तेज रफ्तार जिंदगी पर लगाम की जरूरत, सोशल मीाडिया और रील कल्चर हिला रहा दिमाग

संयुक्त परिवारों का विघटन समस्या का मूल कारक

तेज रफ्तार जिंदगी पर लगाम की जरूरत, सोशल मीाडिया और रील कल्चर हिला रहा दिमाग

बच्चों की नहीं पैरेन्ट्स की काउंसलिंग होनी चाहिए।

कोटा। दैनिक नवज्योति कार्यालय में होने वाली मासिक परिचर्चा की श्रंखला में बुधवार को मानसिक स्वास्थ्य सप्ताह के तहत मानसिक स्वास्थ्य (मॉडर्न लाइफ स्टाइल एन्ड मेन्टल इनस्टेबिलिटी) विषय पर परिचर्चा की गई। परिचर्चा में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों ने कहा कि यह मुद्दा भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक स्थितियों से जुड़ा मुद्दा है। तनाव, डिप्रेशन,  एंग्जाइटी,  नशा और अंत में पागलपन तक आदमी पहुंच जाता है।  संयुक्त परिवारों का विघटन ने इस समस्या को विस्तृत रूप दे दिया है। इसके साथ साथ आर्थिक असुरक्षा, प्रतिस्पर्धा, एकाकीपन, पारिवारिक तनाव, घरेलू हिंसा,और जागरुकता की कमी मुख्य कारण है। इसके साथ मॉर्डन लाइफ स्टाइल में सोशल मीडिया का रील कल्चर बड़ा कारण बन रहा है। अब बच्चा,किशोर, युवा बुजुर्ग सब एकाकीपन के शिकार होकर मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं। तेज रफ्तार जिंदगी ने सबकुछ उलट पुलट कर दिया है।   परिचर्चा में जहां सीनियर साइकेटिस्ट, न्यूरो, पीडियाट्रिक, फिजिशियन, न्यूट्रिशियन काउंसलर, डायटीशियन, रिसर्चर, आयुर्वेद, योगा,के साथ मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाले ब्रहम्माकुमारी संस्थान,आर्ट आॅफ लिविंग और रामलाल जी सिहाग के संस्थान से जुडे सदस्यों ने भी हिस्सा लिया।  प्रस्तुत हैं परिचर्चा के अंश... 

एकांत में बैठकर खुद को जानने से कम होगा तनाव
मानसिक बीमारियां व तनाव का कोई एक कारण नहीं है। परिवार के लोगों का बच्चों पर शुरुआत से ध्यान नहीं देना और उसका खान-पान सही नहीं होना। खेलने के लिए समय नहीं होने और पढ़ाई का बोझ और परिवार की बच्चों से बढ़ती अपेक्षाएं तनाव बढ़ाती है। जिससे मानसिक बीमारियां बढ़ती है। बच्चे अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर पाते हैं। जिससे गलत संगत में पढ़ने पर भी तनाव बढ़ता है। मैंटल हैल्थ पहले सरकार की प्राथमिकता में नहीं था। लेकिन अब इसे विश्व स्तर पर दिवस व सप्ताह के रूप में मानने से जागरूकता बढ़ी है। हालांकि इस तरह की बीमारियों की पहचान जितनी जल्दी हो सके उतना समय पर उपचार संभव है। वैसे एकांत में बैठकर खुद के बारे में जानने और कमियों को दूर करके भी मानसिक तनाव को कम किया जा सकता है।   
-डॉ. एम.एल. अग्रवाल सीनियर मेंटल हेल्थ काउंसलर , प्रेसिंडेंट होप सोसाइटी  

नींद क्वालिटी बिगड़ने से बढ़ रही मानसिक बीमारियां
एकल परिवार होने से जहां माता पिता के पास बच्चों के लिए समय ही नहीं है। समय मिलता भी है तो वे बच्चों को डांटने के सिवाय कुछ नहीं करते। उन्हें पुचकारने वाला परिवार को कोई बड़ा सदस्य नहीं है। ऐसे में बच्चे अपना अधिकतर समय टीवी या मोबाइल पर बिताने लगे है। जिससे अधिक समय स्क्रीन पर रहने से बच्चे हो या बड़े उनकी नींद क् वालिटी बिगड़ गई है। पर्याप्त नींद नहीं ले पाने से भी मानसिक तनाव व बीमारियां बढ़ रही है। 1990 के बाद इस तरह की बीमारियों के उपचार की बेहतर दवाएं उपलब्ध हैं लेकिन लोग भ्रम के कारण उनका सेवन नहीं कर पाते हैं। मानसिक तनाव व बीमारियों को कम करने के लिए परिवार को आपस में समय देना होगा।
-डॉ. विनोद कुमार दड़िया आचार्य एवं विभागाध्यक्ष मनोचिकित्सा मेडिकल कॉलेज 

अपेक्षा व उपेक्षा के कारण बढ़ रहा तनाव
वर्तमान में करीब 90 फीसदी लोग मानसिक तनाव व बीमारियों से ग्रसित है। सभी के  कारण अलग-अलग हो सकते हैं। मोबाइल  समय की जरूरत है। संयुक्त परिवार और कामकाजी तनाव जैसे सभी मुद्दे तो रहेंगे। उन पर नियंत्रण कैसे किया जिससे मानसिक स्वास्थ्य पर असर नहीं पड़े। लोग अपनी अपेक्षा बच्चों पर थोपते हैं। मैं कहता हूं कि बच्चों की नहीं पैरेन्ट्स की काउंसलिंग होनी चाहिए।  इस पर बात हो लेकिन परिवार का उस पर नियंत्रण रखना होगा। उम्र बढ़ने के साथ कई बार बीमारियां बढ़ती जाती है। घर में बुजुर्ग व बच्चों से सम्पर्क बनाए रखना होगा। ऐसा करने से सभी एक दूसरे की बातें व भावनाएं व्यक्त कर सकेंगे तो उनका तनाव कम होगा और बीमारियां भी नहीं होंगी।  अपेक्षा और उपेक्षा यह दो तनाव के बड़े कारण हैं।  इन दोनों से बचकर भी तनाव व बीमारियों को कम किया जा सकता है। 
-डॉ. एस.एन. गौतम, आचार्य एवं विभागाध्यक्ष न्यूरो सर्जरी विभाग मेडिकल कॉलेज कोटा 

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मानसिक स्वास्थ्य हमारे जीवन का आधार
मानसिक स्वास्थ्य हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है। यह केवल कार्य क्षमता का विषय नहीं, बल्कि जीवन को संतुलित और उपयोगी बनाने की प्रक्रिया है।  मानसिक बीमारी किसी कमजोरी का संकेत नहीं है। लगभग 50 प्रतिशत मानसिक बीमारियों की शुरूआत 15 वर्ष की उम्र तक हो जाती है, जबकि 75 प्रतिशत 24 वर्ष तक पहुँच जाती हैं। वास्तव में मानसिक विकास मां के गर्भ से ही प्रारंभ हो जाता है और किशोरावस्था इसका सबसे महत्वपूर्ण चरण होता है। मानसिक स्वास्थ्य की नींव घर से रखी जाती है। आज के दौर में एकल परिवारों के बढ़ने से बच्चों को दादा-दादी या नाना-नानी का भावनात्मक सहयोग नहीं मिल पाता, जिससे वे मानसिक रूप से कमजोर हो सकते हैं।  बच्चों का मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक और यौन स्वास्थ्य समान रूप से सशक्त होना आवश्यक है।
-डॉ. अविनाश बंसल, नवजात शिशु एवं किशोर स्वास्थ्य विभाग, भारत विकास परिषद चिकित्सालय, कोटा

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बच्चों से मित्रवत व्यवहार करना होगा
परिवार में माता पिता जो खुद नहीं कर सके वह अपने बच्चों से पूरी करवाना चाहते हैं। जिससे उन पर मानसिक दबाव बढ़ने से वे तनाव में रहने लगते है। बच्चे अपनी भावनाएÞं परिवार में शेयर नहीं कर पाते। उनकी इच्छाओं को दबा दिया जाता है। जिससे तनाव और तनाव से मानसिक बीमारियां बढ़ती है। बच्चों से परिजनों को मित्रवत व्यवहार करना होगा। जिससे वे अपनी बात उनसे खुलकर कह सके। पैसा नहीं बच्चे सबसे बड़ा धन हैं। जिसने इसे प्रमुखता दी वहां तनाव व मानसिक बीमारियों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। 
-डॉ. रोशनी मिश्रा, असिस्टेंट गवर्नर रोटरी क्लब कोटा राउंड टाउन 

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गर्भ संस्कार से श्रेष्ठ संतान का निर्माण होता है
चार हजार साल पहले भी हमारे ऋषि-मुनियों ने बताया था कि श्रेष्ठ संतान का निर्माण गर्भ के भीतर ही होता है। हर माता-पिता स्वस्थ और संस्कारी संतान की इच्छा रखते हैं। गर्भावस्था में मां का आहार-विहार, विचार और भावनाएं सीधे बच्चे पर असर डालते हैं। पांचवें माह में गर्भ में मन का निर्माण होता है और छठे माह में बुद्धि का विकास शुरू होता है। ऐसे में मां यदि नकारात्मक या हिंसक विचार रखती है, नशे या मारधाड़ जैसी प्रवृत्तियों में रहती है, तो उसका प्रभाव गर्भस्थ शिशु के मन पर पड़ता है। आचार्य चरक ने स्मृति नष्ट होने को प्रज्ञा अपराध कहा, जो सभी रोगों की जड़ है।  प्रकृति स्वयं सबसे बड़ी चिकित्सक है। त्योहार, आहार और परंपराएं हमारे स्वास्थ्य से जुड़ी हैं।
-डॉ. नित्यानंद शर्मा, प्राचार्य, आयुर्वेद योग नेचुरोपैथी महाविद्यालय, कोटा

बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए स्नेह जरूरी
आज के व्यस्त जीवन में माता-पिता दोनों के कार्यरत होने के कारण बच्चों का अकेलापन बढ़ता जा रहा है। बच्चों को माता-पिता से संवाद, स्नेह या ध्यान नहीं मिलता, तो वे वही अपनापन घर से बाहर तलाशने लगते हैं। संयुक्त परिवार की यही विशेषता रही है कि वहां बच्चों का न सिर्फ शारीरिक, बल्कि मानसिक विकास भी संतुलित रूप से होता है। परिवार के अन्य सदस्यों के बीच रहने से बच्चे को सामाजिक व्यवहार, अनुशासन और भावनात्मक सुरक्षा मिलती है। वहीं एकल परिवारों में माता-पिता की व्यस्तता के कारण बच्चे स्क्रीन तक सीमित होते जा रहे हैं। माता-पिता को चाहिए कि जब वे घर पर हों, तो बच्चों के साथ समय बिताएं, उनसे परिवार से जुड़ी बातें करें और उनकी इच्छाओं का सम्मान करें। 
-डॉ. मिथिलेश खींची, मनोचिकित्सक, सहआचार्य,  मेडिकल कॉलेज कोटा

विजुअलाइजेशन से बढ़ेगा कॉन्संट्रेशन, बच्चे होंगे डिप्रेशन से दूर
आज की जनरेशन मोबाइल के ज्यादा उपयोग से पढ़ाई से भटकती जा रही है।  मोबाइल को पूरी तरह दूर करना संभव नहीं है, लेकिन विजुअलाइजेशन तकनीक से इसका समाधान निकाला जा सकता है। बच्चे आंख बंद करके अपने लक्ष्य की कल्पना करें। जैसे परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करना या इंटरव्यू में आत्मविश्वास से उत्तर देना। इससे मानसिक एकाग्रता बढ़ती है और भय दूर होता है। एक छात्र ने बताया कि लगातार सिगरेट छोड़ने की कोशिश के बाद विजुअलाइजेशन अपनाने के बाद धीरे-धीरे कम करने के बाद छोड़ दी। कई छात्रों ने इस तकनीक से मोबाइल की लत भी छोड़ दी है। कुछ ने तो विजुअलाइजेशन की मदद से अपने सपनों की फील्ड, जैसे डेंटल कॉलेज में प्रवेश भी पाया। बच्चों को सकारात्मक विजुअलाइजेशन अपनाना चाहिए, जिससे वे तनाव और डिप्रेशन से दूर रह सकें।
-डॉ. समर्थ उपाध्याय, फिजिशियन, यूसीएचसी, विज्ञान नगर, कोटा

अपने अंदर की शक्ति को पहचानना आवश्यक
मनुष्य के जीवन में सबसे बड़ी शक्ति उसके अंदर ही छिपी होती है। मेडिटेशन वह माध्यम है जो हमारे अशांत मन को शांत करता है। जब मन शांत होता है, तभी हम अपने अंदर की शक्ति से जुड़ पाते हैं। यह जुड़ाव मन की चार्जिंग के समान है। यदि हमारा मन सकारात्मक विचारों से भरा होगा तो हमारे चारों ओर सकारात्मक वाइब्रेशन फैलेंगे, और यदि मन नकारात्मक रहेगा तो नकारात्मक ऊर्जा ही उत्पन्न होगी। आज डॉक्टर भी मेडिटेशन को मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक बता रहे हैं, क्योंकि मन से वाइब्रेशन निकलते हैं जो हमारे शरीर और वातावरण को प्रभावित करते हैं। जब हम पॉजिटिव थॉट्स देते हैं, तो हमारा मन मजबूत और पावरफुल बनता है।  मेडिटेशन हमें यह समझने में मदद करता है कि कब धैर्य रखना है और कब कर्म करना है—यही आत्मज्ञान की दिशा है।
-ब्रह्माकुमारी उर्मिला दीदी, सेवाकेंद्र प्रभारी, कोटा संभाग

मोटिवेशन के साथ मेडिटेशन जरूरी
वर्तमान में जिस तरह की प्रतिस्पर्धा एक दूसरे में बढ़ती जा रही है। वह तनाव का बड़ा कारण है। सही खानपान नहीं होना और पर्याप्त नींद नहीं आना भी मानसिक तनाव व बीमारियों को बढ़ाने का कारण है। ऐसे में तनाव व मानसिक बीमारियों को कम करने के लिए मोटिवेशन के साथ ही मेडिटेशन भी जरूरी है। व्यक्ति के शरीर के अंदर की जो शक्ति है उसे कुंडलिनी के माध्यम से जागृत किया जाता है। जिससे एक बिन्दु पर ध्यान केन्द्रित होने पर अन्य जगह से ध्यान हटने पर तनाव व मानसिक बीमारियों से बचा जा सकता है। 
-राजेश गौतम, प्रेस सचिव आध्यात्म विज्ञान सत्संग केन्द्र 

बच्चों को चाहिए बचपन, ना कि  सुविधाएं
 रूट कॉस्ट यानी समस्या की जड़ पर बात बहुत कम लोग करते हैं। अक्सर बच्चे घर में रहकर भी अकेलापन महसूस करते हैं। माता-पिता से दूरी बढ़ने के कारण वे बाहरी दुनिया में अपनापन तलाशने लगते हैं। बच्चों को केवल सुविधाएं नहीं, बल्कि भावनात्मक सुरक्षा और ध्यान की जरूरत होती है। उन्हें रियल स्टोरी या जीवन की सच्ची घटनाओं से समझाया जाए, तो वे चीजों को बेहतर तरीके से महसूस करते हैं। पहले दादा-दादी की सीख और स्नेह बच्चों की मानसिक मजबूती का आधार थे, पर अब वह कमी साफ झलकती है। हमें समस्या के मूल पर कामकरने की जरूरत है। 
-रिद्धिमा नरसिंघानी,  स्टूडेंट आयुर्वेद योग नेचुरोपैथी महाविद्यालय

मानसिक स्वास्थ्य में योग का महत्व
लगातार समय की कमी, काम का दबाव और सामाजिक अपेक्षाएं व्यक्ति को मानसिक थकान और तनाव की ओर ले जाती हैं। ऐसे में योग एक अत्यंत प्रभावी और आवश्यक साधन बनकर उभरता है। योग केवल शारीरिक स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि मानसिक और भावनात्मक संतुलन भी प्रदान करता है। यह तनाव, चिंता और अवसाद जैसी समस्याओं को कम करने में मदद करता है और जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाता है। योग में मानसिक स्वास्थ्य के लिए कई प्राणायाम उपयोगी माने गए हैं।  नियमित अभ्यास से मानसिक शांति, ऊर्जा और समग्र स्वास्थ्य में सुधार होता है। योग आधुनिक जीवन के लिए एक सशक्त और संतुलित जीवन का आधार है।
-निमीषा कसेरा, योग प्रशिक्षक,कोटा 

असुरक्षा मतलब मानसिक तनाव
 बाहरी नकारात्मक परिस्थितियां केवल तभी हमारे स्वास्थ्य पर असर डालती हैं, जब हम अंदर से कमजोर होते हैं। ठीक उसी तरह जैसे पानी में तैरता जहाज तब डूबता है जब पानी उसके अंदर चला जाता है, हमारी मानसिक स्थिति भी तभी प्रभावित होती है जब हम अंदर से असुरक्षित हों। युवाओं के संदर्भ में, विशेषकर नीट और आइआइटी की तैयारी कर रहे कोटा के छात्र, माता-पिता की जिम्मेदारी अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। मानसिक स्वास्थ्य की मजबूती और सकारात्मक सोच ही बच्चों की सफलता और संतुलित जीवन की कुंजी है।
-दीपक शर्मा, काउंसलर एवं आर्ट आॅफ लिविंग प्रशिक्षक, कोटा

सोशल मीडिया से दूरी जरूरी
माता-पिता दोनों के कामकाजी होने के कारण बच्चों का अधिकांश समय आया के साथ बीतता है। ऐसे में उनके भीतर सही संस्कारों का विकास होता था। न्यूक्लियरी फैमिली में बच्चों का ध्यान सोशल मीडिया की ओर अधिक बढ़ रहा है, जिससे एकाग्रता और भावनात्मक संतुलन प्रभावित हो रहा है। मानसिक शांति और संतुलन के लिए ध्यान लगाना आवश्यक है। मनुष्य के जीवन में सबसे बड़ी शक्ति उसके अंदर ही छिपी होती है। हमें अपने भीतर की पॉवर को जानना और अपनी विकृतियों को पहचानना होगा। तभी बच्चों में संस्कार मजबूत होंगे और वे मानसिक विकृतियों से दूर रहेंगे।
-अंशुल मेहंदीरत्ता, अधीक्षक नारी निकेतन, कोटा

प्रारम्भिक शिक्षा में शामिल हो ध्यान
मानसिक बीमारियों का सबसे बड़ा कारण ही तनाव है। तनाव बच्चे से लेकर बड़े सभी को अलग-अलग कारणों से हो सकता है। परिवार में एक दूसरे के लिए समय नहीं है। ऐसे में लोग अपनी बात कहने के लिए दूसरों का सहारा लेते हैं। लेकिन उससे मन शांत नहीं हो सका। ध्यान व सुदर्शन क्विया मन को शांत करने के साथ ही तनाव को कम करती है। ध्यान करने से मन में अच्छे विचार आते है। जब अच्छे विचार आएंगे तो सकारात्मकता बढ़ेगी। इसलिए आवश्यक है कि ध्यान को प्रारम्भिक शिक्षा में शामिल किया जाए। 
-योगेन्द्र हरसोरा, अपेक्स मैंबर आर्ट आॅफ लिविंग 

मानसिक स्वास्थ्य पर डाइट का सीधा असर
जैसा खाए अन्न, वैसा होय मन यह कहावत आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में और भी ज्यादा सटीक बैठती है। मानसिक स्वास्थ्य में डाइट की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है।  फ्रोजन या प्रोसेस्ड फूड शरीर ही नहीं, मन पर भी असर डालता है। जब भोजन का पाचन होता है, तो न्यूरॉन्स और हार्मोन्स सक्रिय होते हैं जो खुशी का अनुभव कराते हैं। परंतु अगर भोजन असंतुलित या कृत्रिम तत्वों से भरा हो, तो यह प्रक्रिया बाधित होती है और व्यक्ति अवसाद की ओर बढ़ सकता है।  फाइबरयुक्त, हल्दी और प्राकृतिक प्रोटीन से भरपूर भोजन करें, छाछ और घर का बना खाना अपनाएं तथा बाहर का फैटी और कृत्रिम स्वाद वाला भोजन सीमित करें। यही संतुलित डाइट मन को स्वस्थ रख सकती है।
-डॉ. नीरजा श्रीवास्तव, प्रो.गवर्नमेंट कॉलेज, कोटा

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