छोटे पक्षी ऊंची उड़ान, सात समुंदर पार से कोटा पहुंचे परिंदे
भोजन की तलाश में देश के कई राज्यों में पहुंचे प्रवासी पक्षी
इन दिनों कोटा सहित संभाग के चारों जिलों के तलाब किनारे रंग-बिरंगे परिंदों की परवाज फिंजा में इंद्रधनुष के रंग बिखेर रही है।
कोटा। मध्य एशिया व यूरोपियन देशों में बर्फबारी बढ़ने के साथ ही विदेशी परिंदों का हजारों मील का सफर तय कर कोटा पहुंचना शुरू हो गया है। यूरोप, सेंट्रल एशिया, साइबेरिया, चीन, उत्तरी अमेरिका और रूस सहित कई देशों की सरहदें पार कर बड़ी संख्या में परिंदे हाड़ौती की सरजमी पर डेरा डाल चुके हैं। एक दर्जन से अधिक वेटलैंड प्रवासी-अप्रवासी पक्षियों के कलरव चहकने लगा है। इन दिनों कोटा सहित संभाग के चारों जिलों के तलाब किनारे रंग-बिरंगे परिंदों की परवाज फिंजा में इंद्रधनुष के रंग बिखेर रही है। इनमें बार हैडेड गूज, नॉर्दन पिनटेल, नॉर्दन शावलर,कॉमन टील, रेड क्रेस्टेड, पेलिकंस व रुडी शेल डक शामिल हैं।
इन इलाकों में जमाया डेरा
नेचर प्रमोटर एएच जैदी का कहना है, हाड़ौती के विभिन्न इलाकों में स्थित वैटलैंड पर देसी विदेशी पक्षियों का कलरव गूंज रहा है। आलनिया, रानपुर, गिरधरपुरा, किशोर सागर, दरा, बोरबांस, बरधा बांध, अभेड़ा, बारां के अमलसरा में डेरा डाले हैं।
29 हजार फीट ऊंचाई पर उड़ती है बार हेड गूज
जैदी कहते हैं, बार हैडेड गूज जमीन से करीब 29 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ने की क्षमता रखती है। यह पानी व खेतों के आसपास नजर आती है। यह पहला अवसर है, जब बार हैडेड गूज का इतना बड़ा झुंड एक साथ हाड़ौती की सरहद पर आराम करने व भोजन की तलाश में उतरा है।
एक दिन में भरते हैं1600 किमी की उड़ान
यह पक्षी एक दिन में 1600 किमी की उड़ान भरने की क्षमता रखते हैं। सिर व गर्दन पर काले निशान के साथ इनका रंग पीला ग्रे होता है। सिर पर दो काली सलाखों के आधार पर सफेद पंख होते हैं। पैर मजबूत और नारंगी रंग के होते हैं। इनकी लंबाई 68 से 78 सेमी, पंखों का फैलाव 140 से 160 सेमी होता है।
रुडी शेल्डक की इंद्रधनुषी छटा मनमोहक
वन्यजीव प्रेमी जुनैद शेख कहते हैं, यूरोप, एशिया एवं अफ्रीका से हाड़ौती का रुख करने वाली रुडी शेल्डक की सतरंगी छटा पर्यटकों का मन मोह लेती है। स्थानीय लोग इस चिड़िया को सुरखाब और चकवा-चकवी के नाम से पुकारते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम टैडोरना फेरूजीनिया है।
व्हिसलिंग टील की भा रही सीटी सी आवाज
सर्दी के मौसम में इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैंड, वियतनाम और म्यांमार से चंबल का रुख करने वाली व्हिसलिंग टील की सीटी जैसी आवाज लोगों को मंत्र मुग्ध कर देती है। इसका स्थानीय नाम सिली (सिल्ही) है। वैज्ञानिक नाम डेंड्रोसाइग्ना जावनिका है। शिकार के दौरान इनकी जलक्रीड़ा पर्यटकों को रोमांचित कर देती है। इनकी चोंच और पैर स्लेटी नीले-भूरे रंग के होते हैं।
4 किलो मछली चोंच में रख लेता है पेलिकन
पक्षी विशेषज्ञ हर्षित शर्मा कहते हैं, पेलिकन बड़े पक्षी होते हैं। इनकी चोंच काफी लंबी होती है। इनका मुख्य भोजन मछलियां होती है। यह एक बार में अपनी चोंच में 3 से 4 किलो मछली रख लेता है। पानी में मछली का शिकार करने के दौरान इसका निशाना अचूक होता है। इन दिनों कोटा ही नहीं संभाग के कई वैटलैंड पर इनकी अठखेलियां देखी जा सकती है।
एक बार में 10 अंडे देती है नार्दन पिनटेल
शर्मा ने बताया कि प्रवासी पक्षियों का अक्टूबर से यहां आना शुरू हो जाता है,जो मार्च तक जारी रहता है। इनमें नार्दन पिनटेल डक 4 हजार से अधिक की ऊंचाई पर उड़ती है और एक बार में 10 से 12 अंडे देती है। यहां बार हैडेड गूज, नॉर्दन पिनटेल, नॉर्दन शावलर,कॉमन टील, कॉटन टील, तफ्टेड पोचर्ड, रेड क्रेस्टेड, वाइट आई पोचार्ड, स्पूनबिल रफ ब्लैक टेल सहित कई पक्षियों को हाड़ौती की आबोहवा रास आ रही है।

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