शहर नींद की आगोश में, वो जागते जंगलों में

जलकर्मी समाज के रियल हीरो, अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर 15 लाख लोगों का जीवन बचा रहे 300 जलवीर, कितनी चुनौतियों के बाद हमें मिलता है पानी, जानिए नवज्योति से

शहर नींद की आगोश में, वो जागते जंगलों में

जलदाय विभाग के कर्मचारी सुबह, दोपहर और रात तीन शिफटों में काम करते हैं। शहर के दोनों ही पम्प हाउस चंबल के जंगलों में बने हैं। जहां जहरीले जीव-जंतुओं की भरमार है।

कोटा। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक न जाने कितनी बार हम पानी का इस्तेमाल करते हैं। क्या पानी तक हमारी पहुंच इतनी आसान है कि नल खोलो और प्यास बुझा लो। यदि, आप भी यही सोच रहे हैं तो बिलकुल गलत हैं। चंबल से घर तक पानी की कहानी संघर्ष और जोखिम से भरी है। असल में, जब पूरा शहर रात को नींद की आगोश में रहता है तब 300 जलवीर अपनी जान दांव पर लगा जंगलों में जागते हैं। तब जाकर हमें पानी नसीब होता है। 15 लाख लोगों की दिनचर्या जलदाय विभाग के कर्मचारियों की कड़ी मेहनत से शुरू होती है।  

300 जलकर्मी की मेहनत से मिलता है 24 घंटे पानी
कोटा शहर की आबादी करीब 15 लाख है। जिन्हें 24 घंटे शुद्ध पानी उपलब्ध कराने के लिए अकेलगढ़ और मिनी अकेलगढ़ पम्प हाउस पर 300 कर्मचारी तैनात हैं, जो 8-8 घंटे की शिफट में शहर की जरूरत पूरी करने को दिन-रात डटे हैं। सर्दी-गर्मी हो या बरसात, घरों तक पानी पहुंचाने को तत्पर रहते हैं। यहां तीन स्टेशन बने हुए हैं, जिनमें चंबल की कराइयों में लगे पम्प हाउस, कंट्रोल रूम, फिल्टर प्लांट शामिल हैं। जहां पानी का सैंपल लेने, 24 घंटे मशीनों की रीडिंग, बिजली का वोल्टेज, पानी का प्रेशर, टेस्टिंग सहित अन्य कामों में विभाग की मैन पावर लगती है। इसके बाद ही घरों में पानी पहुंचता है। 

जंगल में रात डरावनी, खतरे में रहती जान 
जलदाय विभाग के कर्मचारी सुबह, दोपहर और रात तीन शिफटों में काम करते हैं। शहर के दोनों ही पम्प हाउस चंबल के जंगलों में बने हैं। जहां जहरीले जीव-जंतुओं की भरमार है। वहीं, हिंसक वन्यजीवों की मौजूदगी रहती है। अकेलगढ़ और मिनी अकेलगढ़ में रात बहुत ही डरावनी होती है। प्लांटों में लगी भारी-भरकम मशीनों व पानी की आवाज के बीच वन्यजीवों की वार्निंग कॉल से कलेजा कांप उठता है। जैसे जैसे अंधेरा गहरा होता है, वैसे ही जंगल खौफनाक हो जाता है। इसके बावजूद कर्मचारी हर घंटे प्लांट से कंट्रोल रूम रीडिंग, सैंपल देने 4 से 5 किमी का रास्ता तय करते हैं।

छुट्टी के दिन भी करते हैं काम 
सरकारी दफ्तरों में शनिवार व रविवार को अवकाश होता है लेकिन अकेलगढ़ फिल्टर प्लांट व पम्प हाउस में कर्मचारी तीनों शिफ्टों में काम करते हैं। यहां छोटे-बड़े मिलाकर कुल 35 पम्प हैं। जिनके माध्यम से अशुद्ध पानी को फिल्टर कर शुद्ध किया जाता है। इसके लिए ब्लिचिंग, एलम व क्लोरिन के साथ पानी की डोजिंग की जाती है। वहीं, अधिकारी भी दिन में तीन बार शहर की सप्लाई से जुड़े सेंट्रल वायर रिजर्व लाइनों व कंट्रोलरूम पर रिडिंग की मॉनिटरिंग करते हैं। 

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चंबल घड़ियाल सेंचुरी से जुड़ा अकेलगढ़
अकेलगढ़ पम्प हाउस का नीचला इलाका चम्बल घड़ियाल सेंचुरी से जुड़ा हुआ है। जबकि, इसी इलाके में तीन पम्प हाउस है। जहां 24 घंटे कर्मचारी ड्यूटी पर तैनात रहते हैं। जबकि, यहां भालू, पैंथर, अजगर, कोबरा सहित विभिन्न छोटे-बड़े जहरीले जीव जंतुओं की मौजूदगी रहती है। ऐसे में ड्यूटी के दौरान हादसे की संभावना बनी रहती है। तमाम खतरों के बावजूद शहरवासियों तक शुद्ध पानी पहुंचाने को वचनबद्ध है। 

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अकेलगढ़ में घूम रहे दो लेपर्ड  
अकेलगढ़ पम्प हाउस में पुराने एईएन आॅफिस के सामने जंगल में दो हफ्तों से दो लेपर्ड का मूवमेंट बना हुआ है। इनमें एक मादा है, जिसने तीन शावकों को जन्म दिया है। यहां कार्यरत कर्मचारियों को काम के दौरान कई बार लेपर्ड नजर आ चुका है। रात को 50 से 60 कर्मचारी ड्यूटी पर होते हैं। दोपहर की अपेक्षा रात को स्थिति भयावह हो जाती है। लेपर्ड का मूवमेंट रात को ही होता है। ऐसे में कर्मचारियों को रीडिंग के लिए कंट्रोल रूम से चंबल के किनारे बने वर्ल्ड बैंक, आरयूआईडीपी और ओल्ड पम्प हाउस तक जाना पड़ता है। ऐसे में वन्यजीव द्वारा हमले का डर बना रहता है। खतरा जानते हुए भी कर्मचारी अपना फर्ज निभा रहे हैं। 

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अकेलगढ़ व सकतपुरा फिल्टर प्लांट को मिलाकर करीब 300 कर्मचारी तैनात हैं, जो 24 घंटे शहरवासियों को शुद्ध पानी देने के लिए जुटे रहते हैं। अवकाश के दिन भी बिना शिकायत अपना फर्ज निभा रहे हैं। पानी की सप्लाई नियमित रूप से सुचारू रखना आसान काम नहीं है। शहरवासियों को जल का महत्व समझना चाहिए। घरों में नियमित पानी की सप्लाई कर्मचारियों की हाड़तोड़ मेहनत का नतीजा है। लोग पानी का मोल समझे और सद्ुपयोग करें। 
- भारत भूषण मिगलानी, एक्सईएन जलदाय विभाग    

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