाने के पर्याप्त इंतजाम मिले और न ही यात्रियों की सुरक्षा से जुड़ी बुनियादी सुविधाएं। इसके बावजूद इन बसों का सड़कों पर आना परिवहन विभाग की कार्यप्रणाली को सवालों के घेरे में लाती है। हालात यह हैं, कोटा से बाहर जाने वाली व बाहर से शहर में आने वाली बसों की जांच तक नहीं की जाती। दैनिक नवज्योति ने मंगलवार को शहर के प्रमुख मार्गों पर खड़ी स्लीपर बसों की जांच की तो यात्रियों की जान भगवान भरोसे ही मिली।
बसों का इंटीरियर चकाचक, सुरक्षा इंतजाम नदारद
नवज्योति टीम दोपहर को नयापुरा चौराहे पर पहुंची। यहां यात्रियों से भरी बस मध्यप्रदेश जाने के लिए खड़ी थी। बस का इंटीयर चकाचक था लेकिन आग बुझाने के यंत्र नहीं थे। ड्राइवर से पूछा तो उसने बताया कि अंदर एक दराज में रखे हुए हैं, इस पर दिखाने को कहा तो मना कर दिया। जबकि, परिवहन अधिकारियों का कहना है कि फायर इंस्टीब्यूशनर बस में ऐसी जगह लगा होता है, जहां लोगों को आसानी से नजर आ सके। लेकिन हालात इसके ठीक विपरीत मिले।
स्मोक अलार्म, ड्राउजीनेस अलर्ट सिस्टम व मेडिकल किट तक नहीं
नयापुरा, सीवी गार्डन चौराहे पर खड़ी स्लीपर बसों में आगजनी की घटनाओं से बचने के लिए बुनियादी सुविधाएं भी नदारद मिली। यहां कई बसों में फायर इंस्टीब्यूशनर, स्मोक अलार्म, फस्ट एड बॉक्स, ड्राउजीनेस अलर्ट सिस्टम तक नहीं मिले। ड्राइवर-कंडेक्टर से पूछा तो संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। जबकि, बस मालिक यात्रियों से किराया पूरा वसूलते हैं।
इमरजेंसी गेट बंद कर बढ़ाई अतिरिक्त सीटें
नवज्योति ने बस में ड्राइवर से इमरजेंसी गेट के बारे में पूछा तो उन्होंने पीछे की ओर होना बताया। लेकिन, उस गेट को बंद करवाकर अतिरिक्त सीटें लगवा दी गई। वहीं, दोनों तरफ सीटें होने से बस की गैलरी सकड़ी रहती है। ऐसे में आगजनी की घटना होने पर यात्रियों को तुरंत बाहर निकलने का कोई उपाए नहीं है। मजबूरन खिड़कियों से कूदने का ही विकल्प रहता है, जो जानलेवा होता है।
ड्राउजीनेस अलर्ट सिस्टम भी नहीं
एक्सपर्ट बताते हैं, बस मालिक ड्राउजीनेस अलर्ट सिस्टम की उपयोगिता नहीं समझते। जबकि, यह सिस्टम नींद आने पर ड्राइवर को अलर्ट करता है। यह स्टीयरिंग के विभिन्न हिस्सों में लगे सेंसर और डैशबोर्ड पर कैमरे का उपयोग करता है। चालक के नींद या झपकी में आने का पता स्टीयरिंग पैटर्न, लेन में वाहन की स्थिति, चालक की आंखों, चेहरे और पैर की गति की निगरानी से लगाया जाता है। नींद आने की स्थिति में सिस्टम बीप की तेज आवाज सो रहे ड्राइवरों को सचेत करता है।
कोटा में करीब 80 से ज्यादा स्लीपर बसें रजिस्टड
आरटीओ से मिली जानकारी के अनुसार कोटा में लगभग 80 से ज्यादा बसें रजिस्टर्ड हैं। जिनसे परिवहन विभाग प्रति सीट के हिसाब से टैक्स वसूलता है। लेकिन, खुद चौराहों पर इन बसों की फिटनेस नहीं जांचता। हालांकि, परिवहन कार्यालय में आने वाली गाड़ियों की जरूर जांच की जाती है।
इंटीयर डेकोरेटेड के लिए अत्यधिक वायरिंग सर्किट
नाम न छापने की शर्त पर बसों की बॉडी बनाने वाले बॉडी बिल्डर ने बताया कि कम्पनी से 11 व 12 मीटर लंबी बस, चेचीस के रूप में आती है। बस मालिक एक फीट लंबाई अधिक बढ़वाते हैं, साथ ही लगेज के लिए दो डिग्गी पैनल बनवाते हैं। जिससे बस की उंचाई निर्धारित 9 फीट से 12 फीट तक पहुंच जाती है। इसके अलावा इंटिरियर डेकोरेशन के नाम पर अत्यधिक वायरिंग, सर्किट लगाए जाते हैं। जिसकी वजह से अधिकतर हादसे शोर्ट सर्किट से होते हैं।
स्लीपर बसों के जानलेवा बनने की ये बड़ी वजह जगह की तंगी, हिलना-डुलना भी मुश्किल
स्लीपर बसें यात्रियों को सोने की सुविधा तो देती है लेकिन आने-जाने के लिए जगह बहुत कम होती है। जिससे लोगों का हिलना डुलना भी मुश्किल होता है। ऐसे में यदि कोई हादसा हो जाए तो लोग वहीं फंस कर रह जाते हैं और बाहर नहीं निकल पाते। देशभर में कई घटनाएं हो चुकी हैं।
बसों की ऊंचाई का अधिक होना
स्लीपर बसें आमतौर पर 8 से 9 फीट ऊंची होती हैं। लेकिन, बस मालिक लगेज के लिए दो डिग्गी पैनल बनवाते हैं, जिससे बसों की उंचाई 10 से 12 फीट हो जाती है। ड्राइवर सीट की तरफ डबल स्लीपर कोच होने से यात्री भार अधिक बढ़ता है। हाइवे पर घुमाव के दौरान बस अचानक एक तरफ झुक जाने से पलट जाती है।
ड्राइवर की ओवर वर्किंग
ट्रांसपोर्ट व्यवसाय से जुड़े लोगों का कहना है, अधिकांश स्लीपर बसें 1000 किमी तक का सफर रात में ही तय करती हैं। मालिक पैसे बचाने के लिए एक ही ड्राइवर रखते हैं। जिनके थकने व झपकी आने के कारण बस अनियंत्रित होने से हादसे होते हैं। गत 14 फरवरी 2025 को अहमदाबाद से मध्यप्रदेश जा रही स्लीपर बस नेशनल हाइवे-27 पर पलट गई थी। वहीं गत 14 फरवरी को दिल्ली-मुंबई-8लेन पर खड़े ट्रक से स्लीपर बस टकरा गई थी।
इनका कहना है
परिवहन विभाग द्वारा लगातार बसों की फिटनेस व सुरक्षा उपकरणों की जांच करती है। हर बस में आग बुझाने के यंत्र, प्राथमिक उपचार के लिए फस्टएड बॉक्स सहित बुनियादी सुविधाएं होना अनिवार्य है। इसके बिना वाहन मालिक को फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं दिया जाता। फायर इंस्टीब्यूशनर व फस्टएड बॉक्स नहीं होने पर जुर्माना किया जाता है। यदि, किसी बसों में यह जरूरी उपकरण नहीं तो जांच का दायरा बढ़ाकर उचित कार्रवाई करेंगे।
- मनीष शर्मा, जिला परिवहन अधिकारी कोटा

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